Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

चिंकारा हिरण

मोहम्मद हुमायूँ

चिंकारा हिरण

मोहम्मद हुमायूँ

MORE BYमोहम्मद हुमायूँ

    रोचक तथ्य

    "انیس سو نناوے میں چنکارہ ہرن کا شکار جب بیک جبش قلم ممنوع قرار دیا جاتا ہے تو کراچی کے کچھ شکاریوں کو تشویش ہوتی ہے اور قانون کے احترام کا مسئلہ زیر بحث آتا ہے۔۔۔"

    बारह अक्तूबर उन्नीस सौ निनावे।। मुल्क के सियासी मंज़र नामे पर यकलख़्त कई तबदीलीयां वाक़्य हुईं। इस बात से क़त-ए-नज़र कि इन तबदीलीयों के सियासी, मुआशरती और मआशी वजूहात क्या थे, मुल्क में ये तबदीली ज़रूर आई कि हर चीज़ की इस्लाह के लिए एक बाक़ायदा मुतवाज़ी महिकमा वजूद में गया जैसे रजिस्ट्रेशन के लिए नादिरा और करप्शन के लिए नैब असल में नई हुकूमत पूरे मुआशरे के बुनियादी ढाँचे को दरुस्त ख़ुतूत पर उस्तिवार करना चाहती थी।।यूँ कहें तो बेहतर होगा कि वो जुमला ख़राबियों को, जो ब-कोल उनके पिछली हुकूमत का वतीरा रही थीं, जड़ से उखाड़ना चाहती थीं।

    हमारे दोस्त नजमुद्दीन को इस उखाड़ पिछाड़ में बकाए चिंकारा हिरण का महिकमा मिल गया लेकिन मसला ये था कि वो और उनके पेशतर दोस्त और हमकार ,बिशमोल मै ,चिंकारा हिरण के शिकार के अज़-हद शौक़ीन थे।

    ये नया इदारा बनाने की क्या भला ज़रूरत है? इस काम के लिए तो महिकमा जंगली हयात है ना।। नहीं?

    क़िबला नज़ीर अहमद ख़ां आप इतने भोले ना बनें महकमा जंगली हयात में रिश्वत उरूज पर है और हिरण की फ़लाह बका का मुआमला उनके लिए सानवी हसियत रखता है।आदाद-ओ-शुमार से ये वाज़ेह है कि हिरण की तादाद ब-तदरीज ज़वाल का शिकार है और इस अबतर हालात में मुझे ये इज़ाफ़ी चार्ज दिया गया है कि चिंकारा हिरण की घटती तादाद को कम करूँ और हर हालत में इस नायाब हिरण को बचाऊ।

    फिर इंतिहाई तास्सुफ़ से कहा।

    असल में पाकिस्तान के हर महकमे में रिश्वत उरूज पर है, क्या अदालतें, क्या पुलिस और क्या महकमा जंगली हयात, कोई एक हो तो बताउं”

    फिर जलाली अंदाज़ इख़तियार किया

    अब ये जंगली तरीक़े नहीं चलेंगे।।सबको तीर की तरह सीधा होना पड़ेगा।। अब सबसे पहले पाकिस्तान होगा।। बहुत हो चुका।। अन्फ़ अज़ अन्फ़

    इस तरह आप को भी सीधा होना पड़ेगा।। तीर की तरह?

    हाँ मुझे भी

    उसने इंतिहाई संजीदा लहजा अपनाया और कप में बाक़ी काफ़ी गर्दन पीछे कर के उंडेली और चले गए।

    हमारी शिकारी पार्टी जिसमें नवेद साहब, शम्सुद्दीन सिद्दीक़ी साहब, जावेद ख़ान साहब, जलील अली गर्देज़ी साहब और तसनीम नूरानी साहब शामिल थे सख़्त बेचैन थे। उन्होंने तहनेती लहजा अपनाया और पूछा कि कल तक शिकार के अज़हद शौक़ीन नजम उद्दीन को क्या हो गया है जो टस से मस नहीं होते।

