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नज़्म
खुल चुका जब परचम-ए-ग़म ज़िंदगी के क़स्र पर
अब हवाओं ने कमर पौदों की लचकाई तो क्या
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ख़िर्मन-ए-आ'दा पे अब बिजली गिराने के लिए
अहल-ए-ज़र की बे-कसी पर मुस्कुराने के लिए
अल्ताफ़ मशहदी
नज़्म
तिरे सोफ़े हैं अफ़रंगी तिरे क़ालीं हैं ईरानी
लहू मुझ को रुलाती है जवानों की तन-आसानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं आहें भर नहीं सकता कि नग़्मे गा नहीं सकता
सकूँ लेकिन मिरे दिल को मयस्सर आ नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
फ़िक्र-ए-इंसाँ पर तिरी हस्ती से ये रौशन हुआ
है पर-ए-मुर्ग़-ए-तख़य्युल की रसाई ता-कुजा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
हर शहर-ए-तरब पर गरजेगा हर क़स्र-ए-तरब पर कड़केगा
ये अब्र हमेशा बरसा है ये अब्र हमेशा बरसेगा
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुझे उन वादियों में सैर की ख़्वाहिश नहीं बाक़ी
मुझे उन बादलों से राज़ की बातें नहीं करनी