बगूले
स्टोरीलाइन
बगोले लतीका रानी नामी एक ऐसी औरत की कहानी है जो अपनी जिन्सी ख़ाहिशात को दौलत के तराज़ू में तौलती है और साथ ही अपनी अना की तस्कीन के लिए मर्द पर हावी होने को तर्जीह देती है। इसी वजह से लतीका रानी एक मासूम लड़के को अपने जाल में फाँसने और जिन्सी जज़्बे की तस्कीन के लिए घर बुलाती है लेकिन लड़के की हरकतें उस की तवक़्क़ो के बर-अक्स होती हैं और अपनी अना को मजरूह होता हुआ देखकर वो उसे घर से निकाल देती है।
क़द-ए-आदम आईने के सामने खड़ी लतीका रानी अपने बरहना जिस्म को मुख़्तलिफ़ ज़ावियों से घूर रही थी। उसके होंटों पर एक मुतमइन सी फ़ातिहाना मुस्कुराहट थी और आँखों में पुर-असरार सी चमक। एक ऐसी चमक जो शिकारी की आँखों में उस वक़्त आती है जब वो अपना जाल अच्छी तरह बिछा चुका होता है और होंटों पर एक मुतमइन सी मुस्कुराहट लिए एक गोशे में बैठा शिकार का इंतिज़ार करता रहता है। लतीका रानी ने भी अपने जाल बिछाए थे और फ़त्ह यक़ीन-ए-कामिल उसकी आँखों में चमक और होंटों पर मुस्कुराहट बन कर रेंग रहा था। यूँ तो लतीका रानी ने शिकार कई किए थे और क्लब में बड़ी शिकारी मशहूर थी। लेकिन ये शिकार अपनी नौइ’यत का बिल्कुल अनोखा था और अपनी इस कामयाबी पर फूले न समाई थी। उसने मिस चौधरी की तरह कभी पैसे के लिए शिकार नहीं किया था। उसके पास पैसे की कमी भी न थी। शहर में कपड़े की तीन-तीन मिलें थीं। वो महज़ जिन्सी आसूदगी के लिए लोगों से रस्म-ओ-राह बढ़ाती थी। मिस चौधरी से तो उसको शदीद नफ़रत थी, क्योंकि मिस चौधरी ने हमेशा पैसों पर जान दी थी और जाहिल और भद्दे क़िस्म के लख-पतियों के साथ घूमती थी जिनके पीले-पीले बद-नुमा दाँतों से तो ऐसी बू आती थी कि लतीका रानी को उनसे बातें करते हुए नाक पर रूमाल रख लेना पड़ता था। लतीका रानी को इस बात का फ़ख़्र था कि उसने कभी ऐसे-वैसों को लिफ़्ट नहीं दी। पिछली बार भी उसके साथ एक माहिर-ए-नफ़्सियत को देखा गया था। ये और बात थी कि वो फिर जल्द ही इन लोगों से उकता जाती थी।
लतीका रानी का मर्दों के मुतअ’ल्लिक़ वही ख़याल था जो बा’ज़ मर्दों का औरतों के मुतअ’ल्लिक़ होता है। यानी मर्दों को बिस्तर की चादर से ज़ियादा नहीं समझती थी कि जब मैली हो जाए तो बदल दो और इसलिए कोई चादर उसके पास एक हफ़्ते से ज़ियादा नहीं टिक पाती। उसके मुतअ’ल्लिक़ ये मशहूर था कि वो हमेशा जवान और तनोमंद मुलाज़िम रखती है और आए दिन उन्हें बदलती रहती है और ये बात सच थी। आजकल उसके पास एक नौजवान देहाती मुलाज़िम आकर रहा था जो वक़्त बे-वक़्त उसको बड़ा सहारा देता था। ख़ुसूसन उस दिन तो वो उसके बड़ा काम आया था जब वो नौजवान