    हमारे ख़्याल में अब हमें बंदूक़ें एक तरफ़ रखनी चाहें।। कोने में ।। और चूड़ियाँ।। चूड़ियाँ समझते हैं आप।।अब वो पहन लेनी चाहियें।

    अरे आप इतने इज़तिराब का शिकार क्यों हैं।। थोड़ा हौसला करें हर मसले का हल होता है

    शाम को नजमउद्दीन साहब ने मुझे बताया।

    चिंकारा हिरण सिर्फ़ चार ममालिक में पाया जाता है, भारत अफ़्ग़ानिस्तान, ईरान और हमारे अज़ीज़ मुल्क पाकिस्तान में। ये हमारा क़ौमी शनाख़्त बनेगा इंशाअल्लाह। उसे बचाना हम सब पर फ़र्ज़ है

    वो पता नहीं क्या-क्या बताते रहे ।। हिरण की जसामत।। दूरबीन निगाहें।। खुरदुरे सींग।।हिरण के

    बच्चों की नमो की शरह रफ़्तार लेकिन अब आपसे क्या छुपाना चिंकारा हिरण खाने में बेहद लज़ीज़ होता है ख़ुसूसन उस के कबाब अब ये बात मेरी समझ से बालातर थी कि इस के शिकार से भला उस के बक़ा को क्या मसला दर पेश था।

    मुझे अच्छी तरह याद है कि आग़ा तालिश मरहूम से, जो शिकार के अज़-हद शौक़ीन थे, किसी ने पूछा कि तालिश साहब आप शिकार को तर्क क्यों नहीं देते इस से जंगली हयात को नुक़्सान पहुंचता है। आप एक जानवर मारते हैं तो बड़ी ही मंतक़ी बात है कि एक जानवर कम होता है।। अब ये हिसाब का आसान क़ाअदा है।।आप शिकार करते जाएं और यूं एक एक जानवर कम होते होते नापैद होजाएंगे।। नतीजा ये होगा कि जानवर ख़त्म।। और आपका शिकार भी ख़त्म।

    उन्होंने तवज्जा से बात सुनी।।कुछ वक़फ़े के बाद फ़रमाया।

    आपके क़साई रोज़ाना गाय बैल काटते हैं ।। मसलसल।। क्या उनकी तादाद में कमी वाक़्य हुई? क्या वो ख़त्म हो गए हैं?

    जहां तक मेरा ख़्याल है लोगों से काम निकलवाने का बेहतरीन तरीक़ा ही यही है कि उनके साथ विद तरफ़ा मकालमे वाला अंदाज़ इख़तियार किया जाये और मुदल्लिल बात की जाये। दलील चाहे वज़नी हो या ग़ैर वज़नी, अगर इस्तिक़ामत से पेश की जाये तो मिशिल से मुश्किल काम भी निकल सकते हैं

    मुझे आग़ा तालिश मरहूम की ये दलील ख़ासी वज़नी नज़र आई लेकिन जब मैंने यही दलील नजम उद्दीन साहिब के सामने रखी तो उन्होंने नफ़ी में सर हिलाया

    तालिश साहिब मरहूम मेरे लिए काबिल-ए-एहतिराम हैं लेकिन माज़रत।।ये दलील बोदी है।। इस में

    जान ही नहीं।। अब देखें एक तरफ़ बैल गाय और दूसरी तरफ़ हिरन ।। ग़ौर करें उनकी शरह निम्मो में कितना फ़र्क़ है?।। बस यही इस बात का जवाब है।। क़िबला नज़ीर अहमद ख़ां साहिब अब ये बात तो आपको समझ ही गई होगी कि हिरन के बक़ा के माले पर इस का इतलाक़ क्यों नहीं

    मैंने उनकी बात ग़ौर से सुनी और मुझे उनकी ये बात बड़ी बेरबत लगी क्योंकि इस में वज़न नाम को नहीं था लेकिन मैंने एक तरह से जैसे उस की बात को सराहा और उनकी ताईद में कुछ कलिमात कहे। इस की वजह ये थी कि मैं शुरू में उन्हें ये तास्सुर देना चाहता था कि वो बे वज़नी बात नहीं करते। मैं ये भी नहीं चाहता था कि वो बेहस करते करते कजबहसी पर उतर आएं और यूं दोरौया मकालमे का मुआमला पसेपुश्त चला जाये और शिकार के तमाम रास्ते मस्दूद हो जाएं

