और चूँकि वीराना जंगल और तारीकी साँपों के मस्कन होते हैं इसलिए लोग शहरों से भाग कर जंगलों और वीरानों की तरफ़ ररुख़ नहीं करेंगे। बल्कि अपने अपने घरों में महसूर हो जाऐंगे, इन्सानी नस्ल के लिए जब भी कोई ख़तरा दर पेश हुआ धरती ने हमेशा उसे आग़ोश में पनाह दी है। इन्सान ख़ौफ़ ज़दा चूहों की तरह ज़मीन के अंदर ही अंदर घुसते चले जाऐंगे यहां तक कि शहर के नीचे एक और शहर आबाद हो जाएगा सर नगूँ और अंडर ग्राऊँड बेसमेंटों का जाल पूरे शहर में फैल जाएगा। जिससे इमारतों की बुनियादें खोखली हो जाएँगी और शहर ज़मीन में धँस जाएगा। गोया तारीख़ ख़ुद को दोहराएगी और मेरा यही ख़्याल है कि हड़प्पा, मोहनजो दारो और टेक्सला के साथ भी ऐसा ही हुआ होगा। सौ साल की उम्र पा कर इन्सान का रूप धारने वाले साँपों ने जब शहरों पर यलग़ार कर देती होगी तो उन लोगों ने उनके ख़ौफ़ से घरों कि आहनी दरवाज़े लगा कर बंद कर लिया होगा फिर आदमी चूहों की तरह सुरंगें ब और बिल खोद कर ज़ेर-ए-ज़मीन धरती के अंदर रहने लगे होंगे बुलंद-ओ-बाल इमारतों की बुनियादें सर-नगूँ के जाल से खोखली होगई होंगी और फिर ये शहर ज़मीन में धँस गए होंगे। या यूं कह लीजिए कि इमारतें भी ख़ौफ़ ज़दा हो कर दुबक गई होंगी, लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूँगा। यही वजह है कि मैं इस राज़ को अपने तक महदूद रखना चाहता हूँ लेकिन इसकी वजह सिर्फ़ ये नहीं है, इसकी दूसरी वजह और भी है और वो ये है कि मैं बुनियादी तौर पर एक बुज़दिल इन्सान हूँ ,मुझे डर है कि जूंही मैं किसी आदमी से इस बात का ज़िक्र करूँगा वो आदमी मुझे बग़ैर आँखें झपकाए थोड़ी देर तक घूरता रहेगा फिर मुझे डस कर किसी नाली में रुपोश हो जाएगा।
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