इंजीनियर उसके साथ बड़ी रुखाई से पेश आया था और उसकी पेशकश को ठुकराकर मिसिज़ दुर्गादास के साथ पिक्चर देखने चला गया था। उस दिन लतीका रानी ने हद से ज़ियादा पी थी और कोई आधी रात को क्लब से लौटी थी। क्लब से आकर सीधी मुलाज़िम के क्वार्टर में घुस गई थी और उस देहाती मुलाज़िम को उसने सुब्ह तक एक दम निचोड़कर रख दिया था। फिर जैसे उसकी तसकीन नहीं हुई थी। उस इंजीनियर को खोने का दर्द और बढ़ गया था। मिसिज़ दुर्गादास के लिए लतीका रानी का दिल नफ़रत से भर गया था क्योंकि ये कोई पहला वाक़िआ’ नहीं था। मिसिज़ दुर्गादास उससे ज़ियादा मंझी हुई शिकारी थी और उसने उसके कई शिकार बातों ही बातों में उड़ा लिए थे। उससे बदला लेने के मंसूबे वो रात-दिन बनाती रहती और उस दिन जब मिस्टर खन्ना के यहाँ पिकनिक का प्रोग्राम बनाने गई तो इस नौ-उ’म्र लड़के को देखकर उसको ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके ज़ख़्मों पर मरहम रख दिया है। वो सोफ़े पर बैठा “लाईफ़” की वरक़-गरदानी में मसरूफ़ था।
“मिस्टर खन्ना हैं।?”, लतीका रानी ने उसको घूरते हुए पूछा।
“जी। वो तो पूना गए हुए हैं।”, उसने चौंक कर लतीका रानी की तरफ़ देखा और बड़ी मा’सूमियत से पलकें झपकाईं। लतीका रानी को उसका इस तरह पलकें झपकाना कुछ इतना अच्छा लगा कि वो बे-इख़्तियार उसके क़रीब ही सोफ़े पर बैठ गई।
“आपको तो यहाँ पहली बार देखा है।”
“जी हाँ। एक मुलाज़िमत के सिलसिले में आया था।”
“ओह तो आप मालती के भाई हैं।”, लतीका रानी ने मअ’नी-ख़ेज़ मुस्कुराहट के साथ पूछा।
जवाब में उसकी नज़रें झुक गईं और चेहरे पर नदामत की लकीरें सी उभर आईं।
“मालती तो मिस्टर खन्ना के साथ गई होगी।”
“जी हाँ...”, उसने नज़रें झपकाते हुए जवाब दिया।
लतीका रानी उसको बड़ी दिलचस्पी से देख रही थी। आँखें ख़ासी बड़ी-बड़ी और पुर-कशिश थीं और कुछ कहते हुए वो कई बार पलकें झपकाता और बहुत सादा-ओ-मा’सूम नज़र आता। मसें कुछ भीग चली थीं और होंट बहुत पतले और बारीक थे। चेहरे के साँवलेपन ने उसको और ज़ियादा पुर-कशिश बना दिया था। लतीका रानी का जी चाहा कि उसके होंटों को छू कर देखे कितने नर्म-ओ-नाज़ुक हैं। लम्हा भर के लिए उसको अपनी इस अ’जीब सी ख़्वाहिश पर हैरत हुई और वो मुस्कुराती हुई उसके थोड़ा क़रीब सरक आई। लड़के ने कुछ चोर नज़रों से लतीका की तरफ़ देखा और जल्दी-जल्दी “लाईफ़” के वरक़ उलटने लगा। उसके चेहरे पर पसीने की बूँदें फूट आई थीं और चेहरा किसी हद तक सुर्ख़ हो गया था। लतीका उसकी इस परेशानी पर मुस्कुरा उठी। वो उसके और क़रीब सरक आई। उसकी घबराहट से वो अब लुत्फ़-अंदोज़ होने लगी थी। लतीका की भी निगाहें “लाईफ़” के उलटे हुए सफ़्हों पर मर्कूज़ थीं। एक जगह नीम-उ’र्यां तस्वीर आई और लड़के ने फ़ौरन वो वरक़ उलट डाला लेकिन दूसरी तरफ़ बोसे का मंज़र था। उसने कुछ घबराकर लतीका की तरफ़ देखा और “लाईफ़” बंद करके तिपाई पर रख दिया।
