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अंधेरा उजाला

हयातुल्लाह अंसारी

अंधेरा उजाला

हयातुल्लाह अंसारी

MORE BYहयातुल्लाह अंसारी

    स्टोरीलाइन

    यह एक जेब कतरे की कहानी है, जो अपने काम में जितना परफे़क्ट है परिवार के मामले में उतना ही नाकाम। उसकी बेटी एक दूसरे जेब कतरे के बेटे के साथ भाग जाती है और बेटा भी एक दूसरे जेब कतरे के साथ एक आपत्तिजनक हालत में पुलिस के हत्थे चढ़ जाता है।

    अब जो सेठजी ने अपने रेशमी कुर्ते के बाएं जानिब सीने पर हाथ फेरा तो सिद्धू को यक़ीन हो गया कि मेरा अंदाज़ा ग़लत नहीं था। कुर्ते के नीचे बंडी की जेब में है कोई भारी रक़म। तभी तो सेठजी बस स्टैंड की लाईन में खड़े खड़े उसको दो बार टटोल चुके हैं। इस बार टटोलने में रेशमी कुर्ते पर दो शिकनें गई थीं। उनसे सिद्धू की मश्शाक़ नज़रों ने पर्स की मोटाई का भी अंदाज़ा लगा लिया। अब वो बेचैन था उस रक़म को हथियाने के लिए। लेकिन कोई साथी नज़र नहीं रहा था और साथी के बग़ैर इतना बड़ा हाथ मारना उस्ताद की हिदायत के ख़िलाफ़ था।

    इतने में डबल डैकर बस गई और मुसाफ़िर सवार होने लगे। सेठजी तीसरे नंबर पर थे और सिद्धू पांचवें नंबर। लेकिन ऊपर चढ़ने में जो धक्कम पेल हुई तो सिद्धू झपट कर सेठजी के बिल्कुल पीछे गया। इतने में कंडक्टर कुछ लोगों को ये कह कर रोकने लगा। लाईन से, लाईन से, लेकिन दो मुसाफ़िर तो चढ़ ही गए। उनमें से एक सूट पोश ने सँभलने में सिद्धू के कंधे का सहारा लिया। सिद्धू ने एक नज़र उस पर डाली और ये देखकर कि मोहन है, वही नज़र सेठजी की तरफ़ मोड़ दी। अभी बस चली ही थी कि मोहन ने अपनी नाक की नोक से सेठजी की ऐनक इस तरह उचका दी कि वो गिर पड़ी। वो ज़ोर से चिल्लाया,

    अरे, अरे। सारी, सारी।

    लोग गिरी हुई ऐनक को देखने लगे। मोहन चिल्लाने के साथ ही सेठजी के साथ ऐनक उठाने को झुक गया। उसका हाथ सेठजी से पहले लग गया ऐनक में। लेकिन लोगों को ऐसा लगा जैसे कि या तो बस के हिलने से या हाथ के बे-तुका लगने से ऐनक खिसक कर दूसरी सीट के नीचे चली गई।

    अब तो सब मुसाफ़िर झुक-झुक कर ऐनक को देखने लगे। दो-एक बताने लगे कि वो है। वो उधर है। सेठजी झुके तो उनका रेशमी कुर्ता भी झुक आया। ये मौक़ा और वक़्त बिल्कुल ठीक था सिद्धू के लिए। वो बाएं हाथ से बस का डंडा पकड़े अपने को सँभाल रहा था। उसने दाहिना हाथ सेठ के कुर्ते के नीचे डाला और बात की बात में भारी पर्स निकाल कर अपनी रान से चिपका कर पैंट की जेब में डाल लिया। फिर उसने ऐसा किया कि बस के हिलने की झोंक में आकर एक क़दम पीछे चला गया। यहां अगर उसने पर्स को उस थैली में पहुंचा दिया जिसका मुँह पैंट की जेब में खुलता था। फिर उस मुँह को ज़िब से बंद किया। उसी वक़्त दूसरे हाथ से एक डोरी खींची जिससे थैली आकर दाहिनी रान के अंदर की तरफ़ चिपक गई।

    इधर सिद्धू का काम ख़त्म हुआ इधर सेठजी की ऐनक उनकी नाक पर पहुंच गई। अब सिद्धू को इस अंदेशे ने घेर लिया कि अभी सेठजी अपनी जेब को टटोल कर शोर मचाएँगे कि 'हाय हाय मैं लुट गया' और फिर मुसाफ़िरों की तलाशी शुरू हो जाएगी। हो सकता है कि कोई चालाक आदमी मेरी रान के अंदर भी टटोल ले। अब क्या करूँ? उस वक़्त सिद्धू को एहसास हुआ कि लालच में आकर मैं जल्दी कर गया।

    सिद्धू ने बस की रफ़्तार देखी और सड़क के किनारे पर नज़र डाली। फिर सोचने लगा कि अगर मैं ये कहता हुआ कूद जाऊं, अरे रोको, मुझे इस जगह उतरना है। तो कैसा रहेगा। दो मर्तबा ऐसा कर चुका हूँ। लेकिन एक तो बस की रफ़्तार तेज़ है और दूसरे जगह ऐसी है कि मैं जल्द ही किसी तरफ़ छुप नहीं सकता। इसलिए बहुत मुम्किन है कि इधर में कुदूं और उधर सेठजी अपनी जेब देखकर चिल्लाऐं फिर तो सब मुसाफ़िरों को मुझी पर शक होगा और बस रुकवाकर दौड़ पड़ेंगे। अभी एक ही हफ़्ता हुआ कि ज़ालिम मुसाफ़िरों ने एक जेब कतरे को इतना मारा कि बेचारा अस्पताल पहुंचते पहुंचते मर गया।

    अब तो सिद्धू दिल में कहने लगा कि मैंने बड़ी ग़लती की जो ऊंच-नीच नहीं देखी।

    गुरूजी रोज़ कहते हैं कि फ़रार की राह देख लो फिर माल पर हाथ डालो। अब क्या होगा?

    सेठजी सँभले ही थे कि मुसाफ़िरों में एक खद्दर धारी ने उठकर मोहन के गाल पर ये कह कर एक थप्पड़ मार दिया कि अबे साले सूट वाले अंधा बन कर बस पर चढ़ता है। अभी इन सज्जन की ऐनक टूट जाती तो...

    जवाब में मोहन ने मुसाफ़िर के दो थप्पड़ मारे और गालियां देकर कहने लगा,

    तुझे क्या ग़रज़, जिसकी ऐनक गिरी थी उसने तो कुछ नहीं कहा।

    अब तो दोनों मारपीट में लग गए। सिद्धू थप्पड़ मारने वाले खद्दर धारी को पहचान गया और दिल में कहने लगा। है तो मुझे इस हरामज़ादे से नफ़रत। लेकिन इस वक़्त बहुत काम आया।

    सेठजी और चंद मुसाफ़िर दोनों लड़ने वालों को अलग करने लगे। कंडक्टर ज़ोर से चिल्लाया,

    लड़ाई बंद कर,। वर्ना बस रोक दूँगा।

    अब तो सब मुसाफ़िर चिल्लाने लगे, लड़ाई बंद करो। लड़ाई बंद करो। सेठजी ने दोनों को अलग किया। मगर वो अलग हुए ही थे कि सेठजी चिल्लाए,

    हाय मैं लुट गया, किसी ने मेरी जेब काट ली।

    जिस मुसाफ़िर ने थप्पड़ मारा था वो आगे आकर बोला, पहले मेरी तलाशी ले लो।

    मोहन कहने लगा, पहले मेरी तलाशी ले लो।

    बस स्टॉप क़रीब था और बस धीमी होने लगी। स्टॉप के पास मुसाफ़िरों की भीड़ इकट्ठा थी। सिद्धू अचानक मुसाफ़िरों की तरफ़ मुँह कर के चिल्लाने लगा, अरे बेटे, अरे बेटे, तू अब तक कहाँ था?

