इल्ज़ाम
जंगल से चूहों की फ़ौज शहर की तरफ़ भाग रही थी। चारों तरफ़ अफ़रा-तफ़री का आलम था। कोई चूहा कुछ भी बताने की हालत में नहीं था। सबको अपनी जान की फ़िक्र थी। इस से पहले चूहों को ऐसी कैफ़िय्यत से गुज़रना नहीं पड़ा था। सभी आराम से जंगल में गुज़र-बसर कर रहे थे। शहर के चूहे भी जंगल की तरफ़ इस लिए कूच कर गए थे कि वहाँ ज़िंदगी ज़्यादा आराम से गुज़र रही थी। जंगल का मौसम भी ख़ुशगवार था और हालात भी साज़-गार थे। रात हो या दिन किसी भी वक़्त बिला-ख़ौफ़-ओ-ख़तर वो कभी भी और कहीं भी आ जा सकते थे। कोई रोक-टोक नहीं थी। कोई पूछने वाला नहीं था। खाने-पीने की चीज़ों की भी फ़रावानी थी। गोया ज़िंदगी पूरे आन-बान और शान से गुज़र रही थी। अचानक एक दिन जंगल में एक ऐसा वाक़िया पेश आया, जिससे तमाम चूहों की ज़िंदगी ख़तरे में पड़ गई। यूँ तो जंगल का माहौल बिगाड़ने और अमन-ओ-अमान ख़त्म करने के लिए कुछ जंगली बासी बहुत दिनों से लगे हुए थे। वहाँ का पुर-सुकून माहौल उन्हें एक आँख नहीं भाता था। इसलिए कुछ ऐसा करने की साज़िश रची जा रही थी जिससे जंगल में बद-अमनी फैल जाए।
जंगल के राजा शेर की चूहों से बहुत अच्छी बनती थी। भला बनती भी क्यों नहीं? ये तो सबको पता ही था जब शेर के दाँत में दर्द हुआ था तब हकीमों, डाक्टरों और वेदों ने अपने अपने तरीक़े से ईलाज करने की कोशिश की मगर सभी नाकाम रहे थे। बिल-आख़िर एक चूहे ने अपने नुकीले दाँतों से राजा के एक एक दाँत की सफ़ाई कर दी। सफ़ाई के बाद राजा को दर्द से नजात मिल गई। इसलिए शेर चूहे का एहसान कभी नहीं भूला था। वो अपने बच्चों को हमेशा चूहों की दिलेरी और फ़र्मां-बरदारी के क़िस्से सुनाया करता था। इसके बाद चूहों की ज़िंदगी और भी आराम से गुज़रने लगी थी।
दर-अस्ल बद-अमनी फैलने की वजह कहीं और थी। शेर की बहन की शादी होने वाली थी। पूरा जंगल दुल्हन की तरह सजा हुआ था। दूर-दराज़ के जंगल से हर तरह के जानवर इस तक़रीब के लिए मदऊ थे। शादी में सभी शिरकत कर रहे थे। हाथी से लेकर ख़रगोश और बाज़ से लेकर जुगनू तक सभी वहाँ मौजूद थे। हैरत की बात तो ये थी कि वहाँ एक भी चूहा नज़र नहीं आ रहा था। ख़ुद चूहों को भी ये अच्छा नहीं लगा। चूहों की एक मीटिंग हुई जिसमें ये तय पाया कि वो सभी शादी के दिन ज़रूर हाज़िर रहेंगे। मुसीबत ये थी कि जहाँ शादी की तक़रीब हो रही थी वो जगह हिफ़ाज़ती दस्तों की निगरानी में थी और हिफ़ाज़ती घेरे को तोड़ कर अंदर जाना नामुम्किन था। इस लिए सभी चूहों ने सुरंग बनाने पर हामी भर ली। आनन-फ़ानन सुरंग बन गई और एक-एक कर के सभी चूहे शेर की बहन को मुबारकबाद देने निकल पड़े।
पहला चूहा महल के क़रीब पहुंचा ही था कि एक हादिसा पेश आ गया। शेरनी का क़त्ल हो गया। शेरनी का क़त्ल किस ने किया ये पता नहीं चल पाया। क़ातिल की तलाश में चारों तरफ़ सिपाही दौड़ा दिए गए। तलाश जारी थी कि गीदड़ की नज़र एक सुरंग पर पड़ी। फिर क्या था उसे तो अपने मंसूबे को सर-अंजाम देने का जैसे मौक़ा मिल गया। बहुत दिनों से चूहों के ख़िलाफ़ साज़िश उसके दिमाग़ में पनप रही थी। शेर के साथ चूहों की दोस्ती उसे भाती नहीं थी। इस बार मौक़ा पाते ही उसने ये अफ़्वाह फैला दी कि शेरनी का क़त्ल एक साज़िश का नतीजा था। चूँकि चूहों को शादी में शिरकत की इजाज़त नहीं थी इस लिए उन्होंने उसे अपनी इज़्ज़त-ओ-वक़ार का मस्अला बना लिया और बदला लेने की ग़रज़ से शेरनी का क़त्ल कर दिया।
अब ये तो वक़्त ही बताएगा कि अस्ल क़ातिल कौन था? किसने महल में घुस कर शेरनी का क़त्ल किया? लेकिन क़त्ल का इल्ज़ाम तो चूहों पर लग चुका था। गीदड़ अपने मंसूबे पर ख़ुश था तो दूसरी तरफ़ चूहे जंगल से भाग कर दर-ब-दर की ठोकरें खाने को मजबूर थे।
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