“आप कुछ परेशान हैं?”, लतीका ने शरारत भरी मुस्कुराहट से पूछा।
“जी नहीं तो...”, उसके लहजे से घबराहट साफ़ अ’याँ थी। वो घबराहट में अपनी उँगलियाँ चटख़ा रहा था।
“आपकी उँगलियाँ तो बड़ी आर्टिस्टिक हैं।”, यकायक वो उसकी पतली-पतली उँगलियों की तरफ़ इशारा करती हुई बोली,
“लेकिन मुझमें तो कोई आर्ट नहीं है।”
इस बार वो भी मुस्कुराया और लतीका झेंप गई।
“आपको पामिस्ट्री पर यक़ीन है?”, लतीका झेंप मिटाती हुई बोली।
“थोड़ा बहुत।”
“फिर लाईए आपका हाथ देखूँ।”
और लतीका उसके हाथों की लकीरें देखने लगी। उसकी हथेली पसीने से एक दम गीली थी। लतीका की उँगलियाँ और हथेली भी पसीने से भीग गईं और उसको अ’जीब सी लज़्ज़त का एहसास हुआ। उसके जी में आया लड़के की हथेली को अपने गालों से ख़ूब रगड़े और उसकी हथेली का सारा पसीना अपने गालों पर मल ले।
“आपका हाथ तो बड़ा नर्म है। ऐसा हाथ तो बड़े आदमियों का होता है।”
“लेकिन मैं तो बड़ा आदमी नहीं हूँ।”
“आप बहुत जल्द मालदार हो जाएँगे। ये लकीर बताती है।”
“लेकिन भला मैं कैसे मालदार हो सकता हूँ?”, उसने बहुत मा’सूमियत से कहा।
“हो सकते हैं।”, यकायक लतीका रानी का लहजा बदल गया और लड़के ने इस तरह चौंक कर उसको देखा जैसे वो पागल हो गई हो।
“मेरे यहाँ आईए तो इत्मीनान से बातें होंगी। आएँगे ना।?”
“जी। कोशिश करूँगा।”
“कोशिश नहीं ज़रूर आईए। ये रहा मेरा पता।”, लतीका रानी उसको अपना मुलाक़ाती कार्ड देती हुई बोली और उसको हैरत-ज़दा छोड़कर कमरे से बाहर निकल गई। फिर यकायक मुड़ी और क़रीब आकर बोली,
“चलिए कहीं घूमने चलते हैं।”
“जी मुझे... मुझे अभी एक ज़रूरी काम है।”, उसकी आवाज़ कुछ फंसी-फंसी सी थी।
“आप इतने नर्वस क्यों हैं?”, लतीका ने बड़े प्यार से पूछा। लतीका को वो ऐसा नन्हा सा ख़ौफ़-ज़दा परिंदा मा’लूम हो रहा था जो अपने घोंसले से निकल कर खुले मैदान में आ गया हो और जंगली दरिंदों के दरमियान घिर गया हो।
“आने की कोशिश करूँगा।”
लतीका रानी मुस्कुराई और कमरे से बाहर निकल गई। कार में बैठ कर एक-बार दरवाज़े की तरफ़ देखा, वो गेट के पास खड़ा पलकें झपका रहा था। लतीका को बे-इख़्तियार हँसी आ गई। उसने हाथ के इशारे से उसको क़रीब बुलाया। जब वो थोड़ा झिजकते हुए क़रीब आया तो बोली, “आज शाम सात बजे इंतिज़ार करूँगी।”
और फिर मुस्कुराते हुए उस पर एक आख़िरी नज़र डाली और मोटर स्टार्ट कर दी।