    और ये कह कर धीमी होती हुई बस से कूद कर मुसाफ़िरों की झुण्ड में घुस गया और फिर उसके अंदर से निकल कर सड़क के एक मोड़ की तरफ़ आहिस्ता-आहिस्ता चलने लगा और दो मिनट में वो बस वालों की नज़रों से ओझल हो गया। इस वक़्त सिद्धू के दिमाग़ में अपना कारनामा गूंज रहा था। उसने अपनी पांचों उंगलियों को इस काम में कितनी फुर्ती और शियारी से इस्तेमाल किया था। गुरूजी अपने चेलों से कहा ही करते हैं कि ये कभी भूलना कि जब भी तुम ध्यान से काम करोगे तो तुम्हारी दसों उँगलियाँ दस हाथ साबित होंगी। गुरु अपने चेलों से ऐसी मश्क़ें भी कराया करते थे कि कभी दोनों हाथों के अंगूठे और दूसरी तीसरी उंगलियां बांध दें और एक लड़की को जिसके सर में जुएँ थीं बिठा कर कहा कि इसके जुएँ निकालो। जाने इस तरह कितनी मश्क़ें वो कराते रहते हैं।

    सामने पेशाब ख़ाना था। सिद्धू वहां चला गया और पैंट से पर्स निकाला। गिनने का मौक़ा तो था नहीं। हाँ, ये अंदाज़ा हो गया कि हज़ारों की रक़म है। उसने फ़ौरन अपने जेब से सौ, दस और पाँच के नोट जो उस के पास इस ग़रज़ से मौजूद रहते थे, निकाल कर सेठजी के नोटों के बीच में लगा दिए और फिर वो सब नोट अपने पर्स में रख लिए। अब अगर तलाशी हुई तो सेठकी बताई हुई रक़म से सिद्धू की रक़म ज़्यादा निकलेगी। सेठजी का पर्स नाली में डाल कर उसने ठोकर से अंदर कर दिया। अब सिद्धू बेख़ौफ़ हो कर कि मैं पुलिस की ज़द से बिल्लकुल बाहर हूँ पेशाब ख़ाने से बाहर गया।

    सिद्धू को इस कारनामे का बदमज़ा हिस्सा अब याद आया। वो था खद्दर धारी चन्दर का उसकी मदद को आजाना। सिद्धू का दिल बोला मुझे यक़ीन है कि जो लड़का मेरी सीता को अग़वा कर ले गया है वो चन्दर का बेटा राम भरोसे ही था। गवाहों से पता चलता है कि वो सीता से, जब वो स्कूल जाती थी तो मिलता रहता था। उसके सिवा और किसी लड़के से मिलने-जुलने की बात सुनने में नहीं आई और जहां तक ख़बर मिली है राम भरोसे भी तभी से ग़ायब है।

    सिद्धू ने सोचा कि शाम हो रही है। गुरूजी से साढे़ नौ बजे से पहले तो मिलना हो नहीं सकता है। इसलिए क्यों एक बोतल लेकर मुन्नी बाई के यहां चलें और तीन घंटे मज़े करें। ये सोच कर वो शराब की दूकान की तरफ़ बढ़ा था कि बहादुर मिल गया। वो था तो कँवर जी के गिरोह का लेकिन सिद्धू से बहुत अच्छी तरह मिलता था। बहादुर सिद्धू से हाथ मिला कर कहने लगा,

    किसी तरफ़ जा रहे या ख़ाली हो?

    ये वक़्त क्या ख़ाली होने का है?

    वक़्त तो नहीं है लेकिन ज़रा दिल बहलाने को जी चाह रहा है। चलो चांद बाई के यहां चल कर बैठें।

    सिद्धू ने दिल में कहा, ये प्रोग्राम भी बुरा नहीं रहेगा।

    बोला, चलो।

    रास्ते में बहादुर ने कहा, क्या तुम्हारे गिरोह में कुछ नए लोग गए हैं?

    बहादुर की आवाज़ में कुछ ऐसी खटक थी कि सिद्धू ने चौंक कर पूछा, क्या बात है।

    हफ़्ता दस दिन हुए, मैं स्टेशन पर एक घात में लगा हुआ था कि गेट के आगे पीछे किसी ने मेरी जेब से नीला पार्कर उड़ा दिया। तब से मैं सोच रहा हूँ कि ये कौन हो सकता है।

    मेरे गिरोह में तो कोई भी ऐसा नहीं है जो अपने वालों में से किसी की जेब काटे और फिर तुमको तो सब ही पहचानते हैं। मैं जानूं कॉलेज का कोई छोकरा होगा। वो भी ऐसे काम कर डालते हैं।

    नहीं यार! मैं ऐसे रुख़ से था कि कोई मश्शाक़ ही क़लम उड़ा सकता था।

    जाने भी दो एक पार्कर की क्या बात है।

    बात तो कुछ भी नहीं, लेकिन मेरे ऐसे की जेब कट जाये। ये चीज़ मुझे बहुत खल रही है। अब चलो पी कर ग़म ग़लत करें। तुम्हारा काम कुछ बन गया या नहीं?

    कुछ बन तो गया है, चलो।

    जब सोहबत जम गई तो हंसी हंसी में सिद्धू ने बहादुर से पूछा, यार ये तो बताओ, ये चन्दर कैसा आदमी है।

    उसको पूछते हो। ऐसा आदमी तो तुम्हारे गिरोह में निकलेगा और हमारे गिरोह में। उसने आज तक ख़ुद एक काम भी नहीं किया। लेकिन आड़े वक़्त पर इस तरह हम लोगों के काम जाता है कि उसका एहसान मानना ही पड़ता है और ख़ुशी ख़ुशी हम उसको हिस्सा दे देते हैं।

    सिद्धू ने चौंक कर पूछा, किस तरह मदद करता है वो?

    बहादुर ने क़हक़हा मार कर कहा, चार रोज़ की बात है कि प्रताप ने कुछ ऐसा भोंडा काम किया कि लोग उसको पकड़ने दौड़ पड़े और वो भागा। उस वक़्त चन्दर जाने किसी तरफ़ से निकल कर ऐसा बे-तहाशा भागने लगा कि लोगों ने प्रताप का पीछा करना तो छोड़ दिया और उसको पकड़ लिया। वो चिल्लाने लगा,

    अरे मेरी बीवी दर्द से तड़प रही है, मुझको डाक्टर के पास जाने दो।

    लोग उसको थाने ले गए वहां पूछगछ की गई तो चन्दर ने डाक्टर का नुस्ख़ा दिखाया जिस पर फ़ौरी लिखा था और कहा कि मैं बीवी की दवा लेने भागा जा रहा था। थाने वालों ने तलाशी ली तो उस के पास बीस रुपया से भी कम रक़म निकली और जिस शख़्स की जेब कटी थी वो पाँच सौ रुपये से ऊपर की रक़म बता रहा था। तब तो पकड़ने वालों ने चन्दर से माफ़ी मांगी और थाने वालों ने उसे छोड़ दिया। उस्ताद कँवर को जब हाल मालूम हुआ तो इन्होंने प्रताप की कमाई में से चन्दर को तिहाई रक़म दिलवा दी और कहा कि अगर ये मदद करता तो तुम आज जेल में होते। इस तरह की जाने कितनी हरकतें कर चुका है।

    चांद चुलबुली सी लड़की थी। दोनों उससे छेड़-छाड़ करते रहे, लुत्फ़ उठाते रहे। सिद्धू पेशाब ख़ाने चला गया। और वहां अपनी रक़म देखी तो वो पूरे साढे़ सात हज़ार से कुछ ऊपर निकली। इतनी रक़म बहुत दिनोँ के बाद मिली थी। उसका दिल ख़ुश हो गया। और सोचने लगा कि इस में से माँ को क्या भेजूँ। अपनी माँ और बहनों के अख़राजात का हिसाब उसकी समझ में बिल्कुल ही नहीं आता था। जब बाप मरे थे तो घर की कुल आमदनी थी सिर्फ़ ढाई सौ रुपये माहवार और किसी किसी तरह काम चल जाता था और अब वो हज़ार रुपया माहवार भेजता है लेकिन फिर भी बराबर ख़त आते रहते हैं कि फ़ुलां की शादी करना है, फ़ुलां बहुत बीमार है, फ़ुलां हादिसे का शिकार हो गया है, फ़ुलां के बच्चा हुआ है और फ़ुलां के बच्चा होने वाला है। सिद्धू को तो ऐसा नज़र आता था कि अगर मैं अपनी सारी आमदनी भी भेज दिया करूँ तो भी वहां कुछ भला होगा।

    (2)

