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नज़्म
इतने सारे सार्त्रों से मिल कर तुम्हें क्या करना है
अगर ज़ियादा ज़िद करती हो तो अपने वारिस 'शाह'
सारा शगुफ़्ता
नज़्म
मुझ को ये ज़िद है कि मैं सर न झुकाऊँगा कभी
मुझ को इसरार कि जीने का सज़ा-वार हूँ मैं
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
तुम्हें प्यार है, तो यक़ीन दो,
मुझे न कहो, तुम्हें प्यार है, मुझे देखने की न ज़िद करो,
आरिफ़ इशतियाक़
नज़्म
तेरी तख़्लीक़ नहीं है मिरी तख़्लीक़ नहीं
हम अगर ज़िद भी करें उस पे तो तस्दीक़ नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हम तो मजबूर थे इस दिल से कि जिस की ज़िद पर
हम ने उस रात के माथे पे सहर की तहरीर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इश्क़ की ज़िद में फ़राएज़ को भुलाना कैसा
ज़िंदगी सिर्फ़ मोहब्बत तो नहीं है अंजुम
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
मैं आया अब तो मिरा बंद-ओ-बस्त होगा तमाम
तू मुझ से आन के मिल छोड़ अपनी ज़िद का कलाम