बहुत देर हो गई
रुक़य्या पार्टी से वापस आकर जल्दी-जल्दी कपड़े बदल कर मसहरी पर पड़ गई। वो रोना चाहती थी मगर आँखों में आँसू नहीं आ रहे थे। पार्टी का समां एक गड़बड़ ख़्वाब की तरह उसके सामने आ रहा था। हाँ सईद, सईद को देखने, सईद से मिलने के लिए ही वो ऐसे कपड़े पहन कर गई थी जो आठ बरस पहले उसने पसंद किए थे। आठ साल पहले ऐसी ही एक पार्टी में सईद ने सबसे अलग हो कर उससे कहा था, तुम्हारे कपड़े यहाँ सबसे अच्छे लग रहे हैं। तुम सबसे ज़्यादा जच रही हो। उसने कहा था,बहुत शुक्रिया। हल्के सुर्ख़ रंग के फूलों वाली क़मीज़, सफ़ेद शलवार, कान में याक़ूत के बुन्दे, पैर में सुर्ख़ चप्पल, चेहरा गुलाबी पौडर और होंटों पर सुर्ख़ लिपस्टिक यूँही वो आज भी सज कर गई थी। मगर आठ बरस में सईद कैसा बदल गया था। सबके सामने कहने लगा, अरे रुक़य्या, तुम किस क़दर बदल गईं। क्या हुआ गालों में गड्ढे कैसे पड़ गए और चेहरे पर ये निशान कैसे जो पौडर से भी नहीं छुपते। वो ये क्या कह रहा था।
मालूम हुआ कि उसने तमाम जज़्बात पर पानी, ठंडा बर्फ़ का पानी डाल दिया। आठ बरस से वो उसके ख़्याल में महव थी। वो तालीम हासिल करने इंग्लैंड और फिर अमेरिका गया था। दिल कहा करता कि वापस आकर वो उसी को पसंद करेगा। नसीमा को वो जो भी ख़त लिखता उसमें रुक़य्या को ज़रूर पूछता, शायद वो भी उसे इतना ही चाहने लगा था। क्या सच-मुच पूछा करता था या नसीमा महज़ मुरव्वत में कह देती थी, भैया का ख़त आया है तुमको पूछा है। आख़िर वो बराह-ए-रास्त भी उसे ख़त लिख सकता था। मगर कभी कोई पुर्ज़ा भी नहीं लिखा और अब आकर तो उसने उसे अजनबी की तरह पहचानते हुए गालों में गड्ढे, चेहरे पर निशान ही दिखाई दिए। वो भी कुछ ज़्यादा तगड़ा और बड़ा नज़र आया तीस से ऊपर निकल गया है। रुक़य्या को पहले से ज़्यादा अच्छा लगा... मगर अच्छा लगने से क्या होता है। वो तो उसे अच्छी नहीं लगी। वो रेहाना, परवीन, राना सबसे खिलखिला-खिलखिला कर हँसता रहा। रुक़य्या की तरफ़ जब भी रुख़ किया तो ख़ामोश हो गया और फिर सबके सामने उसके चेहरा पर तन्क़ीद करने लगा।
उसने अपना रुख़ कपड़ों की अलमारी की तरफ़ किया, जिसमें क़द-ए-आदम शीशा लगा था। उसके चेहरे पर जो छाइयाँ पड़ गई थीं साफ़ दिखाई दीं। ये कमबख़्त किसी तरह नहीं जातीं, कैसी-कैसी दवाएं कैसी-कैसी क्रीमें लगाईं और ये गड्ढे, शमीम तो इन्हीं की तारीफ़ करता था,हाय नज़ाकत, कह कर तड़प जाता था। मगर वो उसे बिल्कुल न भाया। उसके दिल में सईद घुसा हुआ था। ये सईद जो एक दफ़ा आग लगा कर बिल्कुल अलग हो गया मालूम होता है कि जैसे उसने कभी कहीं दूर से उसे देखा था। अब इक दम से देख कर याद किया। इंग्लैंड और अमेरिका में न मालूम कितनी लड़कियों से मिला होगा। वहाँ की लड़कियाँ तो ख़ुद मर्दों का पीछा करती हैं और