    गुरूजी चार साल से अपना काम छोड़कर शंकर के भगत बन चुके थे। मगर इतना ज़रूर करते थे कि बेकार मगर होशयार नौजवानों को काम सिखा कर रोज़गार से लगा देते थे। शाम को नौ बजे रात तक पूजा पाठ करते थे और फिर शागिर्दों से मिलते थे। लेकिन शागिर्दों के दिन बंधे हुए थे। इसलिए दो-तीन से ज़ाइद शागिर्द एक दिन में इकट्ठे नहीं होते थे। आज सिद्धू और मोहन का दिन था। दोनों मंदिर के लॉन पर बैठे हुए थे कि गुरूजी गए। पहले उन्होंने वारदात सुनी फिर कहने लगे,

    जब बस स्टॉप इतनी दूर था तो काम क्यों किया? काम करने से पहले सब ही तरह की बातें देखना होती हैं। ऐसी ही ग़लतियों से लोग पकड़े जाते हैं। सिद्धू तुझको तो मैं बहुत होशयार समझता था और तूने ऐसा किया।

    गुरूजी ग़लती तो ज़रूर हुई। मगर उस वक़्त मैंने सोचा था कि कहीं ऐसा हो कि ये सोने की चिड़िया अगले ही बस स्टॉप पर उतर जाये।

    उतर जाता तो उतर जाता। ऐसे ऐसे दसों मिल सकते हैं। मैं बराबर कहता रहता हूँ कि पहले अपनी ख़ैर मनाया करो परे कारनामे की सोचा करो।

    सिद्धू ने वो बात कही जो उस के दिमाग़ पर घंटों से मुसल्लत थी।

    गुरूजी चन्दर हमारे इलाक़े में क्यों आया?

    हो सकता है कि वो कहीं किसी काम से जा रहा हो और तुमको फँसता हुआ देखकर मदद पर गया हो। अब तो उन लोगों का एहसान मानना ही पड़ेगा और हाँ, हिस्सा भी देना होगा।

    गुरूजी उस का एहसान मानना और हिस्सा देना ये तो मुझ से होगा। उसने आज मुझको बचा लिया। लेकिन मेरा घर भी तो उसी के बेटे ने उजाड़ा है। बस चले तो मैं उस आदमी को फंसवा दूं। साला चन्द्र... (गालियां)

    तुझे कितनी बार समझा चुका हूँ कि आजकल के प्रेम में सिर्फ़ लड़के का क़सूर होता है और सिर्फ़ लड़की का। अब तो जो भी करते हैं दोनों मिलकर करते हैं।

    फिर गुरूजी कहने लगे,

    सुनो सिद्धू! मैं कँवर से बात कर चुका हूँ। वो कहने लगा गुरूजी, मैं तो अपने शागिर्दों को रोज़ समझाता हूँ कि इधर तुम प्रेम के चक्कर में पड़े और उधर तुम्हारा फ़न बिगड़ा। क्यों कि हम लोगों की आमदनी अगर किसी दिन दो तीन हज़ार हो जाती है तो ऐसा भी होता है कि हफ़्तों बल्कि महीनों तक पैसा भी मिले। इसलिए हम लोगों की बीवीयों को सुघड़ होना चाहिए, जो प्रेम से नहीं, घरों घरों ढ़ूढ़ने और पूछगछ करने से मिलती है। बीवी ऐसी होगी तो पैसे के लिए बदहवास रहोगे और जहां बदहवासी से काम किया फिर या तो अक़ल बहक जाएगी या हाथ।

    फिर कँवर कहने लगा, गुरूजी जब चन्दर अपने लौंडे को लेकर मेरे पास आया तो मैंने दो रोज़ उसकी जांच पड़ताल की और फिर चन्दर से कहा कि ये इस क़ाबिल नहीं है कि इसको ये फ़न शरीफ़ सिखाया जाये। चन्दर साले ने बहुत वावेला मचाया और ख़ुशामद की। लेकिन मैं नहीं माना।

    गुरूजी बोलते गए,

    और हाँ सिद्धू, मुझे यक़ीन नहीं है कि सीता, चन्दर के लौंडे के साथ भागी क्योंकि वो लौंडा निरा जाहिल है। बदसूरत है और देखने ही में बदमाश लगता है। तेरी सीता सुंदर है और स्कूल मेँ पढ़ती थी।

    गुरूजी, मैंने ख़ूब पूछगछ कर ली है। हुआ ये कि पहले किसी ने दरवाज़े पर सदा लगाई, आइसक्रीम, आइसक्रीम, सीता उसको ख़रीदने निकली। ज़रा ही देर में स्कूटर चलने की आवाज़ आई। मेरी पत्नी खटक गई कि स्कूटर के आने की आवाज़ नहीं आई थी। फिर ये कहाँ से गया। उसने बाहर जा कर देखा तो सीता स्कूटर के पीछे बैठी हुई जा रही थी। मैंने उन लोगों से जो मौक़े पर मौजूद थे। पूछा तो सबने कहा कि लड़की जाने पर तैयार नहीं थी लेकिन स्कूटर वाले लड़के ने बहुत इसरार से बल्कि ज़बरदस्ती हाथ पकड़ कर स्कूटर पर बिठा लिया और चल दिया।

    स्कूटर पर ज़बरदस्ती बिठाने की बात समझ में नहीं आती और ये बात भी कि आइसक्रीम...आइसक्रीम सुनते ही वो दौड़ी चली गई। ज़रूर पहले से कुछ कही बदी होगी।

    गुरूजी ! मेरे बच्चे, क्या बताऊं, कहते बुरा मालूम होता है, बेहद चटोरे हैं। इस वजह से घर में शक्कर घी वग़ैरा जितना भी लाओ सब उड़ा जाता है।

    फिर ज़रा सोच कर सिद्धू बोला,

    एक बात और भी है जो मुझे खटक रही है, वो ये कि जाने से दो दिन पहले सीता ने मुझसे अकेले में पूछा था कि पिताजी आपके पास पैसा क्यूँ-कर आता है? और ये बात वो किसी तरह भी नहीं मानी कि मैं अँगूठीयां बेचता हूँ। तभी मैं खटक गया था कि किसी ने उसे सिखा-पढ़ा दिया है। अब तो यक़ीन है कि चन्दर के लौंडे ने ये कह कर भड़का दिया होगा कि जो फ़न तुम्हारे पिता के पास है, वही मेरे पास भी है, चलो मेरे संग।

    मोहन कहने लगा,

    मैं जानूं कि चन्दर इस मुआमले में बेक़सूर है। उसने आज मुझसे जो बातें कीं उससे तो ऐसा ही पता चलता है।

    क्या बातें कीं? गुरूजी ने पूछा।

    मोहन बोला, चन्दर अगले स्टॉप पर मेरी तरफ़ देखकर उतर गया। मैं उसके बाद वाले स्टॉप पर जा कर उसका इंतिज़ार करने लगा। ज़रा देर में वो गया। और आते ही सिद्धू की तारीफ़ करने लगा कि क्या जेब काटी है। कुर्ते के नीचे हाथ डाला और उसी वक़्त सीधा हो गया। वाह... वाह मैंने सिद्धू के काम की तारीफ़ तो सुनी थी मगर आज ख़ुद देख लिया। कमाल है, ये कह कर चन्द्र कहने लगा।

    सिद्धू ने जो पर्स निकाला था वो काफ़ी मोटा था। लेकिन जब वो कूद कर गया है तो उसकी पैंट और शर्ट की जेबें ख़ाली लग रही थीं। उसके पीछे भी कोई शख़्स नहीं था जो कहा जाये कि पर्स को उसको दे दिया था। फिर उसने अपने बदन में पर्स कहाँ और क्यूँ-कर छुपाया। ये बता दो तो ज़िंदगी भर एहसान मानूँगा।

    ये सुनकर मैं हँसने लगा, और बोला, अरे करतब की पूछता है तो गुरूजी से जाकर पूछ, उन्होंने जाने हमको क्या-क्या सिखा दिया है और अभी जाने क्या-क्या सिखाने वाले हैं।

    हमने सुना है कि तुम्हारे गुरूजी हर एक को शागिर्द नहीं बनाते हैं और अपने हर शागिर्द को भी सब बातें नहीं बताते हैं। क्या ये सही है?

    मैंने कहा, हाँ सही है।

    फिर उसने पूछा,

    मैंने ये भी सुना है कि गुरूजी का हुक्म है कि तुम लोग अपने बीवी-बच्चों वग़ैरा में से किसी को भी बताओ कि तुम क्या कारोबार करते हो। क्या ये सही है?

