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नज़्म
इक अदीब-ए-नामवर इक अफ़सर-ए-आ'ली-मक़ाम
ज़ात सक्सेना है जिस की राम बाबू जिस का नाम
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
अब सबा कूचा-ए-जानाँ में गुज़रे है कि नहीं
तुझ को इस फ़ित्ना-ए-आलम की ख़बर है कि नहीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
दिल पीत की आग में जलता है हाँ जलता रहे उसे जलने दो
इस आग से लोगो दूर रहो ठंडी न करो पंखा न झलो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
आज का दिन कैसा बा-रौनक़ है बच्चो वाह वाह
मर्द बूढे हों कि बच्चे जा रहे हैं ईद-गाह
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
उफ़ुक़ के उस तरफ़ कहते हैं इक रंगीन वादी है
वहाँ रंगीनियाँ कोहसार के दामन में सोती हैं