माँ
रोचक तथ्य
میری بیمار والدہ کی حالت دن بہ دن بگڑتی چلی گئی اور ہم بھائیوں سے یہ فیصلہ نہ ہو سکا کہ کیا کریں۔ ہم سے تو یہ بھی فیصلہ نہ ہو سکا کہ ان کا عزیز ترین بیٹا کونسا ہے
मेरी वालिदा बीमार किया पड़ी कि उनकी हालत दिन बह दिन बिगड़ती चली गई और सँभलने का नाम ही नहीं लेती थीं। हम भाईयों से ये फ़ैसला ना हो सका कि क्या करें। हम भाईयों से तो ये भी फ़ैसला ना हो सका कि उनका अज़ीज़ तरीन बेटा कौनसा है । पता नहीं किया मर्ज़ था कि उनका वज़न बतदरीज घटता चला गया, खाने पीने से यकसर रग़बत ना रही और उन्हों एक तरह से ने चुप साध ली। हमने बारहा उनसे पूछा लेकिन उन्होंने डाक्टर के पास जाने से इनकार कर दिया।
कोई वजह तो थी कि उनको हस्पताल जाने से इतनी वहशत थी । मेरा एक अंदाज़ा था और वो ये कि शायद जब तक सारे भाई मिलकर ये ना तै करें कि इन का ईलाज कैसे होगा वो हस्पताल जाने से इंकारी रहेंगी लेकिन ये बात में वसूक़ से नहीं कह सकता ।अब मुझे ये भी फ़िक्र लाहक़ हो गई है कि कहीं आप ये ना समझ बैठें कि ये बात मुझे इन्ही ने बताई। नहीं साहिब उन्होंने मुझसे ऐसी कोई बात नहीं की। वो तो बस ख़लाओं में घूरती रहती थीं।। चुप-चाप, किसी से कुछ भी कहे बग़ैर।
मैंने उनकी तरफ़ देखा ।।। उनके हाथ में जंग का एक फटा पुराना पर्चा था ।।उनके झुर्रियों भरे चेहरे पर नक़ाहत ही नक़ाहत लिखी हुई थी , बाल उलझे और उनकी ख़ूबसूरत आँखें इंद्र को धंसी हुई थीं । उनके होंटों की सुर्ख़ी स्याही माइल हो चुकी थी और अब उनमें इतनी भी ताब नहीं रही कि बार-बार सर से ढते दुपट्टे को सही तरीक़े से ओढ़ सकें। एक वक़्त में जब उनका हुस्न जोबन पर था और उन पर नज़र पड़ती तो हटाए नहीं हटती थी। ख़ूबसूरत गहिरी सबज़ बड़ी बड़ी आँखें, तीखे नुक़ूश, सुत्वाँ नाक और पुतले गुलाबी होंट ।। लेकिन अब ये सब कुछ गोया मादूम हो चुका था।
वालिद साहिब के गुज़रने के बाद उनकी ये ख़ाहिश थी कि हम पाँच अखटे रहें, आपस में तफ़र्रुक़ा ना हो लेकिन जैसे ही वालिद साहिब ने आँख मूंद लीं , ग़फ़्फ़ार भाई ने नाज़िम आबाद वाला घर अपने नाम करवा लिया और तौफ़ीक़ भाई ने उनका बैंक अकाउंट ,जिसका इंतिज़ाम जब तक वालिद मरहूम ब-क़ैद-ए-हयात थे, वो करते रहे थे । मैं, अम्मी , नईम भाई और अंजुम मियां कुछ अरसा तो ग़फ़्फ़ार भाई के साथ रहे लेकिन फिर जब अम्मी और भाभी मैं चपक़ुलश कुछ बढ़ सी गई तो मैं, बेगम, अम्मी और अंजुम किराए के फ़्लैट में आगए और नईम भाई शांति नगर
ये नया मसला छः महीने पहले शुरू हुआ और शुरू शुरू में मुझसे उनकी ये हालत बिलकुल नहीं देखी गई । एक दिन उन्हें किसी तरीक़े से बहला फुसला कर हल पार्क वाले हस्पताल ले गया। वहां एक जवान डाक्टर ने उन्हें देखा, छाती का मुआइना क्या, दिल की धड़कन सुनी, पान तंबाकू का पूछा और ख़ून, पेशाब, बलग़म और ऐक्सरे के टैस्ट लिख के दे दीए। अम्मी ने जब टेस्टों की ये लंबी फ़हरिस्त देखी तो साफ़ इनकार कर दिया और कहा कि मुझे कुछ भी नहीं।