    हाँ, गुरूजी का ऐसा ही हुक्म है।

    फिर तुम्हारे लड़कों को ये फ़न क्यूँकर आएगा? और अगर नहीं आएगा तो, वो कमाएंगे क्यूँकर?

    गुरूजी जिस लड़के को पसंद करते हैं उसको अपने तौर पर ये फ़न सिखाते हैं। कहते हैं कि सिखाओ ऐसे शख़्स को जो फ़न को ढंग से बरत सके। अगर बेढंगे को सिखाओगे तो वो भी डूबेगा और तुमको भी ले डूबेगा।

    चन्दर ठंडी सांस भर कर कहने लगा,

    ठीक कहते हैं गुरूजी, मैंने अपने बेटे को सिखाया तो वो बिला मश्क़ के काम करने लगा और एक दोबार जो कामयाबी हुई तो ऐसा इतराया कि अपने को उस्ताद समझने लगा।

    गुरूजी ये सुनकर हँसने लगे और कहने लगे,

    सिखाने से पहले मैं सूरत भी देखता हूँ कि वो देखने में शरीफ़ मालूम होता है या नहीं। ये तो सब जानते हैं कि अगर कहीं शोर मच गया कि जेब कट गई, जेब कट गई, तो पहले उस आदमी को पकड़ा जाता है जिसकी सूरत घटिया आदमियों की सी होती है। सूरत के बाद मैं देखता हूँ कि शागिर्द नाज़ुक वक़्त में हवास क़ायम रख सकता है कि नहीं। ये भी देखता हूँ कि ठाट-बाट का शौक़ीन तो नहीं है। जेब कतरे को चाहे जितनी दौलत मिल जाये लेकिन उसको रहना चाहिए सीधी-सादी तरह। वर्ना लोग सोचने लगेंगे कि इसकी आमदनी का ज़रिया क्या है। इसी तरह की मैं दर्जनों बातें देख लेता हूँ। तब शागिर्द बनाता हूँ।

    बेटा, वकील बनना, क्लर्क बनना या टीचर बनना आसान है, लेकिन जेब-कतरा बनने के लिए बड़ा दिल और बड़ा दिमाग़ चाहिए। तुम तो जानते हो कि मैंने कभी किसी लड़की को शागिर्द नहीं बनाया। हालांकि जवान

    लड़कियां आम तौर से शरीफ़ मालूम होती हैं। लेकिन वो जल्दबाज़ और बेसबरी होती हैं और जहां कोई उनकी बातें ग़ौर से सुनने और सूरत तकने लगा बस समझ लेती हैं कि उसको मार लिया। कलकत्ता के उस्ताद लड़कियों को जेब-कतरा बनाते हैं। लेकिन वो पकड़ ली जाती हैं और ऐसी पकड़ ली जाती हैं कि सज़ा से नहीं बचतीं।

    फिर गुरूजी ने पूछा, चन्दर ने और भी कुछ कहा, मोहन ने अभी जवाब नहीं दिया था कि सिद्धू पूछ बैठा,

    उस माँ के...ने अपने बेटे राम भरोसे को कुछ फ़नून भी सिखा दिया था कि नहीं?

    मोहन हंसा और बोला, अभी उसको सिर्फ़ ऊपर की जेब से क़लम निकालना ही सिखाया था। मगर क़लम निकालते एक बार पर्स भी निकालना चाहा तो फ़ौरी पकड़ लिया गया। ख़ैरियत ये हुई कि मारपीट कर छोड़ दिया गया। चन्दर कहता था कि जब वो पकड़ा गया तो मैंने उसको समझा दिया कि पर्स निकालने से पहले कोट हो या शर्ट हो उसके झोल और बदन के कसाओ की पहचान ज़रूरी है और ये काम भी बहुत मश्क़ से आता है।

    फिर चन्दर कहने लगा, वो निकम्मा ऐसी बातों की तरफ़ ध्यान नहीं देता था। देखना चाहिए क्या हश्र होता है उसका।

    आख़िरी फ़िक़रा सुनकर सिद्धू परेशान हो गया और बोला, सब कुछ भगवान के हाथ में है।

    फिर गुरूजी ने पूछा, ये तो बताओ सिद्धू, सेठजी के पर्स से कितनी रक़म निकली।

    साढे़ सात हज़ार।

    बहुत अच्छी रक़म, मुबारक हो। गुरूजी ने कहा, और ये भी सुन लो कि अभी तक किसी ने पुलिस में इतनी रक़म निकल जाने की रिपोर्ट नहीं लिखाई है। इस का मतलब ये है कि ये रक़म नंबर दो वाली है।

    सिद्धू बोला, तो फिर पुलिस को इल्म नहीं होगा। इसलिए उसको हिस्सा देने की ज़रूरत नहीं।

    हाँ, हम चाहें तो दें। लेकिन पुलिस से मुआमले को साफ़ रखना ज़रूरी है। हम कम दें मगर दें ज़रूर, वो ऐसी रक़म का एहसान ज़रूर मानेंगे।

    मोहन ने पूछा, क्या कँवर जी वालों को भी हिस्सा मिलेगा?

    चन्दर को हिस्से के साथ इनाम भी मिलना चाहिए। मेरे ख़याल में पाँच सौ दिए जाएं। फिर वो लोग जगह जगह हमारे काम आएँगे। भई मिलकर चलना अच्छा काम होता है।

    सिद्धू बिगड़ कर बोला, इनाम देना है तो कँवर जी को दो, वो जिसे चाहेंगे दे देंगे।

    चलो यूं ही सही।

    (3)

    सिद्धू अपने फ़न का माहिर था। काम ऐसा पलक झपकते में अंजाम देता था कि अपने तो अपने दूसरी पार्टी के लोग भी उसकी फुर्ती पर हैरान रह जाते थे। हद ये है कि आज चन्दर तक जो फ़न का बड़ा माहिर था तारीफ़ कर बैठा। लेकिन अपना काम ख़त्म करने और महफ़ूज़ जगह पहुंच जाने के दरमियान जो चंद मिनट का ख़तरनाक वक़फ़ा गुज़रता था, उसमें सिद्धू को ऐसा लगता था कि कहीं मेरा हार्ट फ़ेल हो जाये। फिर जैसे ही वो वक़फ़ा गुज़र जाता तो उस पर एक सरशारी सी छा जाती थी। फिर उसका जी चाहता था कि अपना कारनामा सुना सुना कर ख़ुशी मनाऊँ। मगर उस वक़्त वो आम तौर से तन्हा होता था और ऐसा भी होता तो भी कारनामे की बातें वो किस को सुनाता। पार्टी वाले तो सिर्फ़ ये सुनकर कि रक़म कितनी मिली है दूसरी बातें करने लगते और पार्टी से बाहर के लोगों से फ़न की बातें करने की ज़बरदस्त मुमानअत थी। रंडियों से, जिनके पास सिद्धू कभी कभी चला जाता था, जिस्मानी सुकून तो मिल जाता था लेकिन ऐसी गुफ़्तगु नहीं हो सकती थी। जिससे दिल को राहत मिले। रहा घर, सो आजकल तो सिद्धू को घर से उलझन होती थी क्योंकि वहां सिर्फ़ वही बातें मिलती थीं जिनसे उसको चिड़ थी।

    बस अगर दिल को कोई चीज़ बहला देती थी तो वो थी शराब। उसने कई जगहें बना रखी थीं पीने के लिए। एक जगह ठर्रा चलता था, दूसरी जगह व्हिस्की और तीसरी जगह व्हिस्की के साथ ख़ूबसूरत साक़ी भी मिल जाती थी। आज आमदनी ऐसी हुई थी। साथियों का हिस्सा, पुलिस का हक़ और मुशतर्का फ़ंड और उस्ताद के नज़राने के बाद भी उसके हिस्से में पाँच हज़ार आए थे। नोट भी इस्तिमाल शूदा थे। इसलिए उनको कटौती देकर बदलवाने की ज़रूरत थी। इतनी रक़म होने पर भी सिद्धू साक़ी वाले मैख़ाने की तरफ़ नहीं गया। बात ये थी कि चन्दर की सूरत बार-बार सामने रही थीं जिससे दिल में अजब उलट-पलट हो रही थी। एक तरफ़ तो चन्दर का बुरे वक़्त में काम जाना और दूसरी तरफ़ ये याद कि मेरी सीता को जो तमाम बच्चों में मुझे प्यारी थी, उसका बदमाश बेटा अग़वा कर के ले गया है। ऐसी कैफ़ियत में सिद्धू दारू घर में घुस गया और वहां एक घंटे में एक बोतल ठर्रा पी गया। जब नशे से झूमने लगा तो घर की तरफ़ चला। रास्ते में मिठाई की दूकान पड़ी। उसने कहा कि आज बहुत सी मिठाई ले लो। इसको देखकर बीवी और बच्चे ख़ुशी की चीख़ें मारेंगे तो ज़रा दिल बहल जाएगा।