    अगले दिन हॉक्स बे मैं उनसे मुलाक़ात हुई ।मुझे उनकी आदतों का इलम था सो मैंने तय-शुदा प्लान के मुताबिक़ उनको अच्छे वाले दर्रा मद शूदा चिप्स का पैकेट ले के दिया जो उन्हें बहुत पसंद था। समुंद्र के मटियाले साहिल पर चलते हुए उन्होंने पैकेट ख़त्म करके वहीं समुंद्र में फेंक दिया। मैंने हिरनों के शिकार का मसला तो नहीं छेड़ा लेकिन इंतिहाई मुहतात अंदाज़ से उन्हें बताया

    नूरानी साहिब बता रहे थे उसी हॉक्स बे में सबज़ समुंद्री कछवे अजीब हालत में हैं।। आए दिन अवाम माहौलियाती आलूदगी ख़सूसन प्लास्टिक से उन की नसल को तबाह कर रहे हैं।। लेकिन उनकी बकाए नसल का कोई मसला अभी तक सामने नहीं आया।। आपका क्या ख़्याल है?

    मैंने ये बात ऐसे लहजे में की कि उनको महसूस ना हो कि मैं उन पर चोट कर रहा हूँ। उन्होंने मेरी तरफ़ मुफ़क्किरा ना अंदाज़ में देखा

    माहौलियाती आलूदगी एक ड्रामा है।। हर नौ का छोटा बड़ा जानवर आख़िर-ए-कार एक तवाज़ुन में आजाता है।। जितना मरता है या मारा जाता है उतनी ही उस की शरह निम्मो बढ़ती है।। और इस का इतलाक़ कुछों पर भी होता है।। असल में शजर कारी,रोईदगी सब्ज़ा , साफ़ हुआ और निखरा शफ़्फ़ाफ़ समुंद्र।। ये सारी बातें हवाई हैं ।। ज़बानी जमा ख़र्च।। सख़्त गर्मी में एअर कंडीशन लगाए बंद कमरों में ठिठुरते लोगों की बातें

    शरह निम्मो से मुताल्लिक़ मेरा नुक्ता उन पर बिलाबास्ता मुबर्हन हो चुका था इस लिए मैंने इस मसले को एक और अंदाज़ से छेड़ा

    नजम उद्दीन साहिब क्या फ़लसफ़ा है।। आपकी ये जिहत मुझसे हमेशा पोशीदा रही है।।बकाए हयात हैवानात प्राप् का तजज़िया काबिल-ए-सिताइश है और मुझे पक्का यक़ीन है कि इस का इतलाक़ तो चिंकारा रन पर भी होता होगा।। नहीं ? अब मेरा शिकार का इरादा तो बिलकुल नहीं।। और ना ही ऐसे किसी काम के लिए लाईसैंस की इस्तिदा कर रहा हूँ ।। ज़ाहिर है मैं आपकी नौकरी तो नहीं ख़राब करना चाहता।। लेकिन।।

    मैंने देखा कि अपनी तारीफ़ सुनके वो फूल गए

    हाँ वो आपकी बात सही है ।। लेकिन मुझे ग़लत ना समझें ये नौकरी का मसला बिलकुल नहीं ।। मुझे दिली तौर पर हिरन का शिकार ज़ुलम लगता है।। कभी आपने देखा है नज़ीर साहिब ।। जब हिरन को गर्दन में गोली लगती है।। इस के आँसू।। गर्दन से रस्ता ख़ून।।और।। इस की आँखों में तमाम जहान का करब जैसे सिमट कर आजाता है।। हज़न से भरी ये तस्वीर इस क़दर दुख देती है मुझे कि में इस मसले में चिंकारा हिरन के शिकार को इस्तिस्ना देना चाहता हूँ।। बस यही बात है

