जॉय
स्टोरीलाइन
तरक्क़ी ने इंसान को मज़बूत तो बना दिया है, लेकिन इंसानी रिश्तों को कमज़ोर कर दिया है। यह एक ऐसे ही परिवार की कहानी है, जो एक ही छत के नीचे रहने के बावजूद एक-दूसरे से अनजान हैं। हर कोई अकेला है। अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए घर के मुखिया ने एक कुत्ता पाल रखा है, जिसका नाम जॉय है। जॉय के साथ वह इतना ज़्यादा वक़्त बिताता है कि एक वक़्त उसे ऐसा लगता है कि जैसे उसकी रुह जॉय के अंदर समा गई है और जॉय की रुह उसके अंदर।
जॉय मक़नातीस का ऐसा टुकड़ा था जिस पर घर के बिखरे हुए सब ज़र्रे चिमट जाते थे।
भौं... भौं... भौं। इस घर में सुबह पर यक़ीन जॉय की आवाज़ से आता है।
मेरा घर जहां सब एक दूसरे से मुँह फेर कर जी रहे थे, एक दूसरे का जी जला कर अपना जी ख़ुश करते थे, बाहर मिलने वाली सारी नाकामियों नाइंसाफ़ियों का इंतिक़ाम एक दूसरे से लेते थे ।
मगर जॉय उन्हें कुछ करने भी दे। अब तो घर में सिर्फ़ जॉय की मर्ज़ी चलती है। किसी को प्यार आता है तो जॉय पर... हंसी आती है तो जॉय की हरकतों पर... उसका मूड उसकी मुहब्बत, उसकी पसंद ना पसंद... कभी कभी मुझे ऐसा लगता है जैसे सदर ख़ानदान की कुर्सी पे मेरी बजाय जॉय बैठा हो उस घर में... जॉय हर काम की निगरानी करता है। बाहर जाने वालों को गेट तक छोड़ता है, अंदर आने वालों को पहले शक-व-शुब्हा से देखता है और फिर उनके किरदार के बारे में पूरी तरह मुतमइन होने के बाद ही उन्हें अंदर आने की इजाज़त देता है। फिर किचन की निगरानी करना, दीवारों से झांकने वाली बिल्लियां और दरख़्तों पर शोर मचाने वाले कौवे और दरवाज़े पर बेल बजाने वाले अजनबी चेहरों से निपटने में वो ख़ूब थक जाता है।
भौं... भौं... भौं... उठो उठो... वो उजाला होने से पहले मुझे झिंझोड़ डालता है। कोई अच्छा ख़्वाब तो तुम्हारे नसीबों में है नहीं, तो फिर चलो नीचे सड़क पर कोई ख़ूबसूरत ख़्याल, दिलचस्प हादिसा ढूंढें...
उंहों... मैं अपने चेहरे पर जॉय के प्यार की नमी पोंछ कर करवट बदल लेता हूँ।
कूँ... कूँ... कूँ... जॉय अब मेरे बिस्तर पर आ गया है।
मेरी बीवी रमा नींद की गोली खा के सोती है और जॉय ये बात जानता है कि इस जुरात पर इस वक़्त वो रमा की लात नहीं खाएगा।
तू दरवाज़ा खोल कर अंदर कैसे आ जाता है...? मैं उसकी गर्दन पकड़ कर नीचे धकेल देता हूँ। हम दोनों सोने से पहले अपने अपने मौसम बदलते रहते हैं। कभी मुझे गर्मी लगती है, कभी रमा को सर्दी। फिर दिन भर के शिकवे शिकायत। एक दूसरे पर इल्ज़ामों की बौछार और उनसे बचने के लीए करंट वाले तार हमने अपने चारों तरफ़ फैला रखे हैं। जब में रमा की तरफ़ बढ़ता हूँ तो कितने स्विच ऑन और ऑफ़ करना पड़ते हैं।
मगर जॉय उन्हें एक ही छलांग में पार करके मुझे प्यार करने आ जाता है। इस अदा पर उसका मुँह न चूमें तो क्या करें।
मगर इसके बाद रमा की नफ़रत भरी छी छी... थू थू...