    रास्ते में संभू की परचून की दूकान थी जो बंद थी। सिद्धू ने आहिस्ता-आहिस्ता खट खट की तो शंभू जो कि अंदर सो रहा था, उठ बैठा और बोला, कौन। सिद्धू ने नीची आवाज़ में कहा,

    अँगूठी।

    शंभू ने दूकान का एक गोशा खोल कर अँगूठीयों का बक्स सिद्धू को दे दिया। अब सिद्धू ने कहा, कुछ हिसाब भी है।

    अंदर जाओ।

    अंदर जा कर सिद्धू ने अपनी पाँच हज़ार की रक़म में से साढे़ चार हज़ार शंभू के पास रखवा दिए, दूकान वाले ने पूछा, कोई नोट बदलने वाला तो नहीं?

    नहीं।

    फिर हंसकर सिद्धू बोला, ऐसी रक़म से आज तुम महरूम रह गए।

    अँगूठीयों का सन्दूकचा लेकर सिद्धू दूकान के बाहर गया। वो हर शख़्स से यही कहता था कि मैं अँगूठीयों का कारोबार करता हूँ। लेकिन उसे यक़ीन था कि लोगों को इस बात का यक़ीन नहीं है। यहां तक कि ख़ुद उसकी बीवी और बच्चों को भी यक़ीन नहीं है। बीवी तो कभी कभी रात को पूछ लिया करती थी,

    सच सच बताओ कि तुम क्या कारोबार करते हो। कहीं कोकीन तो नहीं बेचते हो? लोग यही कहते हैं। जवाब में वो कहता था कि ऐसा शक क्यों दिल में लाती हो? क्या अँगूठियों से अच्छी आमदनी नहीं हो सकती है?

    घर में भारी फ़र्नीचर तो काफ़ी था। मसहरियाँ, तख़्त, मेज़ और कुर्सियाँ लेकिन चादरें और मेज़ पोश नज़र नहीं आते थे। बीवी ने सिद्धू को देखते ही आवाज़ लगाई, बच्चो पिताजी गए।

    दो बड़ी लड़कियाँ और दो छोटे लड़के बिस्तरों को छोड़कर गए और सिद्धू के पास मिठाई देखते हुए शोर मचाते उस पर टूट पड़े।

    लड्डू, लड्डू।

    मैं तो बर्फ़ी लूँगा।

    रस गुल्ला, रस गुल्ला। वाह वाह।

    सब चीख़ रहे थे। छीन झपट रहे थे। क़हक़हे लगा रहे थे। सिद्धू तमाशा देखकर ख़ुश हो रहा था। बीवी भी खाती रही लेकिन बिला शोर किए। फिर सिद्धू ने पूछा,

    शंकर कहाँ है।

    उस हरामी को सिनेमा की ऐसी लत पड़ गई है कि रोज़ देखता है, रोज़ देखता है, वहीं गया होगा।

    रोज़ सिनेमा देखता है? पैसा कहाँ से लाता है?

    क्या मालूम, ये नहीं देखते कि घर में कोई चीज़ नहीं टिकती। पलंग की दो चादरें थीं परसों तक, वो भी ग़ायब हो गईं।

    सिद्धू बिगड़ कर बोला, अभी तक खाने-पीने का सामान उड़ जाता था। अब चादरों की भी नौबत गई। तुम रोकती नहीं हो।

    लड़का जवान होने को रहा है, भला मेरी वो मानने लगा। तुम बच्चों की ख़बर लो वर्ना सब सीता की तरह बिगड़ जाऐंगे।

    ख़बर लो...ख़बर लो! जैसे मैंने कोई कसर छोड़ी है उनकी ख़बर गीरी करने में। रोज़ समझाता हूँ। बुरी हरकतों पर ख़ूब पीटता भी हूँ। महंगे स्कूलों में पढ़ाता हूँ, फ़ैशन के कपड़े पहनाता हूँ ताकि अच्छे लड़कों और लड़कियों से मेरे लड़के और लड़कियों से दोस्ती हो।

    कुछ याद कर के कहने लगा, सीता के पास जब एक लड़के का ख़त मैंने पकड़ लिया था तो सीता को कितना मारा था। अपने बच्चों के लिए मैंने क्या नहीं किया।

    बच्चे पूछते हैं कि पिता जी के पास पैसा कहाँ से आता है? जब कहूं कि अँगूठीयां बेचते हैं तो वो कहते हैं कि मुहल्ले वाले कहते हैं कि उनको अँगूठी बेचते किसी ने आज तक नहीं देखा।

    सिद्धू ग़ुस्से से बोला, तुम ये क्यों नहीं कहती कि मुहल्ले वाले हम लोगों से जलते हैं।

    मैं सब कुछ कहती रहती हूँ, लेकिन सुनता कौन है। अरे मुहल्ले वाले तो मुझसे भी यही बात पूछते हैं।

    सिद्धू बोला, इस साल अभी तक मैंने कीर्तन नहीं किया है। वो कर लूं तो मुहल्ले वालों का दिल साफ़ हो जाएगा।

    ये कह कर सिद्धू का मूड ज़रा सँभल गया। बीवी बोली,

    तुमने तो सीता के अग़वा की रिपोर्ट तक पुलिस में नहीं लिखवाई। फिर कहते हो कि बच्चों की ख़बर लेता हूँ।

    पुलिस का नाम सुनकर सिद्धू फिर भड़क उठा,

    पुलिस... पुलिस, तुमसे कितनी बार कहा है कि उसका नाम मेरे सामने लिया करो। रिपोर्ट लिखवाऊँगा तो उल्टा मुझे ही फाँस लेगी और जब तक तुम्हारे सब ज़ेवर हज़म कर लेगी तब तक वो जान नहीं छोड़ेगी। पुलिस...पुलिस।

    सिद्धू नागवार बहस को टालने के लिए कहने लगा, चलो, चाय बनाओ।

    क्या बातें करते हो, तुम तो जानते ही हो कि घर में जितनी भी शक्कर या दूध हो सब का सब एक ही दिन में उड़ जाता है। ज़रा सी चाय की पत्ती पड़ी हो तो हो?

    चलो उसी की चाय बनाओ शक्कर के बजाय बर्फ़ी डाल लूँगा।

    बीवी ने पहले ही कुछ मिठाई शंकर के लिए निकाल रखी थी। सिद्धू से चाय की ये तरकीब सुनकर उसने झपट कर बर्फ़ी की दस डलियां मिठाई के झापे से और निकाल लीं।

    चाय के आते आते सिद्धू का मिज़ाज सँभल चुका था। उसने बच्चों को जो देखा कि वो मिठाई खा कर ख़ुश हैं तो वो भी ख़ुश हो गया। उसे अपने बीवी बच्चों से गहरी मुहब्बत थी। इस वजह से जब भी अच्छी आमदनी हो जाती तो खाने की उम्दा उम्दा चीज़ें ज़रूर लाता था। दो दो सेर मिठाईयां, बीस बीस सेर आम, चार चार बड़े बड़े तरबूज़, टॉफ़ीयां और केक वग़ैरा। इस चीज़ ने बच्चों और बीवी को बेहद चटोरा बना दिया था। उन लोगों को ढंग की चीज़ पकाना तो आती नहीं थी। लेकिन फिर भी अजीब अजीब तरह के बदरंग और बदमज़ा हलवे से बना बना कर घी शक्कर को ख़त्म कर देते थे। इन हरकतों से सिद्धू बेहद चिड़ता था और कभी कभी तो ग़ुस्से में आकर एक एक बच्चे को धनक कर रख देता था।

    चाय बनते और पीते काफ़ी रात गई। तब सिद्धू घड़ी देखकर कहने लगा,

    ये कौन सा फ़ीलम है जो अभी तक ख़त्म नहीं हुआ।

    शंकर ने आज तक तो इतनी देर नहीं लगाई थी, जाने मुआमला क्या है।

    दोनों घबरा गए। सिद्धू ने कहा, किस सिनेमा घर में गया है?