पाकिस्तानी उन्हें ख़ास तौर पर भाते हैं और अब यहाँ कोई उन्ही की तरह की ढूंढ लेगा। इतना क्वालीफ़ाइड हो कर आया है ऊँची जगह मिलेगी और न जाने कितने रईसों की लड़कियाँ उसके पीछे दौड़ेंगी। पार्टी से जाते वक़्त भी कई उसके साथ मोटर में गईं। रुक़य्या को कोई इशारा भी नहीं किया। शमीम किस क़दर लट्टू था मगर रुक़य्या ने उसे लिफ़्ट ही नहीं दी। आख़िर को उसने शकीला से शादी कर ली। रुक़य्या ने कहा था,पीछा छूटा, दो बरस तक उसने हलकान किया। उससे सईद कितना अच्छा था।
फिर कलीम से मुलाक़ात हुई। उसने रुक़य्या के पीछे कई हज़ार ख़र्च कर दिए होंगे। प्रज़ेन्ट, सिनेमा, हर तफ़रीह में साथ, मगर रुक़य्या ने उसकी तरफ़ भी रुख़ नहीं किया।
आठ बरस बड़ा लम्बा वक़्त होता है। वो इंटर में थी सईद भी उसके साथ था। बी. एस. सी. में साथ रहा और उसके बाद इंग्लैंड चला गया। आठ बरस, दो बरस एम.ए के, एक बी.टी का और पाँच बरस की मुलाज़िमत, तीन बरस पहले तक हर तरफ़ से पैग़ाम आते रहे। अम्माँ, अब्बा, भाई सबने रिश्ता लगाना चाहा और आख़िर में रुमाना के वालिद। उस कमबख़्त अतहर ने कहा था,ये ऐसी नारंगी है जो पेड़ पर लगे-लगे सूख गई। क्या वो सच था। अब कोई जवान तो फँसता नहीं कोई दूजा जो कर ले तो करले। क़मर की अम्माँ ने कहा था।
औरत बीसी और खीसी और तो अब तीस को होने को आई, अब शादी हो चुकी।
इधर लड़की ने नौकरी की और उधर शादी के दरवाज़े उसके लिए बंद हो गए।
अरे नौकरी से औरत सूखने लगती है और अगर मोटी हो तो ढल जाती है।
लड़कियाँ बी.ए में आती हैं तो बच्चों की तरह खिली हुई और बी.ए करते-करते मुरझाने लगती हैं और एम.ए के बाद तो बिल्कुल खपटा 58 हो जाती हैं। चेहरे पर ख़ून भी नहीं रह जाता।
जोबन तेरे ढल गए इक ऑन ख़ाली रह गई, सरमाया तेरा बिक गया दुकान ख़ाली रह गई। बड़ा पस्त शे'र मगर क़ासिम बात-बात में ये सुना देता था।
तुम समझती हो कि जो-जो वक़्त जा रहा है वो तुम्हारी लड़की की क़ीमत बढ़ रही है। ख़ाला जान ने अम्माँ से कहा।
ए बहन क्या करूँ कोई जुड़ता ही नहीं।
आज कल के ज़माने में घर बैठे कोई नहीं आता। लड़की इधर-उधर ले जाओ। फ़ैशन करने दो और लड़कियों के साथ फिरने दो। कोई न कोई पसंद कर लेगा। आख़िर तस्नीम की इसी तरह शादी हुई थी। ये पढ़ाने जाना, चले आना काफ़ी नहीं है। ख़ाला ने मशवरा दिया था।
मगर उस वक़्त भी काफ़ी देर हो गई थी। उसके दिल में सईद क्या बैठा था, न लेना एक और न देना दो। ये दिल में कौन कहता था, आएगा आने वाला आएगा आने वाला। वो आने वाला आ गया। मगर किस तेवर से आया था। तुम्हारे चेहरे पर धब्बे, तुम बदल गईं। दिल को काट कर रख दिया। अब अगर रुख़ करे तो ठोकर मार दे। मगर अब उसके रुख़ करने की कोई उम्मीद न थी। आठ बरस से पलती हुई उम्मीद से उसकी आदत पड़ गई थी। एक स्ट्रोक में ख़त्म हो गई। अब उसके दिल से एक आह निकली और आँखों से आँसू टपकने लगे।