घर पहुँच कर वो सीधी ग़ुस्ल-ख़ाने में घुस गई और अपने सारे कपड़े उतार दिए। एक दफ़ा’ अपने उ’र्यां जिस्म को ग़ौर से देखा और शावर खोल कर अकड़ूँ बैठ गई। पुश्त पर पड़ती हुई पानी की ठंडी फुवारें उसे अ’जीब लज़्ज़त से हम-किनार कर रही थीं। वो बीसियों दफ़ा’ इस तरह नहाई थी लेकिन ऐसा अ’जीब सा एहसास कभी नहीं हुआ था। कुछ देर बाद तौलिए से जिस्म ख़ुश्क करती हुई बाहर निकल आई। अपने कमरे में आकर तौलिया पलंग पर फेंक दिया और क़द-ए-आदम आईने के सामने खड़ी हो कर बरहना जिस्म को हर ज़ाविए से देखने लगी।
वो आएगा ज़रूर आएगा। उसका दिल कह रहा था। होंटों पर फ़ातिहाना मुस्कुराहट रेंग रही थी और आँखों में पुर-असरार ख़्वाहिशों के जुगनू रेंग रहे थे।
मेज़ की दराज़ से उसने सिगरेट निकाला और एक कुर्सी खींच कर आईने के सामने बैठ गई। सिगरेट सुलगाते हुए एक दफ़ा’ अपना अ’क्स आईने में देखा। अपने आपको वो सोलह-सतरह साला लड़की महसूस करने लगी थी। अपना अ’क्स उसको अ’जीब सा लग रहा था। आँख, नाक, होंट, पेशानी सभी नए और अजनबी लग रहे थे। आँखों के गिर्द सियाह हल्क़े उसको बहुत बुरे लगे। सिंगार मेज़ पर रखी हुई क्रीम की शीशी उठा कर बहुत सा क्रीम आँखों के नीचे मलने लगी। फिर चेहरे पर पाउडर लगाया और सिगरेट के कश लेती हुई घड़ी की तरफ़ देखा तो सिर्फ पाँच बजे थे। उसके आने में कोई दो घंटे बाक़ी थे। ये दो घंटे उसको पहाड़ से लगे और अगर वो नहीं आया तो... इस ख़याल के आते ही जैसे उसके दिल ने कहा, वो उसको हर क़ीमत पर हासिल कर लेगी और हमेशा-हमेशा के लिए अपना लेगी। वो उसके साथ मोटर में घूमेगा। क्लब, सिनेमाघरों, होटलों और दा’वतों में उसके साथ-साथ होगा। उफ़ कितना मा’सूम है वो बिल्कुल बच्चों की तरह बातें करता है और शरमाता तो एक दम लड़कियों की तरह है। लतीका रानी को याद आ गया कि “लाईफ़” की वरक़-गरदानी के वक़्त जो एक नीम-उ’र्यां तस्वीर आ गई थी तो किस तरह उसका चेहरा कानों तक सुर्ख़ हो गया था, लतीका मुस्कुरा उठी थी। वो आएगा तो कैसा शर्माया-शर्माया सा रहेगा। वो उसके एक दम क़रीब बैठेगी और उसको एक टक घूरती रहेगी। वो थोड़ा घबराएगा और उससे हट कर बैठने की कोशिश करेगा। फिर वो लकीरें देखने के बहाने उसका हाथ अपने हाथों में ले लेगी। उसकी उँगलियाँ कैसी नर्म-ओ-सुबुक सी हैं। जब वो घबराहट में अपनी उँगलियाँ चटख़ाता है तो कैसा प्यारा लगता है। बातों ही बातों में उसके हाथों को अपने गालों से मस कर देगी। उसकी हथेली का सारा पसीना उसके गालों में लग जाएगा और उसके गाल चिपचिपे हो जाएँगे, तब कैसा ठंडा-ठंडा लगेगा और वो तो एक दम नर्वस हो जाएगा। उसका नर्म और बे-दाग़ जिस्म थर-थर काँपने लगेगा। तब उसको चुमकारेगी और प्यार से कहेगी, “इतने नर्वस क्यों हो? ये तुम्हारा ही घर है।”
