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नज़्म
सुकूत और शांति के हर क़दम पर फूल बरसाती
असीर-ए-काकुल-ए-शब-गूँ बना कर मुस्कुराती है
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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सुकूत और शांति के हर क़दम पर फूल बरसाती
असीर-ए-काकुल-ए-शब-गूँ बना कर मुस्कुराती है