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नज़्म
तिरी तौक़ीर से तौक़ीर-ए-हस्ती है गुरु-नानक
तिरी तनवीर हर ज़र्रे में बस्ती है गुरु-नानक
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
अंजुम से बढ़ के तेरा हर ज़र्रा ज़ौ-फ़िशाँ है
जल्वों से तेरे अब तक हुस्न-ए-अज़ल अयाँ है
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
जिन सर-अफ़राज़ों की रूहें आज हैं अफ़्लाक पर
मौत ख़ुद हैराँ थी जिन की जुरअत-ए-बे-बाक पर
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
बे-कस चमेली फूले अकेली आहें भरे दिल-जली
भूरी पहाड़ी ख़ाकी फ़सीलें धानी कभी साँवली