मैंने सारी बात बाक़ी तीनों भाईयों के सामने रख दी और मुझे ख़ुद समझ नहीं आरहा था कि अम्मी क्यों ईलाज मुआलिजे से इनकार कर रही थीं। सबने मुझे मश्वरा दिया कि उनको कुछ वक़्त दें लेकिन जब एक हफ़्ते के बाद उनका रवैय्या यही रहा तो मेरा माथा टंका और फ़ोन करके इस अनहोनी सूरत-ए-हाल से सबको बाख़र किया। यूं हम आज दुबारा ग़फ़्फ़ार भाई के हाँ जमा हुएता कि आपस में मिल बैठ करके ये हतमी फ़ैसला कर ही लें कि आख़िर उनका करें तो क्या करें।
मेरी माँ जिस करब से गुज़र रही है आप में से किसी को भी अंदाज़ा नहीं, मैं रोज़ रोज़ की इन तूलानी और बेफ़ाइदा किस्म की बहसूँ से तंग आगया हूँ अब अमल का वक़्त है
ग़फ़्फ़ार भाई जब आप कहते हैं कि मेरी माँ तो क्या इस से मुराद ये है कि ये सिर्फ़ आप की वालिदा हैं? हमारा उन पर कोई हक़ नहीं? मुसम्मात सय्यदा नजमा बेगम हमारे वालिद मरहूम सय्यद क्रीम बुख़ारी की वाहिद और इकलौती रफीक़ा हयात हैं और हम सब, बिशमोल आप , नदिरत और जहांआरा, उनकी औलाद हैं।।
नईम भाई ने हमेशा की तरह ग़फ़्फ़ार भाई को याद-दहानी कराई और इस ततमे के साथ बेहस दुबारा शुरू हुई। तौफ़ीक़ भाई ने नईम भाई की बात काटी
आप महबूब उद्दीन को भूल गए हैं शायद ।।वो भी हमारा भाई है।।।
इस बात से नईम भाई का चेहरा तमतमाने लगा
एक मिनट ।। तौफ़ीक़ भाई ।। एक मिनट ।।इस ख़बीस का तो नाम ही ना लें, उस के मुक़द्दमे की वजह से तो ही उनकी ये हालत हो गई है वो रिश्ता ना तोड़ता , वालिद साहिब पर डिग्री ना करता, कुछ ख़ैर-ख़बर रखता तो ये हालत तो ना होती माँ जी की।।। जीते-जी मार दिया है उसने
मैंने बीच में मुदाख़िलत की।
अरे कुछ भी हो भाई तो है।। ख़ून है हमारा।। वैसे उस का सारा क़सूर नहीं था।
ग़फ़्फ़ार भाई ने दुबारा गला खनकार कर बात शुरू की।
मैं ये नहीं कहता कि मुसम्मात सय्यदा नजमा बेगम अकेली सिर्फ मेरी माँ हैं, हरगिज़ नहीं में सिर्फ आप सब को बताना चाहता हूँ जब वालिद साहिब ना रहे तो ये मै ही था जिसने पूरे घर की ज़िम्मेदारी उठाई, आप सबको पाल पोस कर बड़ा किया।। मैं सिर्फ आपका बड़ा भाई ही नहीं वालिद के दर्जे में भी हूँ।
तौफ़ीक़ भाई तैश में आगए।
हमारे वालिद साहिब तो थे ही सनकी । और सच पूछें हमारी कसमपुर्सी की वजह ही हमारे वालिद ही हैं, कुछ सेहत का ख़याल रखते।। इतनी जल्दी ना मरते।। तो आज हम।। ख़ैर अब क्या कहें।
अंजुम मियाँ ने अपने मोबाइल से आँखें हटाईं और सबको मुख़ातब किया।
मैं आप सब में छोटा हूँ लेकिन पढ़ा लिखा ज़्यादा हूँ , एम-ए पढ़ा हूँ, सरकारी अफ़्सर हूँ । आप में से किसी ने भी वालदैन की ख्वाहिश पूरी नहीं की, काम धंदे में लगे रहे ये में हूँ जिसकी बदौलत ख़ानदान को इज़्ज़त मिली, तौक़ीर मिली वक़ार मिला।
नईम भाई ख़ामोश ना रह सके
वालिद साहिब को कोसने का क्या फ़ायदा।। वो काम से ज़्यादा सयासी तहरीकों में फ़आल थे।। उनकी मौत शहादत के दर्जे में आती है
और उन तहरीकों का नतीजा आपके सामने है।।आप भी सियासत करें भाई जान और वालिद साहिब की तरह शहादत के रुतबे पर फ़ाइज़ होजाएं और आपके पाँच बच्चों की ज़िम्मेदारी हमारे ऊपर पड़ेगी
इस दिन बात पूरी ना हो सकी और हमारी मुलाक़ात एक तरह से नाकाम हो गई। जब मैं घर आया तो मैंने देखा कि अम्मी जान मज़ीद कमज़ोर हो गई थीं। मैं ने अज़मी से पूछा
क्या अम्मी ने कुछ खाया है?
