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नज़्म
सख़ी आँखों के अश्कों ने तुम्हें कंगाल कर डाला
तुम्हारी बे-दिली का कर्ब अब देखा नहीं जाता
शहरयार
नज़्म
मैं उन से प्रेम करती हूँ भला मैं क्या बताऊँगी
सखी तू बोल तुझ को कैसे लगते हैं मिरे साजन