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नज़्म
आज़ाद फ़िक्र से हूँ उज़्लत में दिन गुज़ारूँ
दुनिया के ग़म का दिल से काँटा निकल गया हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ुदी में डूब जा ग़ाफ़िल ये सिर्र-ए-ज़िंदगानी है
निकल कर हल्क़ा-ए-शाम-ओ-सहर से जावेदाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़र दाम-दिरम का भांडा है बंदूक़ सिपर और खांडा है
जब नायक तन का निकल गया जो मुल्कों मुल्कों हांडा है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कहा ये सुन के गिलहरी ने मुँह सँभाल ज़रा
ये कच्ची बातें हैं दिल से इन्हें निकाल ज़रा!