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नज़्म
ज़ाग़ दश्ती हो रहा है हम-सर-ए-शाहीन-अो-चर्ग़
कितनी सुरअ'त से बदलता है मिज़ाज-ए-रोज़गार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दफ़्न तुझ में कोई फ़ख़्र-ए-रोज़गार ऐसा भी है
तुझ में पिन्हाँ कोई मोती आबदार ऐसा भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ून है जिस की जवानी का बहार-ए-रोज़गार
जिस के अश्कों पर फ़राग़त के तबस्सुम का मदार
जोश मलीहाबादी
नज़्म
इस ज़ियाँ-ख़ाने में कोई मिल्लत-ए-गर्दूं-वक़ार
रह नहीं सकती अबद तक बार-ए-दोश-ए-रोज़गार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सब ख़ुशामद-पेशा, दुनिया-दार और बे-रोज़गार
रात दिन मिलने को आते हैं क़तार-अंदर-क़तार
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
सो ये सब पूरा करने को वो बाहर देस चला गया है
उसे रोज़गार मिल गया है सब अच्छा चल रहा है
ज़ेहरा अलवी
नज़्म
ऐ इंक़लाब-ए-दुनिया ऐ गर्दिश-ए-ज़माना
ऐ रोज़गार-ए-फ़ानी सुन तो मिरा फ़साना