और थोड़ी देर बाद जब रमा बिस्तर पर बैठी जमाईयां लेती है तो जॉय उसकी गोद में चढ़ कर भी अपना प्यार वसूल कर लेता है और चोरी पकड़े जाने पर वो ऐसे सर झुका लेती है जैसे मैंने उसे किसी आशिक़ के साथ रंगे हाथों पकड़ लिया हो।
मैं एक नाकाम बिज़नस मैन हूँ। व्यपार में घाटा मेरा ब्लडप्रेशर बढ़ा देता है। मगर सुबह टी.वी. पर बढ़ती हुई क़ीमतों का निशान मुझे पुरसुकून कर देता है। ऐसे वक़्त इंसान का जी चाहता है, आँखें बंद किए रातों रात लखपति बनने का ख़्वाब देखे।
लेकिन डाक्टर ने मुझे सुबह सवेरे चलने का हुक्म दिया है। और ये बात सब भूल जाएं जॉय नहीं भूलता ।सड़क पर आने के बाद मेरे हाथ में जॉय की ज़ंजीर होती है। मगर जॉय तो जैसे ज़ंजीर मेरे गले में डाल कर मनमाने रास्तों की ओर चल निकलता है।
चार मंज़िलों की सीढ़ियाँ उतरने के बाद मेरा जी चाहता है लॉन की बेंच पर ही बैठा रहूं। मगर जॉय के लिए तो सुबह के उजाले में बेशुमार वादे और उम्मीदें जगमगाती हैं। रात को इस राह से गुज़रने वाली कुतिया यहां अपनी मख़सूस ख़ुशबू बिखेर गई हैं। जॉय अपने नथुने फैला कर, मुँह उठा कर हवा में कुछ सूँघता है और अंजानी राहों पर भागने लगता है। कभी कभी बिज़नस के दम घोंट देने वाले फंदों से जान छुड़ा कर मेरा जी चाहता है मैं एक नज़्म लिखूं। खुली हवा में बैठ कर किसी नए ख़्याल को पकड़ूं।
मगर जॉय भी एक जॉय देखने वाला आर्टिस्ट है जो अपनी नई तख़लीक़ की खोज में आगे ही आगे दौड़ना चाहता है। कभी मैं आगे आगे चलता हूँ और जॉय एक सआदतमंद बच्चे की तरह मेरे साथ साथ मेरे मूड को देखते हुए चलता है। फिर अचानक सड़क का कोई नज़ारा उसे दौड़ने पर मजबूर कर देता है और मैं उसके पीछे पीछे भागते हांप जाता हूँ। मैं एक नाकाम बिज़नस मैन, मामूली सा शायर... सारी ज़िंदगी ऊंचा उड़ने के ख़ाब देखता रहा...
डैडी... आपने बिज़नस की लाईन अपनाने से पहले किसी से मश्विरा क्यों नहीं किया?
डैडी आप के क्लासफ़ेलो कितने मशहूर डाक्टर हैं। आपने मेडिसिन में एडमीशन की कोशिश क्यों नहीं की?
अपने बच्चों के ऐसे सवालों पर में घबरा जाता हूँ।
अरे उन्होंने तो ज़िंदगी भर जिस सौदे में हाथ डाला घाटा ही घाटा, रमा ठंडी सांस भर के अपना माथा पीट लेती है।
और मुझे चारों तरफ़ धुआँ ही धुआँ नज़र आता है।
रमा जितनी सुंदर थी उतनी ही कड़वी। शिरा टपकाती गुलाब जामुन जैसी उस मोहिनी सी लड़की पर मैं अपना सब कुछ लुटा बैठा था। फिर जिस दिन अपनी गिरह में उसका पल्लू बांध कर मैं अपने घर की सीढ़ियाँ चढ़ा था तो जैसे किसी पहाड़ पर चढ़ता गया। रमा मुझसे दूर ही दूर खड़ी हंसती रही। उसने मेरे गले में एक रस्सी डाल कर डुगडुगी बजा दी थी।
अब मैं जॉय के गले में रस्सी डाल कर भाग रहा हूँ। हम दोनों हांप रहे हैं... मैं जानता हूँ वो जिस रास्ते पर जा रहा है वहां आगे कुछ नहीं है। मगर खोज और किसी अनहोनी ख़ुशी से मूडभेड़ उसे दीवाना बनाए रखती है।वो क़रीब से गुज़रने वाले लोगों, कारों और स्कूटरों को बड़े ग़ौर से देखता है और पसंद ना आने वाले चेहरों पर भौंकने लगता है।
अरे अहमक़ ये तो किसी मिनिस्टर की कार थी। तुझे क्या ज़रूरी था उस पर भोंकना...?