मजाल है जो सुबह से एक केला भी मुँह में गई हो
माँ से ताल्लुक़ हमेशा जज़बाती होता है और इस ताल्लुक़ का महवर यानी उनकी मुहब्बत की शिद्दत एक तरफ़ा ही होती है। साहिब आप मेलों दूर चले जाएं आप उनके हाफ़िज़े से दूर नहीं जाते और दूसरी बात ये कि ये मुहब्बत बेलौस होती है। ये नुक्ता इस दौर में अब एक तरह से और भी वाज़िह है और ओह ऐसे कि जब तमाम बेलौस क़राबत दारियां इख़तताम को पहुंच चुकी हैं, ज़माने में बेग़र्ज़ दोस्ती नापैद है, भाई भाई का दुश्मन है माँ वो वाहिद हस्ती हैं जिनकी मुहब्बत आज भी इसी तरह क़ायम है
मैं जा कर उनके सामने बैठ गया। वो सोती साड़ी में मलबूस थीं ।मैं नयान के खुरदुरे रअशादार हाथ , पकड़ लिए। ये हाथ जो कभी बहुत मुलाइम, जवानी से भरपूर, ख़ूबसूरत और नरम हुआ करते थे और आज झुर्रियों और नीली रगों के जाल से पर थे। मेरे गर्म हाथों पर उनकी बर्फ़ीली उंगलीयों गिरिफ़त एक ख़फ़ीफ़ हरकत से हल्की सी बढ़ गई और मैंने देखा कि उनके स्याही माइल होंटों पर एक मुस्कुराहट सी फैल गई और उनकी इनकी ख़ूबसूरत आँखों में चमक बढ़ गई
मैंने सोचा यही हाथ थे जो , जब जब हम शरारत किया करते थे, ज़नाटे दा थप्पड़ बन कर हमारे गालों और पीठ पर पड़ा करते थे। ये यही हाथ थे जब कोई मन पसंद खाना ना बना होता था तो माथे से बाल हटा कर, गाल थपथपा कर एक एक निवाला खिलाते थे, इस शर्त पर कि अगर आज बैंगन का भरता खाउंगा तो कल आलू वाले पकौड़े मिलेंगे, आज दाल-भात खाउंगा तो कल बिरयानी मिलेगी
मेरी वालिदा एक किफ़ायत शिआर ख़ातून थीं और उनके भाईयों का सहलट में जूट का अच्छा-ख़ासा कारोबार था जो सुकूत बंगाल के साथ ही दफ़न हो गया। मुझे ये भी याद है कि हमारे नाज़िम आबाद वाले घर में एक पाइंबाग़ था जिसमें उन्होंने भांत भांत की सबज़ीयां उगाई हुईं थीं। वहीं आम के तीन बड़े पेड़ थे जिससे हम मीठे आम खाया करते थे और इस में लगा झूला बरसात में नदिरत और जहांआरा का मस्कन हुआ करता था
उनकी हंसी और क़हक़हों की आवाज़ से घर में मुतरन्निम तारे बिखर जाते होते थे और उनकी रोज़ रोज़ की
लड़ाईयां और मुक़द्दमे हमारे घर का ख़ास्सा थीं
भाई जान देखें नाँ नदिरत की बच्ची मेरे बाल खींच रही है।। हटो नाँ।।अम्मी देखें नाँ
अम्मी आपने नाँ जहांआरा को सर पर चढ़ा रखा है।। देखें नाँ भाई जहांआरा की बच्ची जान मुझे घूर रही है।।अम्मी समझाएँ नाँ उस चुड़ैल को
वालिद साहिब के गुज़र जाने के बाद ज़िंदगी इतनी अच्छी कभी भी ना रही। ग़फ़्फ़ार भाई के बच्चे बड़े हो गए तो पाइंबाग़ में दो कमरे बनवा लिए और आम के पेड़ों को काट डाला। लाख समझाया भाई जान ऊपर छत पर दो कमरे बनवा लू , कमरे किया बनवाते मुँह बना कर मुझे एक बोदी दलील दी
अरे में ऊपर कमरे बनाऐंगा तो अम्मां को चढ़ते हुए तकलीफ़ होगी, सारी उम्र जवान तो नहीं रहना उन्होंने, यही हिक्मत है जो मैंने दो कमरे पाइंबाग़ में बनवा लिए
तौफ़ीक़ भाई भी कम नहीं थे और उन्होंने बड़ाबवायलर लगाने के बहाने कियारियाँ रौंद डालें और यूं वो सारे पेड़ और कियारियाँ वक़्त के साथ मादूम हो गईं
इस शाम जब मैं दफ़्तर से वापिस आया तो अंजुम को घर में देखा मोबाइल पकड़े कुछ मैसिज कर रहा था । मुझसे रहा ना गया
अंजुम तुम ऐसा करो कल अम्मी को हस्पताल लेजाव दुबारा ।। आपकी वजह से उनकी इंटाटलमंट तो होगी ना?