हाई स्कूल के सर्टीफ़िकेट के हिसाब से भी वो अब तीस की थी हालांकि वो अपने को 22 से 24 तक का बताती थी। सब कहते रहने के बावजूद उसे ये एहसास न था कि उसका हुस्न ढ़ल गया है। आज सईद ने उसके आँखों के सामने के सब पर्दे इक दम हटा दिए थे। वो बिलक-बिलक कर रोने लगी। तकिया गीला हो गया। उसने वालिदा से कह दिया था आज खाना नहीं खाऊँगी पार्टी में बहुत खा लिया है। अब उसे रात भर रोते रहने या रोते-रोते सो जाने के सिवा और कुछ काम नहीं था।
घंटे भर से ज़्यादा रोने-धोने और करवटें बदलने के बाद कुछ तबियत हल्की हुई और अब उसे इसकी शागिर्दा रुमाना के वालिद नईम साहब सी एस पी रिटायर्ड याद आए। वो अपनी लड़की को रोज़ कालेज पहुंचाने और ले जाने मोटर पर आते थे।
डैडी ये हमारी मिस हैं प्रोफ़ेसर रुक़य्या।
आप कहाँ रहती हैं, आइए आपको आपके घर उतार दूंगा।
और फिर वो रोज़ ही उसे इसके घर से लेते और घर पहुँचा देते। कैसी आँखें गड़ो-गड़ो कर वो रुक़य्या को देखते थे। मालूम होता था कि नज़र जिस्म के आर पार हो जाएगी।
मिस आप हमारे घर होती चलें। रुमाना ने कहा था।
और उसका घर कैसा बड़ा, कैसा उम्दा, लॉन, घास, फूलों की क्यारियाँ, एक तरफ़ नीम का दरख़्त, दो हज़ार गज़ का प्लाट, चार बड़े-बड़े हिस्से, दो मंज़िले, दो हज़ार का किराया और आठ सो पेंशन जिस हिस्से में रहते थे, दो बड़े-बड़े बेडरूम, एक हॉल, बड़ा सेट सोफ़े का और खाने की मेज़, चाय पर क्या-क्या सामान था।
रुमाना की शादी मेरे भाई के लड़के से ठहरी है। वो जल्दी कर रहे हैं। मैं कहता हूँ बी.ए पास कर ले तो शादी हो। इसकी माँ को मरे हुए चार बरस हो गए। इसकी शादी हो गई तो मैं अकेला रह जाऊँगा। मेरे तीन लड़के मुलाज़िम हैं। सबकी शादियाँ हो गईं। दो लड़कियाँ भी ब्याह गईं। अब ये रह गई है।
सब भाई डैडी से कहते हैं कि आप एक और शादी कर लीजिए। अभी आप साठ के नहीं है। रुमाना ने कहा था।
नईम साहब कुछ नहीं बोले। बड़ी हसरत से रुक़य्या को देखते रहे थे। अब तो रोज़ ही वो रुक़य्या को अपने घर ले आते।
आप रुमाना को घर पर पढ़ा दिया कीजिए। आप जो ट्यूशन फ़ीस कहेंगी मैं दूंगा। मोटर पर घर से ले आया करूंगा। मोटर पर पहुँचा आया करूंगा।
वक़्त कहाँ है। रुक़य्या ने कहा था।
आप कालेज से यहाँ आती हैं, चाय पी कर थोड़ी देर आराम करें, हमारे यहाँ मेहमानों के लिए एक बेडरूम ख़ाली है उसमें आप आराम करें और फिर लॉन पर से धूप चली जाने के बाद मैं लॉन पर बैठ कर आपसे पढ़ूँगी अगर देर हो जाए तो रात का खाना भी हमारे साथ खा लिया कीजिएगा। आख़िरी डैडी गाड़ी पर आपको पहुँचा ही आया करेंगे।