ये सुन कर जॉय रुका और पास वाले खंबे की तरफ़ टांग उठा कर पेशाब करने की ऐक्टिंग की। इससे पहले वो हर पसंद न आने वाले चेहरे को देख कर यही काम करता रहा है।
अब आसमान पर वहम की तरह नज़र आने वाला उजाला, आने वाले दिन का यक़ीन बन कर फैल रहा है।
वो अभी तक नहीं आई। हम दोनों एक साथ दूर तक देखते हैं।
रात को वो इस राह से गुज़री थी। नथुने चौड़े करके जॉय उसकी ख़ुशबू सूँघता है। फिर अचानक दूर से आने वाली रोज़ी की भौं भौं उसे रोक देती है। वो मुँह ऊपर उठा कर, आशयाना के मकीनों से कहता है। भौं... भौं... भौं... छोड़ दो रोज़ी को सलाखों के पीछे मत बंद करो। रोज़ी डीयर नीचे आओ।
निरा अहमक़ है तू... मुझे गु़स्सा आ जाता है। वो तो बंद दरवाज़ों के पीछे क़ैद है। उसकी मोटी मालकिन को टहलने के नाम से चिढ़ है। इसलीए वो अपनी नाज़ुक इंदाम कुंवारी कुतिया को आशिक़ मिज़ाज कुत्तों से दूर रखती है। सलाखों वाली खिड़की के पीछे बैठा देती है कि जॉय जैसे कुत्ते भौंकते भौंकते बेहाल हो जाएं।
चिल्लाओ मत यार...
वो मिल जाएगी तो और पछताओगे बेटा...
मगर जॉय अपनी मुहब्बतों के सुराग़ जाने कहाँ कहाँ खोजता फिरता है। जगह जगह रुक कर वो पंजों से ज़मीन खोद डालता है। अपनी मुँह ज़ोर ख़्वाहिशों से बेताब हो कर छलांगें लगाता है। मुझे उकताहट होने लगती है। उसके आगे ही आगे दौड़ती हुई सड़क पर मेरे लिए कोई दिलचस्पी नहीं है। जॉय की ज़ंजीर थाम कर उसके पीछे पीछे चलना ही मेरा काम है।
डाक्टर ने कहा है रोज़ पाँच किलो मीटर चलना चाहिए। इस फ़ासले को कई बार मैंने दिल में नापा, पेट्रोल पंप से आगे, आइसक्रीम पार्लर के पास... मगर जॉय के लीए कोई हद आती ही नहीं।
रोज़ी के लिए चिल्लाते चिल्लाते एक परिंदे का उड़ता हुआ पर उसके लिए नई ख़ुशियों का सामान ले आया... वो जी भर के उछला कूदा गिराया और फिर उस पर को मुँह में दबोच कर मेरी गोद में डाल दिया। जॉय के लिए इस दुनिया में कितनी ख़ुशियां थीं और मैं ख़ाली हाथ गोद में रखे फुटपाथ पर बैठा हूँ।
एक औरत की गु़स्सा भरी नज़रें उसे फिर आगे की तरफ़ दौड़ाने लगती हैं। अपने गले में पड़ी हुई ज़ंजीर को वो अब नहीं मानता। जैसे ज़ंजीर उसने मेरे गले में डाल दी हो। सड़क पर जितनी ख़ूबसूरत औरतें जा रही हैं वो जॉय को देख कर हंसती हैं। रास्ता चलने वाले बच्चे उसे देख कर सीटी बजाते हैं। चमकीली धूप उसके लिए निकली थी... उसे ठंडी ठंडी हवाएं मिल रही थीं, मज़ेदार खूशबूएं, अनोखे मंज़र, दिलचस्प खिलौने।
और मेरे साथ सिर्फ़ तेज़ धूप है। आज आने वाले बिज़नस की उलझनें और हर पल ज़्यादा गर्म पड़ने वाला सूरज।
सड़क पर चहलक़दमी करने वाले सब लोग जॉय को विश् करते हैं कुत्ते के सर पर हाथ फेरना मुहज़्ज़ब होने की निशानी है और मुझ जैसे फ़ालतू आदमी से सड़क पर बात करना ऊंची सोसाइटी में अच्छा नहीं समझा जाता। इसलिए जब जॉय मेरे साथ हो तो लोगों को वो अकेला ही नज़र आता है और जब मैं सड़क पर अकेला हूँ तो लोग मुझे एक आदमी की तरह नज़रअंदाज कर देते हैं।
हम दोनों सर झुकाए अब घर की तरफ़ चल रहे थे कि अचानक सड़क पर दूर पिंकी अपनी माँ के साथ नज़र आई और हम दोनों के दिलों की कली खिल उठी।
जॉय... जो... जो... जो...