भाई जान मुझे सैक्टरी साहिब के साथ मीटिंग करनी है, अमन-ओ-अमान का मसला है।। वुकला की तहरीक का तो आपको इलम ही है।। काफ़ी हंगामे हैं ।। कराची किसी वक़्त भी लपेट में आ सकता है।। हिफ़्ज़ मातक़द्दुम के तौर पर ।।सब हाई अलर्ट पर हैं ।।ज़रूरी है कि फिर बारह मई वाला वाक़िया ना हो
मुझे अच्छी तरह से इलम था कि इस की सैक्टरी के साथ कोई मीटिंग नहीं थी वो सिर्फ ये नहीं चाहता थाकि जब वो अपनी बीमार माँ के साथ अपने हस्पताल में जाये तो लोग ये ना कहें कि अंग्रेज़ी बोलने वाले अफ़्सर साहिब की वालिदा शलवार क़मीस में मलबूस और सर पर दुपट्टा लिए हुए हैं और सिर्फ उर्दू बोलती हैं।। अब ये श्रम थी या कोई अशराफ़िया आदत लेकिन अंजुम कभी भी अम्मी के साथ ज़्यादा वक़्त नहीं गुज़ारता था। अगले दिन हम सब भाई दुबारा मिल बैठे
ग़फ़्फ़ार भाई ने दुबारा कलाम का आग़ाज़ किया
अम्मी की तबईत ठीक नहीं , में तो कहता हूँ आग़ा ख़ान ले जाएं क़वी इमकान हियान को कैंसर हो सकता है
मैंने उन्हें मश्वरा दिया
ग़फ़्फ़ार भाई कैंसर है तो शौकत ख़ानम ले जाएं, लाहौर ही तो जाना है बस।। मैं जा सकता हूँ वहां और दूसरा शौकत ख़ानम फ़्री ईलाज भी तो करता है
तौफ़ीक़ भाई ने अपनी दाढ़ी कझाई और होंट काटे
शौकत ख़ानम में फ़्री ईलाज के लिए ज़कवा का वसूल कनुंदा होना ज़रूरवी है वैसे
नईम भाई ने पान की पैक थूकी और मुँह साफ़ करते हुए मश्वरा दिया
अरे एक फ़ार्म ही तो है भाई।। हैं। अंजुम मियां के दाएं हाथ का खेल है।। क्यों अंजुम?