नईम साहब रुमाना को लिए हुए उसके घर भी आए थे और उसके वालिद से इजाज़त ले ली थी। पहले महीना के दो सौ रूपया वालिद के हाथ में रख दिए थे। आप इतने बा-वक़ार और ज़िम्मेदार आदमी हैं अगर रुक़य्या आपके यहाँ रह भी जाए तो हमको कोई एतराज़ न होगा। वालिद ने कहा था।
और पढ़ाना तो नाम का था, नईम साहब सैर कराते थे, रेस्तोरानों में ले जाते थे। खाने के बाद घर छोड़ जाते थे। कितना ख़ुलूस, कितनी मोहब्बत, कितना आराम।
हाँ ये बुड्ढे लोग बहुत चाहते हैं, अच्छा है शादी कर ले। अभी दस बीस बरस तो चल जाएगा। ख़ाला जान ने कहा था और रुमाना की शादी हुई, नईम साहब के सब लड़के लड़कियाँ, बहुएं, दामाद आए, घर भर गया। किराए वाले हिस्सों में भी कमरे माँग लिए गए। नईम साहब ने सबके सामने खाने की मेज़ पर कहा,ये प्रोफ़ेसर रुक़य्या, रुमाना की उस्तानी हैं। शादी की सब बातों में इनकी राय अहम रहेगी।
रुमाने के ब्याह जाने के बाद भी नईम साहब मोटर लेकर आते रुक़य्या को कालेज पहुँचाते और फिर वापस भी ले आते। दो साल में वो उनसे बेबाक हो गई थी। वो उससे तुम से बात करने लगे थे। उसे उम्दा पार्कर का फ़ाउंटेन पेन और ओमेगा घड़ी ले दी थी।
फिर एक दिन ख़त उसके हाथ में दिया और बौखलाहट में मोटर चला कर ग़ायब हो गए थे।
रुक़य्या तुमने मेरी ज़िंदगी के 35 बरस कम कर दिए जब मैंने तुम्हें पहले दिन देखा था तो मुझे महसूस हुआ कि जब मैं बीस बरस का था तो मेरे सामने एक लड़की आई थी वही अब फिर आगई। मेरी उससे शादी नहीं हो सकी थी और वो मर गई थी। घर वालों ने रुमाना की माँ से शादी कर दी थी मगर मैं तमाम ज़िंदगी उसी शक्ल को तलाश करता रहा जो तुम्हारी ऐसी थी। अब तुम मिल गई हो... आगे कुछ नहीं कहता। तुम ख़ुद समझ लो।
वो बड़े शर्मीले आदमी थे। ये ख़त देने के बाद कई दिन वो ग़ायब रहे। फिर रुक़य्या को कालेज लेने पहुँचे। वो उनकी मोटर में बैठ तो गई मगर सख़्त निगाह से उन्हें देखती रही, उन्होंने अपना विर्द जारी रखा मगर खुलकर बात नहीं की। रुक़य्या ने उनके घर जाने या उनके साथ सैर करने से इंकार किया।
उन्होंने रुक़य्या के वालिद से सब हाल बयान करके कहा,आपकी इजाज़त हो तो मैं रुक़य्या से शादी का प्रोपोज़ल करूँ।
वालिद ने इजाज़त दी। अम्माँ ने भी कहा, क्या बुरा है इतना मालदार है। स्कूल में रोज़ की घिस-घिस से तो अच्छा है और फिर एक लाख की जायदाद मेहर में रखने को भी कहा है। मैं तो कर दूँगी। वो तुमसे कहेगा तुम इंकार न करना।
अब रुक़य्या बेक़रार हो कर उठ बैठी और चीख़ कर रोने लगी। हाय वो उससे क्यों तन गई थी। उस सईद के मारे ये कैसा उसके दिल में बैठ गया था।
फिर रोते-रोते सो गई और न मालूम कैसे-कैसे ख़्वाब देखती रही। बार-बार आँख खुल जाती और वो कहती,ऐसा मोहब्बत दार आदमी, उफ़, उफ़, अम्मी से कैसे कहा गया था कि अब से आप मेरे घर न आइएगा। और फिर नईम साहब उसके घर न आए थे। कई महीने हुए थे। एक, दो, तीन, चार, पाँच, छ, सात महीने से वो नहीं आए थे। उठते हुए उसने तै किया कि वो ख़ुद नईम साहब के यहाँ जाएगी।