    मैं घर आगया तो बेगम ने हसब-ए-आदत मुँह बनाया हुआ था

    एक हफ़्ता हो गया है।।नवेद भाई शिकार के लाईसैंस का पूछ रहे थे।। आपने अगर काम नहीं करना है तो उनको साफ़ बता दें।। यूं लटका कर रखना ठीक नहीं?। अपनी बहन के लिए मालुम जुब्बा में कमरा तो एक दिन में बिक किया और मेरे भाई के लिए पस-ओ-पेश।।ख़ैर मेरे साथ तो आपका जो सुलूक है सो है।। मैं बर्दाश्त करलेती हूँ अब में अपने मैके जा कर किस मुँह से।।

    रुज़ीना बेगम कमरा बुक करना और शिकार का लाईसैंस लेना ।। ज़मीन-ओ-आसमान का फ़र्क़ है इस में। बस कुछ ही दिनों की बात है।। इजाज़त मिल जाएगी।। शिकार शुरू हो जाएगीगा

    अगले दिन सुबह ही सुबह नजमी साहिब का फ़ोन आगया और मैं झट से उनके घर पहुंच गया। उनके पास , उनके बाक़ौल वो कारतूस चुके थे जिससे अगर किसी जानवर को खोपड़ी में मारा जाये तो इस को दर्द नहीं होना चाहीए। उन्होंने मुझे मुस्कुराते हुए एक लंबोतरा कारतूस दिखाया

    ये कारतूस सर के अंदर फिट कर दिमाग़ की लस्सी बना देता है।। दर्द का सवाल ही नहीं पैदा होता

    दो दिन बाद में और नजम उद्दीन साहिब ,जो सैडल कलब के मैंबर भी थे, निशाना बाज़ी की मश्क़ कर रहे थे। मैंने उन्हें इशारों कनाईओं में इन नए कारतूसों का बताया तो उन्होंने बड़ी दिलचस्पी ली

    अच्छा अमरीका से आए हैं?। वैसे कमाल है।। अमरीकीयों की हर बात निराली होती है।। यानी आप जानवर का शिकार करते हैं और उनको दर्द भी नहीं होता।। कमाल है

    हाँ नजम उद्दीन साहिब।। दर्द नाम को नहीं।। जैसे आप इसी कारतूस से चिंकारा हिरन को मारें।। इस की खोपड़ी के अंदर कारतूस फट जाये।। इस की आँखें बाहर निकल आयेंगी ।। दर्द औरहज़न का जो ज़िक्र आपने किया था।। बेचारे हिरन को इस से ना गुज़रना पड़े।।एक तीर से दो शिकार।। बस आप ब्रेन मसालिहा नहीं खा सकेंगे

    उन्होंने मेरा पोशीदा पैग़ाम पढ़ लिया और नफ़ी में सर पिलाते हुए कहा

    वो सब ठीक है लेकिन पता है किया है।। चिंकारा हिरन हमारे मुल्की वक़ार का मसला है। मैंने सुना है कि बैन-उल-अक़वामी इत्तिहाद बराए तहफ़्फ़ुज़ क़ुदरत चिंकारा हिरन को अपने सुर्ख़ जदूल में डालना चाहती है।। ये बात इस लिए बताई कि भारत इस हिरन के तहफ़्फ़ुज़ के लिए सेनकचोरी बनाने पर तिला हुआहै और हम इस हिरन की नसल मिटाने पर।। क़ौमी हमीयत का तक़ाज़ा है ये।। बाक़ी मुझे ख़ुद शिकार करने का शौक़ है और शिकार में फ़ीनफ्सिही इतनी क़बाहत नहीं वैसे।। अगर यही कारतूस इस्तिमाल करें

    उनके इस्तिदलाल दर इस्तिदलाल से में ये समझा कि वो मेरे चकमे में इतनी आसानी से नहीं आने वाले। मैंने आइन्दा चंद दिन सोचा ।। रास्ता मस्दूद देखा लेकिन फिर जैसे उस का ईलाज क़ुदरत ने ख़ुद ही फ़राहम कर दिया