ग़फ़्फ़ार भाई ने पहलू बदला और बात बदलते हुई हमें एक तरह से ख़बरदार किया
कैंसर जान-लेवा मर्ज़ है और एक शरई तक़ाज़ा वसीयत का भी है जो में आप लोगों के सामने
रखनाचाहता हूँ
सबने उनकी तरफ़ देखा
मेरे वालिद साहिब ने फ़ौत होने से कहीं पहले ये बात मुझे बताई थी कि अगर मैं ताया की बेटी से शादी करूँगा तो हाथ के जो भी ज़ेवर ,जो उन्होंने ने अम्मी को ले के दिए थे, मेरी बेगम को मिलेंगे। ये इस लिए बता दिया कि वसीयत और तोहफ़ा विरासत से बाहर होते हैं
तौफ़ीक़ भाई थोड़े उलझे से नज़र आए और नफ़ी में सर हिलाते रहे
ग़फ़्फ़ार भाई ज़बानी कलामी तोहफ़े और वसीयतें कोई शरई हस्ीत नहीं रखतीं
ग़फ़्फ़ार भाई से ये बात बर्दाश्त ना हो सकी
क़िरान में लिखा है वसीयत के बारे में जा कर ख़ुद पढ़ लू।। मुल्की क़ानून कुछ भी हो हम पाबंद इस्लाम के क़ानून के हैं।। बस में अब इस मसले हर कुछ भी नहीं सुनूँगा
तौफ़ीक़ भाई ने अपने ग़ुस्से को दबाया
में भी अब इस मुआमले में कोई बात नहीं करना चाहता, जब वो वक़्त आएगा तो क़िरान भी देख लेंगे और शरई अहकाम भी।। इस वक़्त अम्मी की बीमारी का मसला दरपेश है
अंजुम अपने मोबाइल में गुम था । यकायक उस के मोबाइल पर लर्ज़ा सा तारी हो गया। वो कमरे से बाहर निकल गया। नईम भाई ने सर घुमा कर देखा और जब वो दौर चले गए तो सिलसिला कलाम जोड़ा
मुझे अम्मी का मसला नफ़सियाती मालूम होता है। उनमें ये आरिज़ा काफ़ी ज़माने से है।। हम सब में उनका
चहेता बेटा यही है जिसकी बुलाऐं लेने और मुहब्बतें निछावर करने से अम्मी को फ़ुर्सत नहीं थी और आज मुहतरम जनाब अफ़्सर साहिब बहादुर को मोबाइल और फेसबुक से फ़ुर्सत नहीं। अरे ये बड़ा अफ़्सर बन गया है, इस को श्रम आती है माँ से बात करते हुए।। ये तो उर्दू भी ठीक तरीक़े से नहीं बोल सकता, गोरों की तरह बोलता है
मैं अंजुम की तरफ़दारी में कूद पड़ा
अच्छा करता है उर्दू का फ़ायदा भी किया है? इस का सारा काम अंग्रेज़ी में है, करने दो
कैसे रहने दें आईन कहता है कि उर्दू को क़ौमी ज़बान बना दिया जाये, ये हमारी मादरी ज़बान है, हमारी पहचान है।। हम इसी वजह से तो पाकिस्तान आए थे
तौफ़ीक़ भाई इस बेहस अब ख़ासे बेज़ार हो चुके थे
अरे छोड़ें इस बेहस को हम पाकिस्तान क्यों आए थे ये एक लंबी बेहस है।।बाक़ी रही बात पहचान की तो उर्दू का जो हुल्या टीवी चैनलों के एंकरों ने बनाया है, वो तो ख़ुद पहचान के काबिल ना रही हमारे लिए किया पहचान की मूजिब टहरे गी।पेशतर अंकुर एक लफ़्ज़ सीधा नहीं बोल सकते ।।साले। । आधी अंग्रेज़ी आधी उर्दू।। उर्दंगलश कहें तो अच्छा लगे।।इस दिन रक्षे वाले से कहा मियां दाएं मुड़व दाएं मुड़व। घामड़ बोला कहा साहिब लिफ़्ट जाउं या राइट ? आवे का आवाह बिगड़ा हुआ है यहां तो
ग़फ़्फ़ार भाई ने तौफ़ीक़ भाई की सताइश की
हाँ दरुस्त कहा तुमने तौफ़ीक़ मियां
मैंने दुबारा सवाल किया
तो फिर क्या फ़ैसला हुआ? आग़ा ख़ान ले जाएं या शौकत ख़ानम?