वो कालेज के वक़्त से एक घंटा पेश्तर घर रवाना हुई। रिक्शे पर बैठ कर नईम साहब के घर की तरफ़ चली। घर जूं जूं क़रीब आता गया वो उसका दिल दबदबाता गया। रिक्शा घर से आगे निकल गई और वो रुकवाना भूल गई। फिर उसने रिक्शे वाले से कहा,वापस ले चलो। मगर घर के पास पहुँच कर क़रीब की गली में मुड़वाई काफ़ी दूर जा कर फिर कहा,वापस ले चलो। कई दफ़ा ऐसा करने के बाद रिक्शे वाला बोला,कहाँ तक चक्कर खिलाइएगा? उसने जवाब दिया,तुमको अपने किराए से मतलब है कि चक्कर से। मैं दिन भर चक्कर लगवाऊँगी। तुम्हारे मीटर से जो किराया बने, ले लेना। रिक्शे वाला ख़ामोश हो गया और चक्कर लगाता रहा।
पांचवें चक्कर में नईम साहब के घर से चार घर आगे एक घर से एक लड़की निकलती दिखाई दी। जिसने उसको सलाम किया। उसने रिक्शे वाले से कहा,यहाँ रोक दो। लड़की उसके पास आ गई। उसने किराया दिया और लड़की की तरफ़ रुख़ कर लिया।
क्या मिस आप कोई मकान ढूंढ रही हैं?
तुम मेरी शागिर्द रही हो मुझे याद आया। क्या नाम है तुम्हारा ये याद नहीं रहा।
मैं रुमाना के साथ पढ़ती थी। उसकी शादी में भी शरीक थी। फिर यूनिवर्सिटी में गई। अब एम.ए फ़ाइनल में हूँ। रुमाना के वालिद नईम साहब मुझे यूनिवर्सिटी पहुँचा देते हैं। आज देर हो गई। क़रीब ही तो घर है देखने जा रही हूँ कि क्या हो गया। मेरा नाम फ़हमीदा है। आपको याद नहीं।
अच्छा तुम जाओ। मुझे उधर जाना है।
आपने रिक्शा तो छोड़ दी। साथ चलिए नईम साहब की मोटर में बैठ कर चली जाइएगा। आपके कॉलेज का वक़्त क़रीब है। क्या आज कालेज नहीं जाइएगा।
रुक़य्या सिटपिटाई मगर उसके दिल को उस लड़की की वजह से ढ़ारस हुई और उसके मुँह से निकल गया,अच्छा चलो।
दोनों दस क़दम ही गई होंगी कि नईम साहब मोटर पर आते दिखाई दिए। मोटर रोक कर बोले,अरे आज देर हो गई, अच्छ चलो। अब उन्होंने रुक़य्या को भी देखा और बोले, आप इधर कहाँ आ गईं, आप भी बैठ जाइए कालेज उतार दूँगा आपके।
फ़हमीदा नईम साहब के पास बैठी और रुक़य्या पीछे बैठी। उसे उसके कॉलेज पर उतार कर नईम साहब चले गए।
झूटा, मक्कार कहता था कि तुम्हारी ऐसी सूरत की तलाश में मैं तीस पैंतीस बरस से था और अब मुझे देखा भी नहीं। सात महीने के अंदर ही इस सूरत को जिसको इतने बरसों से तलाश थी भूल गया। ये जवान भरे-भरे जिस्म की थिरकती हुई फ़हमीदा को देख कर लट्टू है, साठ बरस का मर्द अपनी लड़की की बराबर। सबसे छोटी लड़की की बराबर की लड़की से अटक रहा है और लड़की भी फैली जा रही है। हाँ एक लाख का मेहर, मोटर, कोठी कौन देगा। रुक़य्या को ख़रीदने चला था। वो नहीं बिकी तो अब उससे ज़्यादा जवान ख़रीद रहा है। अच्छा हुआ था कि रुक़य्या ने उससे इंकार कर दिया था। अब कभी उसकी तरफ़ रुख़ न करेगी...