    हुआ यूं कि नई हुकूमत ने कुरप्शन मिटाने के लिए नैब के साथ साथ कुछ ज़ेली कमेटियां बनाएँ और जब हर महिकमे के खाते खोले गए तो इस की लपेट में नजम उद्दीन साहिब के बरादर-ए-निसबती भी आगए। मौसूफ़ एक सरकारी इदारे में उन्नीस ग्रेड अफ़्सर थे और उन पर ठीक ठाक ग़बन की इंकुआयरी का मुआमला खिलने लगा

    ये सब मुझे ये ऐसे पता चला कि नजम उद्दीन साहिब ने मेरी बेगम के मोबाइल पर रंग किया। वो सख़्त घबराए हुए थे

    नज़ीर साहिब एक मसला आन पड़ा है।। शदीद किस्म का।। क़िबला तौफ़ीक़ मियां को तो आप जानते ही हैं।। नौशाबा का छोटा भाई।। इस पर उनका डायरैक्टर ग़बन का मुक़द्दमा बनाना चाहता है।। तीस करोड़ का मुआमला है।। ये नहीं इलम कि इस में सदाक़त कितनी है।। लेकिन बिलफ़र्ज़ अगर हिसाब किताब में चूक हो भी गई है तो वो पिछली हुकूमत के खाते में डाली जा सकती है।। या अगर बहुत ही ज़्यादा मसला हो तो रक़म वापिस भी की जा सकती है।। पूरे तीस के तीस। मेरे इलम में है कहा आप नून साहिब को जानते हैं।।

    मैंने देखा कि अब वो मेरे दाम में चुके थे। मैंने पहले कलिमे उनकी ताईद में कहे

    हाँ इतनी रक़म की तो भूल चूक हो सकती है।।हिना।। नजम उद्दीन साहिबनून साहिब को तो मैं आसानी से मिला सकता हूँ।। मेरा जानने वाला है।। उसे कोशिश कर के समझा सकता हूँ लेकिन ऑडिट सैक्शन का क्या करें।। असल मसला तो वहां है

    इस की आप फ़िक्र ना करें ऑडिट सैक्शन में मेरा एक जोंएरि है।।आसिम नामानी।। वो काग़ज़ात में उलट-फेर से रक़म की तरसील और वापिस तरसील ठीक कर देगा।। सिरा काम बैक डेटिड होगा और किसी को शक भी नहीँ होगा।। बस तौफ़ीक़ मियां का नाम नहीं आना चाहीए।। ख़ानदान के वक़ार का मसला है

    मैंने उन्हें इतमीनान दिलाया और उनके कहने पर आई आई चन्द्रेगर रोड गया और नून सीसे मिला जो असल में मेरा सीनीयर था लेकिन ओहदे में मुझसे कमतर।उनके बारे में एक मज़े बात बताता चलूं और वो ये कि उनकी ज़बान में लुक्नत तो नहीं थी लेकिन लहजे में एक बुनियादी कजी सी थी।। को हमेशा तलफ़्फ़ुज़ करता था उसने पूरी बात सुनी और कहा

    देखिए आजकल ये मुआमला दबाना मिस्क़ल है।। फ़ौजी हुकूमत में कुरेद ज़्यादा होती है।। बेसिक आप रक़म वापिस भी कर दें ऑडिट वाले ये रिस्क नहीं लें ।। ख़्वामख़्वाह में मिस्क़ल में ना फंस जाउं

    मैंने उन्हें ऑडिट डिपार्टमैंट की तरफ़ से तसल्ली दी और यूं ये मुआमला एक चुटकी में बाहमी इफ़हाम-ओ-तफ़हीम से हल हो गया। शाम को मैंने नजम उद्दीन साहिब को ख़ुशख़बरी सुनाई। वो ख़ुशी से फूले ना समाय और वहीं मैंने उनसे ये बात इंतिहाई लापरवाही से ,जैसे ज़िमनी बात हो, कही