    वो मुझसे कह कर कब जाता है।

    कहाँ जाऊं उसे ढूँढने।

    (4)

    सिद्धू रात बहुत देर को सोया था। दिन को दस के क़रीब आँख खुली। उसने फ़ौरन ही पुकारा, शंकर।

    बीवी ने आँसू भरी आवाज़ में जवाब दिया, अभी तक नहीं आया।

    नहीं आया? तुम तो कहती थीं कि सिनेमा देखने गया है।

    मैं ऐसा ही समझती थी क्योंकि कई रोज़ से सिनेमा के नाम से आधी आधी रात तक ग़ायब रह चुका था। मैं मुहल्ले में सब जगह पूछ आई हूँ। किसी को भी शंकर की कोई ख़बर नहीं। जो लड़के उस के साथ खेलते हैं वो कहते हैं कि शंकर ने कई दिन हुए हमसे लड़ाई कर के बोलना छोड़ दिया था।

    सिद्धू घबरा कर उठ बैठा और सोचने लगा कि क्या किया जाये। फिर बीवी को ढारस देते हुए बोला,

    फ़िक्र करो, हमारे गुरूजी के हाथ बहुत लंबे हैं। वो पुलिस के ज़रिये पता लगालेंगे। मैं जाता हूँ उनके पास।

    इस मुहल्ले में दस साल हुए सिद्धू ने बीस हज़ार की पगड़ी देकर मकान किराए पर लिया था। तब से वो मुहल्ले वालों की ख़ुशी और ग़म में बराबर शरीक होता रहा। साल में जन्माष्टमी धूम से मनाता था और एक बार कीर्तन भी करता था। उसके लड़के और लड़कियां अच्छे स्कूलों में पढ़ते थे। इन बातों की वजह से मुहल्ले वालों से अच्छे ताल्लुक़ात थे। लेकिन जब लोगों को सीता के अग़वा का हाल मालूम हुआ तो वो ज़रा खींच कर मिलने लगे। इसका बड़ा दुख था सिद्धू को और उसको मुहल्ले वालों से ये कहते बुरा लग रहा था कि रात से बड़ा लड़का भी ग़ायब है। कहीं ऐसा हो कि मुहल्ले वाले समझें कि सिद्धू का घराना ही ऐसा है। इसलिए जहां भी वो गया बराह-ए-रास्त शंकर की बात नहीं पूछी। सिर्फ़ ये टोह ही लगाने की कोशिश की कि किसी को उसके बारे में इल्म है या नहीं।

    सिद्धू का शक था कि शंकर अगरचे बारह साल का है लेकिन चेहरे मुहरे का अच्छा है। इसलिए हो सकता है कि उसे कोई लड़की अग़वा कर ले गई हो। लेकिन जब मुहल्ले वालों ने ऐसी कोई बात नहीं बताई तो वो सोचने लगा कि फिर क्यों और कहां गया।

    तलाश से मायूस हो कर सिद्धू अपने काम के लिए अँगूठी का बक्स लेने शंभू की दूकान पर आया। तब शंभू ने कहा,

    गुरूजी की आज्ञा है कि आज मुक़र्ररा वक़्त पर तुम बिरला मंदिर के सामने के चायख़ाने में उनसे मिल लो।

    आज मंगल का दिन था इसलिए मुक़र्ररा वक़्त रात के दस बजे होता था। सिद्धू को फ़िक्र हो गई कि गुरूजी ने इस तरह क्यों बुलाया है और गुरूजी इस बात को नापसंद करते हैं कि एक आदमी उनसे बिला किसी ज़रूरत के हफ़्ते में दो दिन से ज़ाइद मिले। है ज़रूर कोई बेहद अहम बात। क्या हो सकती है वो? ये सोचता हुआ सिद्धू दौरा करने निकल खड़ा हुआ।

    अपने हलक़े में सिद्धू का वक़्त था दिन को ढाई बजे से लेकर नौ बजे रात तक। उसके हलक़े में तीन सिनेमा घर, चार बड़े होटल और दो भीड़भाड़ वाले बाज़ार थे। उसके अपने साथ एक मददगार ज़रूर होता था। सोचने लगा कि कल तो मोहन था, हो सकता है कि आज गुरूजी ने यादव को भेजा हो। वो भी काफ़ी होशयार है। रंग-महल सिनेमा के आस-पास हो सकता है।

    सिद्धू का ख़याल दुरुस्त निकला। यादव रंग-महल सिनेमा के टिकट की ब्लैक कर रहा था। सिद्धू की नज़रों ने उस वक़्त ये भी देखा कि एक लड़का एक लड़की को जो तन्हा मालूम होती है, आँखों से इशारे कर रहा है। सिद्धू अंदाज़ा लगाने लगा कि ये इशारे कहीं ये तो नहीं बताते हैं कि दोनों किसी तयशुदा प्रोग्राम के तहत आए हैं। ऐसे प्रोग्राम के तहत आने वाले जोड़े के पास आम तौर से अच्छी रक़म होती है।

    सिद्धू को याद आया कि पंद्रह साल पहले इसी सिनेमा हाल में मैंने जो कारनामा अंजाम दिया था उसने शहर में कैसा मेरा डंका बजा दिया था।

    हुआ ये था कि सिद्धू ने अभी काम शुरू ही किया था कि इस सिनेमा हाल में देखा कि पुख़्ता सिन की एक लेडी ख़ूब बनी संवरी गले में बेहद क़ीमती हार पहने टैक्सी से उतर कर सिनेमा हाल के अंदर आकर तस्वीरें देखने लगी। वो बार बार गेट की तरफ़ भी देखती जाती थी। ज़रा देर में किराए के स्कूटर पर एक जवान आया और इधर उधर देखने लगा। जब उसकी नज़रें लेडी से मिलीं तो दोनों के चेहरे चमक उठे। मगर दोनों ने दूसरी तरफ़ मुँह मोड़ लिये। सिद्धू समझ गया कि चोरी छिपे की मुलाक़ात है। ज़रा देर में लेडी तो हाल में चली गई लेकिन जवान टहलता रहा। जब असल पिक्चर शुरू हुई तो वो अंदर गया। उस दिन टिक्टों की ब्लैक करने वालों में यादव था ही। उससे टिकट लेकर सिद्धू अन्दर चला गया और एक तरफ़ खड़ा हो कर लेडी को देखने लगा। एक मौक़ा पर उसका हार चमका तो देखा कि उसके गले में जवान की बाहें पड़ी हुई हैं। अब सिद्धू को मालूम हो गया कि इन दोनों में क्या सिलसिला है। फिर तो वो ताक में रहा। आख़िर पता चला कि तीसरे चौथे दिन वो दोनों आते हैं और जवान सीटें बुक करा लेता है।

    फिर सिद्धू ताक में रहा, एक दिन जब जवान ने सीटें बुक करा लीं तो सिद्धूने जवान की सीटों के दोनों तरफ़ की सीटें बुक करालीं।

    उस दिन भी वही हुआ कि पहले लेडी जा कर अपनी सीट पर बैठ गई। सिद्धू फ़ौरन जा कर उसके बराबर की सीट पर बैठ गया। जब पिक्चर शुरू हुई तो जवान गया और चंद मिनट के बाद उसने लेडी के गले में बाहें डाल दीं। इधर उस की बाहें पड़ीं उधर सिद्धू का हाथ गया और उसने डोरी काट दी। जैसे ही जवान ने लेडी को अपनी तरफ़ झुकाया। सिद्धू ने लेडी के सीने पर हाथ ले जा कर हार खींच लिया। लेडी चौंकी ज़रूर, लेकिन जैसा कि सिद्धू का ख़याल था वो ये समझी कि जवान का हाथ इधर गया है। इसलिए ज़रा सी सिसकी भरी और चुप रही। सिद्धू सीट पर दूसरी तरफ़ दब गया। अभी दोनों बोस-ओ-कनार में मसरूफ़ थे कि ये उठकर बाहर चला गया।