वो सड़क पर मिले तो जॉय के लिए सीटियां बजाती है। जॉय उसकी आवाज़ सुनते ही भागता हुआ पिंकी की गोरी पिंडलियों से लिपट जाता है, उसकी फ़्राक़ पकड़ कर झूलता, उसे धक्के दे कर आस पास मंडलाता है।पिंकी हम दोनों को पसंदीदा नज़रों से देखती है। उसने एक बार टी वी पर मेरी नज़्म सुनी थी और मुझसे आटोग्राफ़ लेने आई थी।
पिंकी की मुस्कुराहट की ठंडक, उसके क़र्ब की आंच, उसकी नज़रों की पसंद, मेरी थकन भी उतार देती है कभी कभार।
जॉय से खेलने के बहाने पिंकी हमारे घर भी आने लगी है, हालाँकि उसकी माँ से लॉन ख़राब करने के सिलसिले में रमा की ज़बरदस्त जंग हो चुकी है, मगर वो अर्चना की सहेली है और दोस्ती का बंधन अब जॉय से बंध गया है। पड़ोस के सब बच्चे हमारे घर को सिर्फ़ जॉय का घर कहते हैं।
पिंकी के घर में आते ही जॉय मेरी कुर्सी के नीचे से उछल कर उसकी तरफ़ बढ़ता है। ख़ुशी से भरी कूँ कूँ के साथ उसे धकेलने लगता है। पिंकी उसके लिए चॉकलेट लाती, या छोटा सा बाल और फिर उन दोनों की उछल कूद, चीख़ पुकार से सारा घर गूंज उठता। जॉय के साथ खेलते खेलते पिंकी मेरे कमरे में आ जाती तो में घबरा के खड़ा हो जाता था। उसे देखते ही कोई न कोई बात हो जाती। मेरी कोई चीज़ ज़रूर खो जाती थी और मैं सारे कमरे को उलट पलट कर डालता। तब जॉय मेरे सामने फैला हुआ अख़बार समेट कर डस्टबिन में डाल आता... सब हँसने लगते।
अब ये बहुत सताने लगा है पिंकी, अर्चना भी उनके खेल में शरीक हो जाती थी।
जॉय को जो चीज़ अच्छी नहीं लगती उसे डस्टबिन में फेंक देता है। पिंकी हँसने लगी।
सच्ची?
हाँ, हमारी कोई चीज़ खो जाये तो डस्टबिन में मिल जाती है, परसों मम्मी की लिपस्टिक।
अर्चना, शोर मत करो... मेरे सर में दर्द हो रहा है। मम्मी की डांट सुन कर उन दोनों की हंसी थम गई।
भौं भौं भौं। जॉय ने रमा को डांट दिया।
चुप रहो... हर वक़त की बक-बक...