    नजम उद्दीन साहिब ख़ानदान के वक़ार पर तब इंच आती है जब पता चलता है।। जब मुआमलात सामने ही नहीं आते।। पता ही नहीं चलता।। राज़दारी रखी जाती है तो यूं समझें कुछ हुआ ही नहीं

    मैंने उनकी आँखों में देखा

    जैसे आप चिंकारा हिरन ही को लें हिन्दोस्तान के चिंकारा हिरन के आदाद-ओ-शुमार काग़ज़ों पर होते हैं।। अब अगर यूं किया जाये कि हमारे काग़ज़ात पर भी आदाद-ओ-शुमार दरुस्त हूँ ।। तो मुल्की वक़ार का क्या सवाल कैसे उठे? अब जब यूं हूँ तो इस तनाज़ुर में शिकार हो या ना हो।। हिरण मरें या ना मरें।।एक ही बात बन जाती है।। नहीं?

    नहीं नज़ीर साहब ।। सब बातें अपनी जगह दरुस्त लेकिन ।। ये क़ानून के एहतिराम का सवाल है।। मुल्की आईन का सवाल है।।आप समझने की कोशिश करें

    नुमाउद्दीन साहब ।।आप भी कमाल करते हैं ।। क़लील तादाद ।।पच्चास, दस या इस से भी कम ।। देखें अगर क़लील तादाद में शिकार हो।। मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि मैं करने वाला हूँ।। मैं भला आपको बताए बग़ैर ये क्यों करने लगा

    ये बता कर मैंने चाय की प्याली उनकी तरफ़ खिसकाई

    तो अगर क़लील तादाद में शिकार हो।। किसी को कुछ भी ख़बर भी ना हो।।ज़ार दारी हो ।।यूं हो तो क़ानून की बे एहतिरामी का सवाल ही नहीं पैदा होता।। क़ानून की बेहतर अम्मी तो तब हो जब ऑडिट दीपार्टमंट वाले मसला उठाएं।। वहां मेरे एक जोंएरि हैं जो काग़ज़ात में हिरन की तादाद, शरह निम्मो वग़ैरा दरुस्त रखेंगे बल्कि हिन्दोस्तान से कहीं बेहतर रखेंगे

    वो तो ठीक है लेकिन जब आप हिरनी का शिकार करेंगे तो ।। देखें नाँ उस के बच्चों के दूध का क्या होगा? दूसरे उस के नर का क्या बने का।। वो जिन्सी इख़तिलात से महरूम रहेगा।। बेराह रवी।। हिरनों के इजतिमाई क़बीले की हमीयत।। उनकी नफ़सियाती सेहत पर-असर।। बे-माँ के हिरनी के बच्चे। ।ये सब बहुत पेचीदा बातें हैं।। मैं इस मुआमले में बिल्कुल कुछ नहीं कर सकता

    क़िबला नजम उद्दीन साहिब आप जानते हैं बल्कि ख़ुद भी मश्शाक़ी शिकारी हैं।हमारे पास अमरीकी दूरबीनें हैं हम इन हिरनियों को मारेंगे ही नहीं जिनके शेर ख़ार बच्चे हूँ। जहां तक जिन्सी इख़तिलात की बात है।।। ये मुआमला साल में एक-बार होता है।। वो दो महीने हम बिल्कुल शिकार नहीं करेंगे।। मुकम्मल इजतिनाब।। रही बात नफ़सियाती असर की।। क़लील तादाद में शिकार से कुछ नहीं होता।

    नज़ीर साहब ये भी देखें चीफ़ एगज़ेगटीव क़िबला मुशर्रफ़ साहब कुरप्शन के मुआमले में बहुत संजीदा हैं।।यूं शिकार का लाईसैंस देना उनकी हुक्मउदूली के ज़ुमरे में आता है।। उनका मेरे ऊपर एतिमाद है।।। मैं उनके एतिमाद को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता।। मेरी नौकरी का मुआमला है वर्ना मुझे हिरन से किया लेना देना? भाड़ में जाएं हिरन और इस के बच्चे

