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नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
चाहते सब हैं कि हों औज-ए-सुरय्या पे मुक़ीम
पहले वैसा कोई पैदा तो करे क़ल्ब-ए-सलीम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं ने मुनइ'म को दिया सरमाया दारी का जुनूँ
कौन कर सकता है इस की आतिश-ए-सोज़ाँ को सर्द
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लौह भी तू, क़लम भी तू, तेरा वजूद अल-किताब!
गुम्बद-ए-आबगीना-रंग तेरे मुहीत में हबाब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस में एक दूसरे से हम-किनार तैरते रहे
मुहीत जिस तरह हो दाएरे के गिर्द हल्क़ा-ज़न
नून मीम राशिद
नज़्म
पर उस का गीत सब के दिलों में मुक़ीम है
और उस के लय से सैकड़ों लज़्ज़त-शनास हैं