उससे दर्जे भी न पढ़ाए गए। हर दर्जे को टाल-टाल दिया। टीचर्ज़ रूम में आकर सबसे अलग बैठी। एक किताब खोल कर सामने रखी और सर उसपर झुकाया और सोचती रही।
ए आज क्या है रुक़य्या चुप-चुप गुम सुम हो? कई साथिनों ने पूछा।
मेरे सर में दर्द है। शायद बुख़ार आने वाला है। उसने सबको टाल-टाल दिया।
छुट्टी के वक़्त जब वो कालेज से बाहर आई तो देखा नईम साहब मोटर लिए खड़े हैं। वो मोटर की तरफ़ पीठ फेर कर आगे बढ़ रही थी तो वो लपकते हुए पास आए और बोले,रुक़य्या मैं तुम्हें घर पहुँचाने आया हूँ, चलो मेरे साथ मोटर में।
वो हिचकिचाई मगर साथ हो ली।
मोटर बढ़ाते हुए नईम साहब बोले,आज क्या था जो तुम्हें याद हमारी आई?
रुक़य्या ख़ामोश रही।
आज तुम मेरे पास आईं थीं मगर मेरे घर में आने की हिम्मत न पड़ी। मैंने देखा कि कई बार तुम्हारी रिक्शा मेरे घर के सामने से गुज़री मैंने तीस बरस मजिस्ट्रेटी की है। हज़ारों क़िस्म के लोग देखे हैं। मैं इंतज़ार करता रहा कि तुम शायद उतर कर आओ। इसी में फ़हमीदा के पास पहुँचने में देर हो गई। अब तुम्हें क्या कहना है बताओ।
आपने ये सब फ़र्ज़ कर लिया है। सब ग़लत, सात महीने हुए हैं आपसे पर झाड़ कर अलग हो गई थी। मुझे आपसे मिलने का कोई शौक़ नहीं, आप ही मेरे पीछे दौड़े आए।
ख़ैर ये सब जाने दो। तुमको देख कर मुझे महसूस हुआ था कि वो सूरत जो मेरे ज़ेहन में तीस बरस से थी सामने आगई जब तुमसे बार बार मिला तो ये भी महसूस होता रहा कि तुम उसके मुक़ाबले में बिल्कुल बेजान और बे-हिस हो। वो खुली हुई थी तुम मुरझाई हुई। सूरत तो ज़रूर है, उसी की सी मगर उसका भूत और फिर जब तुमने इंकार कर दिया तो मेरा ध्यान उससे मुशाबहत से ज़्यादा तुम्हारे सूखे पन तुम्हारी बे-हिसी पर जाने लगा। फ़हमीदा के माँ-बाप नहीं हैं। चचा के यहाँ पल रही है। रुमाना की शादी के बाद से बराबर मेरी दिलजोई में लगी है। उसके चचा-चची और चचा ज़ाद भाई-बहन उससे पीछा छुड़ाना चाहते हैं। वो एम.ए प्रिवीयस कर चुकी थी। मैं भी कहता हूँ एम.ए कर ले दो महीने और हैं। किसी दिन भी हम दोनों निकाह कर लेंगे।
जब ये सब है तो फिर आप क्यों मेरे पीछे लगने को आते... और-और मेरे घर की सड़क तो पीछे रह गई ये आप मुझे कहाँ ले जा रहे हैं।
अभी मेरी बात ख़त्म नहीं हुई। अगर तुम कहो तो अपने घर चलूँ और बात पूरी कर लूँ।
नहीं-नहीं आप मुझे यहीं उतार दीजिए मैं घर चली जाऊँगी और अब कभी मेरी तरफ़ रुख़ न कीजिएगा। फ़हमीदा में मगन रहिए।