    मैंने मुआमला वहीं छोड़ दिया। असल में मैंने ये देख लिया था कि वो कोने में फंस चुके थे और अब बस एक ही दिन की बात थी। मैं घर आया और बेगम को ये ख़ुशख़बरी सुना दी कि इजाज़त मिल गई है और वो अपने भाई को ये बता दे कि वो अगले हफ़्ते शिकार के जब चाहे चोलिस्तान चला जाये ।।लाईसैंस अलबत्ता नहीं मिलेगा लेकिन शिकार का मसला नहीं ।।वो शिकार कर सकता है।।एक बात का ख़्याल अलबत्ता रखे कि दूध पिलाते हिरनियों को ना मारे।। इक्का दुक्का की ख़ैर है।।बस इख़तियात से काम ले

    बेगम ने इस के बावजूद मुँह बनाया

    पूरे तीन हफ़्ते लगे हैं इस मसले में।। आपको जब भी जायज़ नाजायज़ काम होता है वो बेचारा एक दिन में कर के दे देता है।। मेरी वजह से।। और फिर भी मेरा सार ख़ानदान निकम्मा है।। जैसे आपकी माँ कहा करती थीं

    अगले दिन शाम को मैंने नजम उद्दीन साहिब को घर खाने पर बुलाया। ज़याफ़त में मिनजुम्ला खानों के बेगम ने ताज़ा शिकार किए हुए चिंकारा हिरन के कबाब और सिंधी बिरयानी बनाई हुई थी जिसमें मिर्चें ज़रूरत से ज़्यादा थीं। कुछ कबाब और कुछ मिर्चों वाली बिरयानी खाते ।।सूँ सूँ करते हुए नजम उद्दीन साहिब ने इम्पोर्टड ब्रांड की व्हिस्की की चुस्की ली और तरंग में आगए

    नज़ीर यार शिकार की क़बाहतें अपनी जगह लेकिन वैसे हिरन के कबाब कमाल के होते हैं और वो भी भाभी के हाथ के बने

    मैंने लोहा गर्म देखा

    कबाब तो तब मिलें जब शिकार हो।। ये पच्चास ।। बीस।। दस या पाँच हिरनों की बात नहीं।। सिर्फ एक हिरण की बात है।।ताज़ा हिरन ।। सिर्फ एक हिरण ।। इस में शरह निमो , हिरण पर ज़ुलम, मुल्की वक़ार, क़ानून का एहतिराम, छोटे हिरनों के दूध के मसाइल, मर्द हिरणों की जिन्सी बेराह रवी, हिरणों के क़बीले की इजतिमाई नफ़सियात वाले तमाम मसाइल का अहाता बख़ूबी होजाता है और सबसे अहम जब ये काम राज़दारी में हो तो आप पर चीफ़ एगज़ेगटीविका एतिमाद क़ायम रहेगा और आपकी नौकरी भी बरक़रार रहेगी

    उन्होंने कुछ देर सोचा और दाँतों में ख़िलाल करते हुए कहा

    अच्छा तो फिर एक ही हो

    फिर करवट बदली और सर कझाया

    देख लें नज़ीर भाई ये इजाज़त ना मैंने तुम्हें दी है और ना ही ये बात मेरे इलम में है

    मेरे चेहरे पर बशाशत छा गई

    अगले दिन मैंने नवेद साहिब, शम्सुद्दीन सिद्दीक़ी साहिब, ख़ानसाहब, जलील साहिब और नूरानी साहिब।। सबको ये ख़ुशख़बरी सुनाई

    एक हिरण तक मुआमला हल हो चुका हियाब इंशाअल्लाह कुछ ही दिनों की बात है।। दस।। पच्चास और फिर जैसे था हो जाएगीगा।। मैंने बताया था ना हर मसले का एक हल होता है।। प्लैनिंग करनी होती है।और प्लैनिंग में जबड़ों को हिलाना पड़ता है

    ' 'इस्तिक़ामत से और दरुस्त तरीक़े पर

    नूरानी साहिब ने लुक़मा दिया और सब हँसने लगे

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY
    बोलिए