और फिर रोशनी... मगर नहीं। इतनी जल्दी नहीं। वो एक दम घबरा जाएगा। फिर शायद कभी न आए। सोलह-सतरह साल का तो है ही। एक दम नादान और मा’सूम। लतीका ने सिगरेट का आख़िरी कश लेते हुए सोचा और सिगरेट ऐश ट्रे में मसलते हुए बेचैनी से घड़ी की तरफ़ देखा। छः बजने में कोई दस मिनट बाक़ी थे और उसको अपने आप पर ग़ुस्सा आ गया। आख़िर ये कौन सी तुक थी कि उसने सात बजे का वक़्त दिया था। ख़्वाह-मख़ाह एक घंटा इंतिज़ार करना है। अपनी बेचैनी पर वो मुस्कुरा उठी और एक मख़मूर सी अंगड़ाई लेती हुई पलंग पर लेट गई। उसका जोड़-जोड़ दुखने लगा था। तकिए को सीने पर रखकर उसने ज़ोर से दबाया और गहरी-गहरी साँसें लेने लगी। सारे बदन में जैसे धीमी-धीमी सी आँच लगने लगी थी। इतनी जल्दी ये सब नहीं करेगी। उसने सोचा। वो बिल्कुल ना-तजरबाकार और नादान है। उसका जिस्म बंद कली की तरह पाक और बे-दाग़ है। मुहब्बत का तो वो अभी मतलब भी नहीं समझता है। वो उसको मुहब्बत करना सिखाएगी। एक नादान लड़के से मर्द बनाएगी। भरपूर मर्द और लतीका को अपने आप पर बड़ा फ़ख़्र महसूस होने लगा। ये सोच कर उसकी ख़ुशी की इंतिहा न थी कि वो पहली औ’रत है जो उसको मुहब्बत से रू-शनास कराएगी।
उसने अलमारी से बीअर की बोतल निकाली और हल्की-हल्की चुसकियाँ लेने लगी लेकिन उसकी बेचैनी और बढ़ गई। उसने गिलास मेज़ पर रख दिया और पलंग पर लेट गई। उसके जी में आया एक-बार फिर ग़ुस्ल-ख़ाने में घुस जाए और पानी की ठंडी धार में अपने जलते हुए जिस्म को दोनों हाथों से ज़ोर-ज़ोर से मले लेकिन यकायक काल बेल बज उठी। उसने चौंक कर घड़ी की तरफ़ देखा तो सात बज चुके थे। अपने उ’र्यां जिस्म पर स्लीपिंग गाऊन डाला और दरवाज़ा खोल दिया। वो परेशान और घबराया सा खड़ा था।
“ओह गॉड। कम इन यंग ब्वॉय!”, लतीका रानी ने बे-इख़्तियार मुस्कुराते हुए कहा।
लतीका को वो ऐसा सहमा हुआ मा’सूम सा बच्चा नज़र आ रहा था जिसको यकायक भूत कह कर डरा दिया गया हो।
वो जैसे ही अंदर आया, लतीका ने दरवाज़ा अंदर से बोल्ट कर दिया और मुस्कुराती हुई पलंग पर बैठ गई। उसकी मुस्कुराहट में यक़ीन का रंग मुस्तहकम हो कर फ़त्ह और ग़ुरूर की चमक में तबदील हो गया था।
“बैठो खड़े क्यों हो?”, लतीका रानी ने कुर्सी की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।
वो फ़र्मां-बर्दार बच्चे की तरह कुर्सी पर बैठ गया। वो उसको एक टक घूरने लगी। वो कुर्सी के हत्थे पर उँगलियों से आड़ी-तिरछी लकीरें खींच रहा था।
“क्या सोच रहे हो?”
“जी...?”
“क्या सोच रहे हो...?”
