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नज़्म
जमशेद मसरूर
नज़्म
उस शाम मुझे मालूम हुआ जब बाप की खेती छिन जाए
ममता के सुनहरे ख़्वाबों की अनमोल निशानी बिकती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
छा गई आशुफ़्ता हो कर वुसअ'त-ए-अफ़्लाक पर
जिस को नादानी से हम समझे थे इक मुश्त-ए-ग़ुबार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मी न-दानी अव्वल आँ बुनियाद रा वीराँ कुनंद
मुल्क हाथों से गया मिल्लत की आँखें खुल गईं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुझ को प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह
तू ने दुनिया की निगाहों से जो बच कर लिक्खे
राजेन्द्र नाथ रहबर
नज़्म
जिस की नादानी सदाक़त के लिए बेताब है
जिस का नाख़ुन साज़-ए-हस्ती के लिए मिज़राब है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जहाँ में दानिश ओ बीनिश की है किस दर्जा अर्ज़ानी
कोई शय छुप नहीं सकती कि ये आलम है नूरानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इस से पहले कि वहाँ जाएँ तो ये दुख भी न हो
ये निशानी कि वो दरवाज़ा खुला है अब भी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
शमशीर तबर बंदूक़ सिनाँ और नश्तर तीर नहरनी है
याँ जैसी जैसी करनी है फिर वैसी वैसी भरनी है