aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "uqda-kushaa"
हल कर दिया था जिस ने मुअ'म्मा शबाब कातुझ से वो फ़िक्र-ए-उक़्दा-कुशा कौन ले गया
उस की दानाई का हासिल नाख़ुन-ए-उक़्दा-कुशाताबनाकी-ए-ज़मीर-ओ-ज़ीरकी का आफ़्ताब
पेच-ओ-ख़म रह-ए-पुर-ख़तर के उक़्दा-कुशा थेदिल फ़ारिग़-ए-ख़तर था
बहुत कार-ए-उक़्दा-कुशाई कठिन हैमगर मैं किसी रंज-ए-बरसर
बाल खोले हुए डाइन सी डराती है हयातदिल को इदराक-ए-रह-ए-उक़्दा-कुशाई दे दे
बू-ए-गुल बन के उड़ा कूचा-ब-कूचा हर सूबन के इक चीख़ लरज़ जाती है अब कानों में
सच है हमीं को आप के शिकवे बजा न थेबे-शक सितम जनाब के सब दोस्ताना थे
जब तिरे शहर-ओ-कूचा-ओ-दर सेज़िंदगी सरगिराँ रही तू ने
साहब-ए-सरवत अगर शा'इर नहीं तो ग़म नहींशा'इरों में इस को लिख कर देने वाले कम नहीं
तुम जो क़ातिल न मसीहा ठहरेन इलाज-ए-शब-ए-हिज्राँ न ग़म-ए-चारागराँ
ख़ुदा के ख़ौफ़ से अपने गुनाहों पर ख़जिल हो करवो पैहम गिर्या करता था
ऐ ख़ुशा-अज़्म परवाज़ का ये सफ़रझिलमिलाई जहान-ए-दिगर की सहर
ऐ जान-ए-नग़्मा जहाँ सोगवार कब से हैतिरे लिए ये ज़मीं बे-क़रार कब से है
जा बसा मग़रिब में आख़िर ऐ मकाँ तेरा मकींआह! मशरिक़ की पसंद आई न उस को सरज़मीं
मिरे दुख का अहद तवील हैमिरा नाम लौह-ए-फ़िराक़ पर है लिखा हुआ
सवेरे ऐसा लगाजैसे कोई दरवाज़े पर दस्तक दे रहा है
क़स्र-ए-शाही में कि मुमकिन नहीं ग़ैरों का गुज़रएक दिन नूर-जहाँ बाम पे थी जल्वा-फ़िगन
गिला है कम-निगही को में कामगार नहींहनूज़ नुदरत-ए-किरदार आश्कार नहीं
ज़ैनब मैं तेरी बांदीतू ऐसी बा-हौसला
हुई जाती है नज़्र-ए-शोरिश-ए-आह-ओ-फ़ुग़ां उर्दूकहे किस से यहाँ अपने ग़मों की दास्ताँ उर्दू
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