दीवाली के दीये
स्टोरीलाइन
"इस कहानी में इंसान की उम्मीदें और इच्छाएं पूरी न होने का बयान है। छत की मुंडेर पर दीये जल रहे हैं। एक छोटी बच्ची, एक जवान, एक कुम्हार, एक मज़दूर और एक फ़ौजी एक के बाद एक आते हैं। सब अपनी अपनी सोच में गुम हैं, दीये सबको चुप-चाप देखते हैं और फिर एक-एक करके बुझ जाते हैं।"
छत की मुंडेर पर दीवाली के दीये हाँपते हुए बच्चों के दिल की तरह धड़क रहे थे।
मुन्नी दौड़ती हुई आई। अपनी नन्ही सी घगरी को दोनों हाथों से ऊपर उठाए छत के नीचे गली में मोरी के पास खड़ी हो गई। उसकी रोती हुई आँखों में मुंडेर पर फैले हुए दीयों ने कई चमकीले नगीने जड़ दिए। उसका नन्हा सा सीना दीये की लौ की तरह काँपा, मुस्कुरा कर उसने अपनी मुट्ठी खोली, पसीने से भीगा हुआ पैसा देखा और बाज़ार में दीये लेने के लिए दौड़ गई।
छत की मुंडेर पर शाम की ख़ुनक हवा में दीवाली के दीये फड़फड़ाते रहे।
सुरेंद्र धड़कते हुए दिल को पहलू में छुपाए चोरों की मानिंद गली में दाख़िल हुआ और मुंडेर के नीचे बे-क़रारी से टहलने लगा। उसने दीयों की क़तार की तरफ़ देखा। उसे हवा में उछलते हुए ये शोअले अपनी रगों में दौड़ते हुए ख़ून के रक़्साँ क़तरे मालूम हुए... दफ़अतन सामने वाली खिड़की खुली... सुरेंद्र सर-ता-पा निगाह बन गया। खिड़की के डंडे का सहारा लेकर एक दोशीज़ा ने झुक कर गली में देखा और फ़ौरन उसका चेहरा तमतमा उठा।
कुछ इशारे हुए। खिड़की चूड़ियों की खनखनाहट के साथ बंद हुई और सुरेंद्र वहाँ से मख़मूरी की हालत में चल दिया।
छत की मुंडेर पर दीवाली के दीये दुल्हन की साड़ी में टके हुए तारों की तरह चमकते रहे।
सरजू कुम्हार लाठी टेकता हुआ आया और दम लेने के लिए ठहर गया। बलग़म उसकी छाती में सड़कें कूटने वाले इंजन की मानिंद फिर रहा था। गले की रगें दमे के दौरे के बाएस धुंकनी की तरह कभी फूलती थीं कभी सिकुड़ जाती थीं। उसने गर्दन उठा कर जगमग जगमग करते दीयों की तरफ़ अपनी धुँदली आँखों से देखा और उसे ऐसा मालूम हुआ कि दूर... बहुत दूर... बहुत से बच्चे क़तार बांधे खेल कूद में मसरूफ़ हैं। सरजू कुम्हार की लाठी मनों भारी हो गई। बलग़म थूक कर वह फिर च्यूंटी की चाल चलने लगा।
छत की मुंडेर पर दीवाली के दीये जगमगाते रहे।
फिर एक मज़दूर आया। फटे हुए गिरेबान में से उसकी छाती के बाल बर्बाद घोंसलों की तीलियों के मानिंद बिखर रहे थे। दीयों की क़तार की तरफ़ उसने सर उठा कर देखा और उसे ऐसा महसूस हुआ कि आसमान की गदली पेशानी पर पसीने के मोटे मोटे क़तरे चमक रहे हैं। फिर उसे अपने घर के अंधियारे का ख़्याल आया और वो इन थिरकते हुए शोअ्लों की रौशनी कन्खियों से देखता हुआ आगे बढ़ गया।
छत की मुंडेर पर दीवाली के दीये आँखें झपकते रहे।
नए और चमकीले बूटों की चरचराहट के साथ एक आदमी आया और दीवार के क़रीब सिगरेट सुलगाने के लिए ठहर गया। उसका चेहरा अशर्फ़ी पर लगी हुई मुहर के मानिंद जज़्बात से आरी था। कालर चढ़ी गर्दन उठा कर उसने दीयों की तरफ़ देखा और उसे ऐसा मालूम हुआ कि बहुत सी कठालियों में सोना पिघल रहा है। उसके चरचराते हुए चमकीले जूतों पर नाचते हुए शोअ्लों का अक्स पड़ रहा था। वो उनसे खेलता हुआ आगे बढ़ गया।
छत की मुंडेर पर दीवाली के दीये जलते रहे।
जो कुछ उन्होंने देखा, जो कुछ उन्होंने सुना, किसी को न बताया। हवा का एक तेज़ झोंका आया और सब दीये एक एक कर के बुझ गए।
- पुस्तक : منٹو کےافسانے
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