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नज़्म
जो इल्म मर्दों के लिए समझा गया आब-ए-हयात
ठहरा तुम्हारे हक़ में वो ज़हर-ए-हलाहिल सर-बसर
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
तज़्किरा देहली-ए-मरहूम का ऐ दोस्त न छेड़
न सुना जाएगा हम से ये फ़साना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
तज़्किरा देहली-ए-मरहूम का ऐ दोस्त न छेड़
न सुना जाएगा हम से ये फ़साना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
कहते हैं आज़ाद हो जाता है जब लेता है साँस
याँ ग़ुलाम आ कर करामत है ही इंग्लिस्तान की
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
ये मक़ूला हिन्द में मुद्दत से है ज़र्ब-उल-मसल
जो कि जा पहुँचा दकन में बस वहीं का हो रहा
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
झुटपुटे के वक़्त घर से एक मिट्टी का दिया
एक बुढ़िया ने सर-ए-रह ला के रौशन कर दिया
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
जो सेहर मुझ पे चाक का वही है इस मुसल्लस-ए-क़दीम का
निगाहें मेरे चाक की जो मुझ को देखती हैं
नून मीम राशिद
नज़्म
तेरे जबीं से नूर-ए-हुस्न-ए-अज़ल अयाँ है
अल्लाह-रे ज़ेब-ओ-ज़ीनत क्या औज-ए-इज़्ज़-ओ-शाँ है
चकबस्त ब्रिज नारायण
नज़्म
मेरे ख़्वाबों के झरोकों को सजाने वाली
तेरे ख़्वाबों में कहीं मेरा गुज़र है कि नहीं