“कुछ नहीं।”
“कुछ तो ज़रूर सोच रहे हो?”, लतीका रानी ने मुस्कुराते हुए कहा।
वो चुप रहा।
“लाओ तुम्हारा हाथ देखूँ!”, वो ज़ियादा सब्र न कर सकी।
उसने चुप-चाप अपना हाथ बढ़ा दिया।
“इधर आ जाओ पलंग पर। अच्छी तरह देख सकूँगी।”
लम्हा भर उसने तवक़्क़ुफ़ किया और फिर कुर्सी से उठकर उसके क़रीब ही पलंग पर बैठ गया। वो उसके हाथ की लकीरें देखने लगी। कुछ देर बाद लतीका ने महसूस किया कि वो आहिस्ता-आहिस्ता उसके क़रीब सरक रहा है। लतीका ने कनखियों से उसकी तरफ़ देखा। उसका बायाँ हाथ लतीका रानी की कमर के गिर्द बढ़ रहा था और फिर लतीका ने अपनी कमर पर उसकी उँगलियों का लम्स महसूस किया। उसको लड़के की इस बेबाकी पर सख़्त हैरत हुई। वो उससे थोड़ा हट कर बैठ गई, जैसे इतनी जल्दी उस का बे-तकल्लुफ़ हो जाना उसको पसंद न आया हो। लतीका ने महसूस किया कि वो फिर उसके क़रीब सरक रहा है। एक दफ़ा’ लतीका को फिर अपनी कमर पर उसकी उँगलियों का दबाव महसूस हुआ।
“ये लकीर क्या बताती है।?”, यकायक लड़के ने झुक कर एक लकीर की तरफ़ इशारा किया और इस तरह झुकने में उस का चेहरा लतीका के चेहरे के क़रीब हो गया। यहाँ तक कि उसके रुख़्सारों को लड़के की गर्म साँसें छूने लगीं और लतीका को ऐसा लगा जैसे वो जान-बूझ कर उसके इतने क़रीब झुक गया है। जैसे वो उसको चूमना चाहता हो। लतीका रानी खड़ी हो गई और कुछ ना-गवार नज़रों से उसकी तरफ़ देखने लगी। न जाने क्यों अब लतीका को उसके चेहरे पर पहली जैसी मा’सूमियत और सादा-पन नज़र नहीं आ रहा था। वो उसको और लोगों की तरह ऐसा-वैसा लग रहा था।
“बैठिए ना। आप इतनी नर्वस क्यों हैं?”, उसने मुस्कुराते हुए कहा।
“नर्वस।? भला मैं क्यों नर्वस होने लगी?”, लतीका रानी ने बड़े तैश में कहा और उसको ऐसा लगा जैसे ये वो नहीं है जो वो अब तक समझ रही थी बल्कि ये तो इंतिहाई फ़ुहश और गंदा इंसान है। ये कोई सोलह-सतरह साला मा’सूम नादान लड़का नहीं है बल्कि एक ख़तरनाक मर्द है। भरपूर मर्द। उसका जिस्म किसी बंद कली की तरह पाक और बे-दाग़ नहीं है बल्कि गंदगी में पला हुआ कोई ज़हरीला कांटा है जो उसके सारे वजूद को लहू-लुहान कर देगा।
और दूसरे लम्हा जैसे लतीका रानी का सारा वजूद लहू-लुहान हो गया। पल भर के लिए उस पर सकता सा तारी हो गया। लतीका को महसूस हुआ जैसे वो उसको एक दम फ़ाहिशा और बाज़ारी औ’रत समझता है। जैसे उसकी कोई क़द्र-ओ-क़ीमत नहीं है, जो जब चाहे जिस तरह चाहे इस्ति’माल करे और लतीका का दिल उसके लिए नफ़रत से भर गया। वो तड़प कर उस के बाज़ुओं से निकल गई और अपने होंटों को उँगलियों से पोंछते हुए चीख़ कर कहा,
“यू बास्टर्ड। व्हाट फ़ौर यो हैव कम हियर?”
उसने हैरत से लतीका की तरफ़ देखा।
“गुट आउट यू स्वाइन।”, वो चीख़ी।
दरवाज़े के क़रीब पहुँच कर लड़के ने एक-बार मुड़ कर लतीका की तरफ़ देखा और फिर कमरे से निकल गया।
लतीका पलंग पर गिर कर हांपने लगी। कुछ देर बाद वो उठी, स्लीपिंग गाऊन उतार फेंका और ग़ुस्ल-ख़ाने में घुस गई। शावर खोल कर अकड़ूँ बैठ गई। ठंडे पानी की धार उसकी रीढ़ की हड्डियों में गुदगुदी सी पैदा करने लगी और वो ज़ोर-ज़ोर से अपना सारा बदन हाथों से मलने लगी।
गिरते हुए पानी के मद्धम शोर में लतीका रानी की घुटी-घुटी सी चीख़ें भी शामिल हो गई थीं।
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