ख़ैर मैं तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचाए देता हूँ। बात सिर्फ़ ये कहना है कि मैंने तुम्हारे रुख़ में साफ़ तब्दीली देखी और मुझे फिर वही सूरत याद आगई। जिसका तुम हल्का-सा चर्बा हो। फ़हमीदा को उतार कर मैं घर जाता मगर ला-शऊरी तौर पर तुम्हारे कालेज पहुँच गया। आगे कुछ नहीं। अब बहुत देर हो गई। यू हैव कम टू लेट। टू लेट, टू लेट।
नईम साहब ने उसे उसके घर पर उतारते वक़्त कहा,बहुत देर होगई।और मोटर लिए हुए चले गए।
रुक़य्या घर में दाख़िल हुई तो कुछ ग़ुस्से के आलम में थी। अपने कमरे में जा कर कपड़े उतारे निचिंत हो कर वालिदा और वालिद के साथ चाय पीने आई। बात-बात में वो नुमायाँ तौर पर गुम हो जाती। माँ ने माथे पर हाथ रख कर देखा। नब्ज़ देखी और कहा,कोई ऐसी बात नहीं है। आज शायद काम बहुत था, थक गई हो।
जी हाँ, थक गई हूँ अब जा कर लेटूँगी।
बहुत देर हो गई, बहुत देर हो गई। आख़िर वो किस ख़्वाब ख़रगोश में थी? नसीमा ने धोके में रखा। नहीं वो ख़ुद धोके में थी। सईद ने बस एक दफ़ा अलग ले जाकर कहा था, तुम आज बहुत जच रही हो।आज, आज और वो उस आज को दवाम समझ गई। आठ बरस तक इंतज़ार। ख़्वाह मख़ाह वो आया तो ये कहता हुआ,अरे तुम्हारे चेहरे पर ये दाग़ कैसे हैं। जैसे वो कोई जानवर थी। जिसको ख़रीदने से इंकार करते हुए वो कह रहा था। क्या वो नसीमा के पास जाए और उससे पूछे? क्या पूछे? वो और भी हँसेगी। शायद ये ताड़ कर कि भाई सईद पर रीझी हैं कभी उसने कोई बात करली होगी ये समझ गईं कि मर रहा है। ज़रा अपनी औक़ात में रहें, ज़रा अपना मुँह आईने में देखें और अब तो सूख कर अमचूर हो गई हैं। कोई पूछता ही नहीं। यही कहती होगी सबसे और भाई के आने पर रुक़य्या को बुलाया पार्टी में कि वो अपने ख़्वाबों की ताबीर देख ले। अच्छा उसने ये ट्रिक किया और उसका मियाँ ज़मीर उसे कहता सुना गया, बिल्कुल मामूली बल्कि मामूली से भी गिरी हुई और बनो, अब उसके आठ बच्चे हो गए। क्या कहने लगी। तुमने नईम साहब से इंकार कर दिया। ग़ज़ब किया। अब तुम्हें कौन पूछेगा। अच्छा था कि माँ-बाप ने हाई स्कूल के बाद ही मेरी शादी कर दी थी। मैंने चार बच्चे होने के बाद इंटर ज्वाइन किया। तुम्हारे साथ जब एम.