    इस कारनामे में सिर्फ़ हाथ की सफ़ाई ही नहीं थी बल्कि वो चीज़ भी थी जिसे गुरूजी कहते हैं, शिकार के दिमाग़ और मिज़ाज का अंदाज़ा लगाना। फिर सिद्धू ने ये कारनामा अकेले अंजाम दिया था। इन बातों की वजह से शहर भर के जेब कतरे सिद्धू को छोटा उस्ताद मान कर इज़्ज़त करने लगे।

    ये क़िस्सा याद आने से सिद्धू के हाथ कुलबुलाने लगे, नया कारनामा करने के लिए। लेकिन उस वक़्त एक लड़का नज़र गया जिस पर सिद्धू को शंकर का शक गुज़रा। मगर जब लपक कर उसके पास गया तो वो कोई और निकला। शंकर के ग़ायब होने की बात याद आते ही वो बेजान सा हो गया और उसने तय कर लिया कि आज मैंने कोई काम किया तो हाथ बहक सकता है। इसलिए छुट्टी मना लो और देखो कि गुरूजी क्या कहते हैं। बचा हुआ पैसा काफ़ी था इसलिए फ़िक्र नहीं थी। उसने यादव को इशारा कर दिया कि अपने काम में लगे रहो। फिर टहलता हुआ अपने ख़ास शराबख़ाने चला गया। वहां पी कर रंडी के घर जा पहुंचा।

    जब सिद्धू नौ बजे गुरूजी के पास गया तो वहां भीकू और सरदार मस्ताना सिंह बैठे हुए थे। ये दोनों गुरूजी की पार्टी के नहीं थे और स्मगलिंग वग़ैरा का कारोबार करते थे। सिद्धू को देखकर गुरूजी ने बहुत मुहब्बत से बुला कर बिठाया और जो बातें कर रहे थे वो जारी रखीं। बोले, भीकू! तुम ठीक ही कह रहे हो कि औरतें नागिन होती हैं। उनके काटे का मंत्र नहीं और लड़कियां जो देखने में भोली-भाली नज़र आती हैं, उनका काटा तो पानी नहीं पी सकता। इन्होंने जिस जिस तरह मुझे गिराया है क्या बताऊं, एक दिन एक शागिर्द की औरत मेरे घर एक बजे रात को गई लेकिन शागिर्द को बेटा समझता हूँ और उसकी बीवी को बहू। इसलिए सर झुकाए बैठा रहा। इसी तरह रात कट गई। लेकिन सुबह उसने ऐसा फे़अल किया और वो हंगामा खड़ा किया कि तुम लोगों को क्या बताऊं। नतीजा ये हुआ कि मुझे उसको रखना पड़ा। लेकिन बात उसी जगह ख़त्म नहीं हो गई। दो साल के बाद वो एक गवय्ये के साथ इस उम्मीद पर भाग गई कि सिनेमा में हीरोइन बन जाएगी। उसके बाद मैंने एक अच्छे घर की लड़की से शादी कर ली। मगर वो भी दो साल के बाद भाग गई वो किस के साथ भागी? मेरे ही एक शागिर्द के साथ। फिर मैंने एक बेवा को घर डाल लिया। वो रही वफ़ादार। बेचारी दो साल हुए भगवान के घर चली गई। मगर वाह-वाह क्या बीवी थी वो! अब औलाद क़िस्मत में नहीं थी तो इसको क्या करूँ?

    सिद्धू बोला, हाँ गुरूजी! वो तो देवी थी। मुझसे तो औलाद की तरह मुहब्बत करती थी।

    मैं उसको समझाया करता था कि मेरे शागिर्द ही मेरे बेटे हैं। तुम भी उनको यही समझो।

    भीकू ने कहा, जैसे आप गुरु हैं वैसे आपके चेले। मैंने सुना कि कल किस तरह सिद्धू ने काम किया। सेठ अभी झुका ही था कि पलक झपकते ही उनकी जेब उड़ गई।

    मस्ताना बोला, भाई भीकू ये मश्शाक़ी हर एक के बस की चीज़ नहीं।

    गुरूजी ने चाय मँगवाई। चाय के आने पर ज़रा देर ख़ामोशी रही। फिर गुरूजी सिद्धू की तरफ़ गहरी नज़रों से देखकर बोले,

    ये बताओ सिद्धू, तुमको मैंने अपना बेटा समझा कि नहीं?

    गुरूजी! मेरे तो सब कुछ तुम ही हो। तुम्हारी वजह से मैं कुछ बन गया। वर्ना गली गली मारा मारा फिरने वाला लौंडा था।

    अच्छा तो अब मेरी एक बात मानो। तुम आज से सीता को मेरी बेटी समझो और उसका मुआमला मुझ पर छोड़ दो।

    ऐसी निकम्मी लड़की को बेटी बनाओगे?

    तुम तो मेरा कहा मानो। कह दो कि वो मेरी बेटी है।

    आपकी आज्ञा है तो मैं मानता हूँ।

    तो अब सुनो एक नया मुआमला। मैंने भीकू और सरदार को इसमें मदद के लिए बुलाया है। कल रात में तीन बजे के क़रीब अपने कमरे पर जो गया तो देखता क्या हूँ कि दहलीज़ पर कोई लड़की सो रही है। मैंने डाँटा

    कौन है तो वो बोली, मैं हूँ सीता, सिद्धू महाराज की बेटी।

    ये कह कर मेरे क़दमों पर गिर कर फूट फूटकर रोने लगी। मुझे तरस गया। इंअंदर ले जा कर उसका मुँह धुलाया। उस वक़्त पता चला कि उसने परसों से कुछ नहीं खाया है। जो कुछ मेरे घर पर था उसको खिलाया। चाय पिलाई फिर हाल पूछा तो मालूम हुआ कि चन्दर के लौंडे राम भरोसे ने कानपुर स्टेशन पर अटैची उड़ाने की कोशिश की थी तो वो पकड़ा गया।

    सिद्धू ने कहा, इतने बड़े जेब कतरे की औलाद हो कर चोरी करते हरामी को शर्म नहीं आई।

    गुरूजी बोले, अरे भाई आजकल के लौंडे बुरी सोहबत में पड़ कर ख़ानदानी इज़्ज़त को भुला बैठे हैं। कानपुर में कौन था जो राम भरोसे की पैरवी करता। नतीजा ये हुआ कि दो साल की सज़ा हो गई। सीता ने उसके लिए बहुत दौड़ भाग की और जो शख़्स भी काम का नज़र आया उसके सामने गिड़ गिड़ाई। मगर कुछ हासिल नहीं हुआ और उल्टा पुलिस वालों ने उसको ख़राब करना चाहा। ये हाल देखकर वो कानपुर से चली आई। किसी तरह हमारे वकील का पता लगा कर उनके पास गई। इन्होंने डाँट कर निकाल दिया और कहा मैं चोरों-उचक्कों का मुक़द्दमा नहीं लेता हूँ। लड़की ने ख़ुशामद दर-आमद कर के किसी तरह मेरा पता पूछ लिया और मेरे यहां आगई।

    सिद्धू का पारा चढ़ गया और गर्म हो कर बोला,

    गुरूजी अब उस हरामज़ादी का क्या बनाओगे। निकाल दो उसको और कहो जाये वो जेल में अपने बदमाश के पास।

    देखो तुम सीता को मेरी बेटी बना चुके हो, अब ख़ामोश रहो। मैंने सोच लिया है कि क्या करूँगा। पहली बात तो ये कि वो अबॉर्शन कराने पर राज़ी हो गई है। सरदार की बीवी बड़ी होशयार दाई है। वो ये काम कर देगी और हाँ मैंने ये भी मालूम कर लिया है कि सीता और राम भरोसे की शादी नहीं हुई है। राम भरोसे ने ये किया था कि किसी मंदिर में ले जा कर उसकी मांग में सिंदूर भर दिया था और कहा था कि अब तुम हो गईं मेरी बीवी।

    कुछ दिया भी उसने? कुछ साथ लेकर आई है?

    गुरूजी तल्ख़ हंसी हंसी कर बोले, हाँ लाई है एक सौ चालीस बाल प्वाईंट पेन। उनके कोई पच्चीस रुपया दे दे तो समझो कि बहुत दे दिए। बस एक पार्कर ज़रूर ऐसा है जिसके कुछ दाम मिल सकते हैं।

    पार्कर का नाम सुनकर सिद्धू चौंक पड़ा।

    किस रंग का है वो?