रमा को जॉय पर गु़स्सा तो बहुत आया फिर सब के सामने यूं ज़ाहिर किया जैसे जॉय को जानवर समझ कर माफ़ कर दिया है।
मेरी हंसी बड़ी देर तक न रुकी। जॉय ने जैसे आज मेरी दिली मुराद पूरी कर दी हो। रमा को कोई डांट सके, ये कैसी अनहोनी बात थी।
नाशते की मेज़ पर अख़बार रखा होगा। चारों तरफ़ दुनिया में घमसान का रन पड़ा है। अख़बार वाली मेज़ के आस पास भी घर की बड़ी ताक़तों के दरमियान शदीद तज़ाद था। रूमी ने फ़ैसला कर लिया था कि वो जायदाद में से अपना हिस्सा लेकर अमरीका चला जाएगा ताकि ऐसे अहमक़ बाप और ज़िद्दी माँ से पीछा छुड़ा सके। अर्चना अपनी पढ़ाई छोड़कर उस स्टेज अदाकार से शादी करने का फ़ैसला कर चुकी थी जो अब तक दो बीवियों को छोड़ चुका है। रमा समझती थी इस घर में उसके अहकाम न माने जाएं ये हो नहीं सकता। उसकी औलाद के बिगड़ने की सारी ज़िम्मेदारी उनके बाप पर है जो इतना मुफ़लिस है और इतना बुज़दिल है कि औलाद पर कोई रोब ही न डाल सका।
कुवैत एक छोटा सा इस्लामी मुल्क है जिस पर रातों रात एक बड़ी ताक़त ने हमला करके क़ब्ज़ा कर लिया।अख़बार की ये ख़बर ब्रेड की स्लाइसों और मार्मलेड की मिठास में कड़वाहट घोल चुकी है।
रमा और बच्चों के साथ उस वक़्त बोलने वाले डायलाग्स मैं रास्ते भर याद करता रहा हूँ। हमें दरवाज़े में देख कर सब से पहले रूमी सीटी बजाता है। हैलो जॉय, जो जो जो...
अब जॉय मेरे हाथ से ज़ंजीर का सिरा छुड़ा कर रूमी की तरफ़ उछलता है, उसकी टांगों से लिपट जाता है।उसके कंधे पर हाथ रख कर झिंझोड़ डालता है। रूमी बड़ी मुहब्बत से उसके बाल सहलाता है। ख़ूब मक्खन लगा कर बड़े चाव से उसे स्लाइस खिलाता है और फिर घबरा कर मुझ से पूछता है। डैडी आज तो शायद आप को जॉय का इंजैक्शन भी दिलवाना है ना?
(ये सिर्फ़ डैडी से बात करने का बहाना है)
मैं कोई जवाब नहीं देता सिर्फ़ सर हिला देता हूँ ( इस डायलॉग की मुझे उम्मीद नहीं थी ना)
इतनी देर लगा देते हो आने में। रमा भी उबला हुआ अंडा तोड़ते में कुछ कहना ज़रूरी समझती है। हमें जल्दी जाना है। इसलिए हमने नाशता शुरू कर दिया। अर्चना सर झुका कर कहती है।
सुबह सवेरे लोग अंधा धुंद कार चलाते है , ज़रा देख भाल के ले जाया करो जॉय को।
कुर्सी पर बैठ कर मैं अपनी प्लेट को सीधा करता हूँ। जाने डाक्टर ने कल मुझे क्या परहेज़ बताया था।
बहुत भूका है बेचारा... ख़ूब थक गया है ना... सुनो पहले जॉय को दूध दे दो। अर्चना चाहती है उस वक़्त सब जॉय की बात करें, उसके बारे में नहीं।
डाक्टर ने मुझे नाशते से पहले दो दवाएं खाने को कहा है मगर इतना थक गया हूँ कि बेड रूम से दवाएं लाने को जी नहीं चाहता।
क्यों! आज फिर नाशता नहीं करोगे? रमा बेज़ारी से मेरी तरफ़ देखती है।
अच्छा अच्छा अभी खा लेता हूँ।
जॉय,जॉय... जॉय... अर्चना जॉय से खेल रही है। वो अर्चना को छू छू कर भाग रहा है, कभी सोफ़ों पर उछलता है ,कभी उसकी सारी का पल्लू पकड़ के खींचता है।
फ़ोन की घंटी बिजी... जॉय खेलना छोड़कर फ़ोन की तरफ़ मुँह करके भौंकने लगा। उसे फ़ोन आने से बड़ी चिढ़ थी। उतनी देर उसे चुप रहना पड़ता है ना।