ए में आई तो छः बच्चे हो चुके थे। अब बूढ़ी हो गई। मेरे साथ कि न मालूम कितनी बैठी हैं, बहुत देर हो जाए तो कोई पूछता नहीं। हाँ नईम साहब के सामने आने पर भी बहुत देर हो चुकी थी। वो क़िस्मत से मिले थे। आख़िर उनमें क्या कमी थी? जायदाद, मोटर, मुलाज़िम हर क़िस्म का आराम, ऐसे लोग जिनको मिल जाएं उनको क़िस्मत वाली कहते हैं। हाँ सिर्फ़ सिन आ गया है। साठ के क़रीब। मगर इससे क्या होता है। ताजवर की शादी साठ बरस वाले से हुई और वो अब तक ज़िंदा है। अब तो दोनों हम सिन मालूम होते हैं। जमीला का मियाँ उससे साल भर छोटा था। मगर दो साल ही में मर गया। अब बेवा बैठी है एक लड़का लिए हुए। महज़ वहम है सिन के फ़र्क़ से कुछ नहीं होता। हाँ हैसियत, माल, आराम सब कुछ है। फ़हमीदा उससे दस बरस छोटी ज़रूर होगी। मगर उसे नईम साहब से कोई इंकार नहीं।
उसे तो कोई बराबर का मिल सकता है अगर ज़रा इंतज़ार कर ले। मगर क्यों इंतज़ार करे। ख़तरा मोल ले। फिर महसूस हो बड़ी देर हो गई। मगर अब वो क्या करे नईम साहब भी हाथ से निकल गए, साफ़-साफ़ कह गए। टू लेट, टू लेट। यही कहेगी कि मुझे घरेलू ज़िंदगी अच्छी नहीं लगती। लोमड़ी को अंगूर नहीं मिले तो खट्टे हैं। नो कहने लगेगी। आख़िर इसके बाबत बात करना ही क्या फ़र्ज़ है। शादी की बात ही न करो। कोई बात करे तो टाल दो। जब पढ़ती थी तो उसने अफ़साने लिखे थे। अब फिर लिखने लगे, दिल बहल जाएगा। हाँ कई एक नॉवल लिखे। फ़र्ज़ाना ने अब तक दस नावलें लिख डालीं। वो भी यही करे। पढ़ाने में जी नहीं लगता। नावलों से बड़ी आमदनी होगी। मोटर, बँगला, सबही हो जाएगा। नईम के पास क्या है यही तो है और जब मशहूर हो जाएगी तो बहुत से लड़के आया करेंगे। किताब पर तस्वीर देख कर न मालूम कितने लोग ख़त लिखेंगे। तस्वीर में ये चेहरे के दाग़ भी नहीं आएंगे और इस रुख़ से बैठ कर तस्वीर खिंचवाएगी कि ये गड्ढे नज़र न आएँ और हाँ, मिस ख़ातून ने अपने बाबत लिखा। मैंने पहला नॉवल चौदह बरस के सिन पर लिखा। एम.ए के बाद लिखा। यानी तेरह बरस की थी। जब एम.ए पास किया। ख़ूब छः बरस के सिन में हाई स्कूल किया। ये न कहो कि हाई स्कूल का सर्टीफ़िकेट मुँह में था जब पैदा हुईं मगर ये सब हिसाब कौन लगाता है। वो भी मशहूर करा देगी कि बीस बरस की है जवान-जवान लड़के टूट-टूट कर गिरेंगे। कोई न कोई प्रपोज़ ज़रूर करेगा। छोटे से शादी कर ली। लौंडा फाँस लिया। क्या है? शाहिदा ने नहीं कर लिया है। लोग तो हर चीज़ पर एतराज़ करने खड़े हो जाते हैं। हाँ मर्द को जब शौक़ चर्राता है तो कुछ भी नहीं देखता। बैल की तरह मुँह उठाए हुए दौड़ने लगता है। कोई दौड़ता आएगा। ज़रूर आएगा। अब के जो आएगा उसे न जाने देगी। ज़रूर फाँस लेगी। मगर आएगा भी। उन जवानों का ठेका नहीं। दौड़ते हैं और फिर भाग लेते हैं। देर हो गई, क्या सचमुच देर हो गई?
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