    नीला। क्यों तुमने रंग क्यों पूछा?

    नीला, सुनकर सिद्धू मुस्कुरा दिया, बात बना कर कहने लगा, एक जगह पार्कर देने का मैंने वादा किया है और कहा है कि अच्छे रंग का होगा।

    गुरूजी ने कहा, हूँ, मगर इस हूँ से ये ज़ाहिर था कि वो समझ गए हैं कि सिद्धू कुछ छुपा रहा है। ज़रा देर ख़ामोश रह कर गुरूजी ढारस देने वाले अंदाज़ से कहने लगे, इधर कई नौजवान मेरे शागिर्द बन रहे हैं। देखूँगा कि सीता के लायक़ कौन है?

    गुरूजी, मुझे अब अपने पेशे से नफ़रत हो गई है। जेब कतरे को मैं दामाद नहीं बनाऊँगा। ये भी कोई ज़िंदगी में ज़िंदगी है। मेरा घर तो सराय से बदतर है और बच्चे जिनसे मुहब्बत करता हूँ। उनसे तो गली के कुत्ते बेहतर होंगे। मैं तो अब शंभू से माल उधार ले कर उसी तरह की दूकान खोलूँगा और उसी की तरह ईमानदारी की आमदनी से जैसी भी कटेगी काट लूँगा।

    शंभू का नाम सुनकर तीनों हंस पड़े, भीकू ने ज़ोर से कहा, उस से बड़ा जेबकतरा शहर भर में नहीं मिलेगा। वो तो तराज़ू की डंडी से ग्राहकों की जेब काटता है और तरह से भी काटता है। हमारे सौ के माल के पच्चास भी नहीं देता। चालीस और पैंतालीस पर मोल करता है। जो रुपया उसके पास रखो उसको सूद पर चलाता है और उसमें से हमको एक पैसा भी नहीं देता है।

    सरदार बोला, जेब कौन नहीं काटता है। मेरी पत्नी से पूछो जो कि अस्पताल में काम करती है, डाक्टर किस-किस तरह मरीज़ों की जेब काटते हैं।

    भीकू, ये जो तीसरे-चौथे दिन हम में से किसी किसी के हाथ भारी रक़म ऐसी जाती है जिसकी रिपोर्ट पुलिस में नहीं की जाती है। वो क्या होती है? सब जानते हैं कि वो नंबर दो की रक़म होती है। यानी किसी किसी की जेब से उड़ाई हुई। ऐसी ही रकमों से तो लोग लखपति और करोड़पती बनते हैं। अब बताओ कि असली जेब कतरे कौन हैं? वो लोग या हम लोग।

    गुरूजी संजीदा आवाज़ में कहने लगे,

    सारी दुनिया जेब काटती है। सुदर्शन वकील को लो जो हमारे मुक़द्दमे लड़ता है। साधू मल सेठ को लो जो हमारी ज़मानतें लेता है। उसको माहवार रक़म भी दो और जब कोई मुक़द्दमा हो तो उसके पैसे अलग दो। दो-दो रक़में एक ही काम के लिए। ये जेब काटना नहीं तो और क्या है। फिर अदालत को लो वहां कौन है जो मज़लूम की जेब नहीं काटता है। सब देख चुका हूँ सिद्धू। तुम्हारा काम शुरू ही से अच्छा चल रहा है। इसलिए तुमने अभी ऊंच-नीच नहीं देखी। देखोगे तब मालूम होगा कि जेब कतरे बहुतों से अच्छे होते हैं।

    लेकिन गुरूजी, अब मेरा दिल उखड़ रहा है इस काम से बल्कि उसकी वजह से ज़िंदगी से नफ़रत होती जा रही है।

    सिद्धू अक़ल के नाख़ुन लो। जिस दिन तुम अलग हो गए तुम्हारी बिरादरी वाले दुश्मन हो जाऐंगे तुम्हारे। क्योंकि सब डरेंगे कि जाने कब किस के राज़ पुलिस को बता दो। ऐसी बिरादरी में आकर कोई अलग नहीं हो

    सकता है। होता तो जान से हाथ धो लेता है। ये भी देखो कि हम लोग किस शराफ़त से ज़िंदगी गुज़ारते हैं और धरम करम के काम कितने करते हैं।

    सिद्धू आँसू भरी आवाज़ में कहने लगा, गुरूजी कल शाम से शंकर भी तो ग़ायब है। आज दोपहर तक तो नहीं आया था। मालूम नहीं उसका क्या हुआ। ज़िंदा भी है या नहीं।

    आते ही तुमने ये बात क्यों नहीं दी।

    सीता की बात जो गई थी। वो भी औलाद, ये भी औलाद और दोनों निकम्मे।

    मोहन आता होगा थाने से ख़बरें लेकर।

    आधा घंटा इधर उधर की बातों में गुज़र गया। आख़िर मोहन गया। उसने सिद्धू को गहरी नज़रों से देखा और फिर बैठ गया। गुरूजी ने कहा, बहुत देर कर दी?

    गुरूजी, आजकल कई नए अफ़्सर गए हैं जो बहुत ऊंचे उड़ते हैं। शहर में अब सिर्फ़ एक दारोगा और चंद कांस्टेबल रह गए हैं अपने मतलब के। लेकिन वो भी हालात देखकर हाथ ज़्यादा फैलाने लगे हैं।

    गुरूजी, कोई ख़ास बात?

    मोहन ने गहरी गहरी नज़रों से सिद्धू की तरफ़ देखकर पूछा, सिद्धू कुछ मालूम है तुमको कि शंकर कहाँ है?

    नहीं, क्या कोई ख़बर मिली?

    मोहन ने गुरूजी की तरफ़ इजाज़त तलब निगाहों से देखा, उसने कहा, जो बात हो साफ़ साफ़ कहो। ये मौक़ा ऐसा ही है।

    मोहन कहने लगा, कल रात पुलिस ने काले नाले की पुलिया के नीचे से एक मर्द और एक बारह साला लौंडे को रंगे हाथों गिरफ़्तार किया है।

    सिद्धू बहुत ज़ोर से कड़क कर बोला, झूट ऐसा नहीं हो सकता है। शंकर होगा।

    मोहन ने जवाब दिया, दोनों का डाक्टरी मुआइना हो चुका है और दोनों हवालात में बंद कर दिए गये हैं।

    कौन है वो मर्द?

    मुरली।

    वो बदमाश मैंने हज़ार बार शंकर से कहा था कि उसके साथ घूमो फिरो मत। ज़बरदस्ती की होगी इस मादर...

    शंकर ने बयान दिया है कि मुरली उसको सिनेमा दिखाता था और शो के बाद काले नाले की पुलिया के नीचे ले जाकर...

    अब मैं समझा कि ये रोज़ रोज़ का सिनेमा क्या था। क्या शंकर ने भी इक़बाल किया है? इतना भी आया कि उसको कि पुलिस के सामने बयान कैसा दिया जाता है।

    गुरूजी ने कहा, सिद्धू बात समझो। पुलिस क़बूलवाने पर आती है तो चुप कौन रह सकता है। तुम तो जानते ही हो ऐसी बातों को। वो नाख़ून घिसवाते हैं, सिगरेट से बदन दागते हैं और जाने क्या-क्या करते हैं।

    सिद्धू तिलमिला कर उठा, मैं जाता हूँ और मुलाक़ात के लिए इजाज़त मांगता हूँ। इसी वक़्त हरामज़ादे का गला दबा दूँगा। ये औलाद है या हरामी का पिल्ला।

    सिद्धू जोश में चंद क़दम बढ़ा था कि गुरूजी चिल्लाए, सिद्धू तुम हम सबको फंसवा दोगे।

    वो चलते हुए बोला, गुरूजी मैं सिर्फ़ अपने बेटे की जान लूँगा। क्या बाप का हक़ इतना भी नहीं?

    क्या मैं तुम्हारा कोई नहीं हूँ?

    सिद्धू के बढ़ते हुए क़दम रुक गए और वो बोला, मेरे लिए तो अब तुम ही सब कुछ हो।

    गुरूजी ने उसकी तरफ़ ग़ौर से देखकर कहा, हमारे पास पैसा भी है। वकील भी और दारोगा भी, घबराओ नहीं।

    सिद्धू हौले हौले क़दम धरता हुआ वापस गया और बैठ कर सर पकड़ कर रोने लगा।

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