फ़ोन रूमी के लिए था... वो उठा तो मुँह पर उंगली रख कर जॉय से कहा... चुप चुप।
जॉय चुप हो गया। मगर निचला बैठना उसके बस में न था इसलिए चारों तरफ़ ऐसी चीज़ें ढ़ूढ़ने लगा जो इस कमरे में उसे ग़ैर ज़रूरी लग रही थीं। उसने पहले अर्चना की किताब सोफे से उठा कर डस्टबिन में डाली। फिर मेरी दवा का पैकेट, रमा के बालों से गिरे हुए फूल। जॉय उसे भी डस्टबिन में डालो... में घबरा गया। अर्चना ने मेरी तरफ़ इशारा किया था... नहीं... मेरे पैरों के पास छोटा सा स्लाइस पड़ा था। आप नाशता क्यों नहीं करते रमा बेज़ार होती जा रही थी।
हाँ, करता हूँ... पहले दवा खाना है।
इतनी दवाएं खा खा के हाज़मा ख़राब कर लिया है। वो मुँह बना कर मेज़ से उठ जाती है।
स्लाइस फेंकने के बाद जॉय ने रूमी का सिगरेट केस मुँह में दबाया और डस्टबिन की तरफ़ बढ़ा। मगर फ़ोन रख कर उसने जॉय के मुँह से सिगरेट केस छीना। एक थप्पड़ उसके मुँह पर लगाया और एक गाली दी। मेरी किसी चीज़ को हाथ लगाया तो मार के इसी डस्टबिन में फेंक दूंगा।
मार खा के जॉय चकरा गया... गाली सुन कर सहम गया... लड़खड़ाता हुआ वो मेरी तरफ़ आया और मेरे क़दमों के पास बैठ कर हांपने लगा।
जॉय के पिटने पर रमा तिलमिला सी गई। मगर गुस्से में भरे बेटे के सामने मुँह खोलने की हिम्मत न पड़ी।
वो गाली बर्दाश्त नहीं कर सकता। अर्चना को भी जॉय का पिटना अच्छा न लगा... हाँ उसे तो डांट दो तब भी शर्मिंदा हो जाता है। अर्चना ने अपना पर्स उठा कर बाहर जाते हुए कहा...
वो कोई इंसान है कि तुम उसे मारने लगे?
डस्टबिन में फेंकने की बात पर डर गए जॉय...?
जॉय के मिज़ाज से इस घर में सब अच्छी तरह वाक़िफ़ थे। उसकी तकलीफ़ पर सब को दुख होता है। जॉय तुम लक्की हो।
घर से बाहर जाते वक़्त घर का हर फ़र्द बड़ी देर तक आईने के सामने खड़ा रहता है, सब अपने चेहरों पर दूसरा मास्क चढ़ाते हैं, हंसते-मुस्कुराते दुनिया को अपनाने और अपनी चालाकी को कैश कराने के लिए अच्छा मेकअप् और अच्छी ऐक्टिंग ज़रूरी हो गई है।
जो... जो... जो... बाहर जाते वक़्त रूमी ने रूठे हुए जॉय को मनाना ज़रूरी समझा। रोज़ उसकी आवाज़ सुनते ही उछल कर दौड़ता और रूमी की टांगों से लिपट जाना ज़रूरी था जब तक रूमी की कार गेट से बाहर न चली जाती वो चिल्ला चिल्ला कर उछलता रहता था। मगर आज उसने ज़रा सी आँख खोल कर रूमी को देखा और मुँह फेर कर लेट गया।
मुझे शक होने लगा... जॉय में किसी इंसान की रूह आ रही है। वो धीरे धीरे इंसानों जैसा बन रहा है। अगर सचमुच ऐसा हो गया तो... किसी डस्टबिन में फेंक दिए जाओगे...
अख़बार पढ़ते पढ़ते मुझे ऊँघ सी आने लगी।
मैं खाने की मेज़ के नीचे पड़ा रूमी की मार से कराह रहा था... मेरे गले में एक ज़ंजीर पड़ी थी जिसे जॉय घसीट रहा था...
कैसी बेदर्दी से घसीटते हो उसे...? रमा जॉय से कह रही थी... आओ... मेरी गोद में आओ...
मैं कूद कर रमा की गोद में जा बैठा... और जब रमा ने अपना मुहब्बत भरा हाथ मेरे बालों पर फेरा तो मेरी आँखों में आँसू आ गए।
जाने कौन रो रहा था... मैं... या वो...?
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