ग़फ़्फ़ार भाई ने होंटों पर ज़बान फेरी
शौकत ख़ानम को तो आप रहने ही दें, आग़ा ख़ान बाज़ू ही में है और मैं वहां के एक प्रोफ़ैसर अब्बास को किसी के तवस्सुत से जानता हूँ
फिर अपनी ऐनक उतार कर बात जारी रखी
आग़ा ख़ान में ख़र्चा ज़्यादा आएगा और वो भी दोहरा, ईलाज का अलग तशख़ीस का अलग और आजकल कारोबार में भी मंदी है।। मैं तो कहता हूँ किसी सरकारी हस्पताल में दिखा देते हैं वहां भी बहुत अच्छे डाक्टर होते।। तशख़ीस तो लगता है कैसंर ही है और लाइलाज ही होगा । हमारे एक स्पलायर हैं उनकी वालिदा को भी यही मर्ज़ था।। तीन हफ़्ते में ख़ालिक़ हक़ीक़ी से जा मिलीं।। अल्लाह ग़रीक़ रहमत करे।। काफ़ी परेशान रहते थे।। अम्मी गज़ गईं तो कारोबार पर तवज्जा बढ़ गई।। अल्लाह ने कारोबार में रवानी दुबारा बढ़ा दी है
नईम भाई ने कुछ सोच कर लुक़मा दिया
ख़त्म क़िरान वग़ैरा और ईसाल-ए-सवाब के लिए एक नुक्कड़ वाले मदरसे का मौलवी अच्छा रहेगा, सही नाम तो मुझे याद नहीं लेकिन उसे लोग फटाफट मौलवी कहते हैं ।। पंद्रह मिनट में तरावीह ख़त्म करता है। इस के मदरसे में तीन सौ के क़रीब लौंडे हैं चार पाँच ख़त्म एक दिन में कर देंगे।। फटाफट
तौफ़ीक़ भाई ने हाथ के इशारे से उनको रोका
नहीं नहीं ये ख़त्म वग़ैरा ना ही करें उस दिन टीवी पर एक मौलाना ने इस की मुख़ालिफ़त की और कहा ये ग़ैर शरई अमल है
नईम भाई भी रुक ना सके
भाई जान वो मौलाना साहिब हमारी तरह नमाज़ नहीं पढ़ते।। ख़त्म तो होगा ही ग़ैर शरई उनके नज़दीक
तौफ़ीक़ भाई इस बात पर ब्रहम हो गए
तो कैसे पढ़नी चाहिए नमाज़, ये हमारी तरह तुम्हारी तरह क्या बात हुई नमाज़ में।। वो बिलकुल शरई नमाज़ पढ़ते हैं?
इस से पहले कि नमाज़ के सही तरीक़े पर गर्मागर्मी मज़ीद बढ़ जाती मैंने बात बदली
स्पलायर से याद आया क्या आपको डलिवरी पूरी मिल गई पिछले हफ़्ते?
कयां मिली, लगता है पैसे सारे डूब गए हैं। एतबार का तो ज़माना ही नहीं रहा
तौफ़ीक़ भाई भी चुप ना रह सके
कारोबार को तो सत्यानास हो गया है वुकला की तहरीक में।।सारे पैसे डूब गए हैं
जब मैंने बेहस डगर से दूर जाती देखी तो एक-बार फिर उनको याद दिलाया ताकि इन सब को बेहस में दुबारा जोड़ लाउं
तो फिर क्या फ़ैसला हुआ? आग़ा ख़ान ले जाएं , शौकत ख़ानम या सरकारी?
तौफ़ीक़ भाई ने जमाई ली और अपने चौड़े किले में एक चपटी गिलौरी मुँह में दबाई
सरकारी हस्पताल को तो आप भूल ही जाएं ।। कुछ लाज होनी चाहीए ।।लोग क्या कहेंगे।। ढेरों तनोमंद बेटे और माँ सरकारी हस्पताल के बरामदे में एड़ीयां रगड़ रगड़ की मर गईं।। सुबकी होगी
हमारी।। आख़िर को समाज में रहना है हमें लोगों को मुँह दिखाना है हमें
मुझे यही मौक़ा नज़र आया कि अपनी बात एक मर्तबा फिर दोहराओं
शौकत वैसे ख़ानम अच्छा रहता, सारे डाक्टर बाहर के पढ़े हुए हैं लेकिन लाहौर आना जाना, रहाईश वग़ैरा बड़ा पेचीदा मसला है, अजनबी जगह है।। अजनबी लोग ।। लेकिन में उन्हें ले के जा सकता हूँ
मैंने इस बात का असर देखने के लिए उनकी तरफ़ देखा । इस दौरान हमीदा भाभी चाय ले के आगईं । मैंने बात जारी रखी
अगर मैं उनको लाहौर बुझवाने का इंतिज़ाम करूँ तो क्या हमीदा भाभी उनके साथ जा सकती हैं।।वो डाक्टर हैं और दूसरी ज़नाना ज़रूरतें भी होती हैं और मेरा ख़्याल है एक औरत का होना ज़रूरी होगा । अज़मी के जाने में कोई क़बाहत नहीं लेकिन मेरी सास की तबईत ठीक नहीं है औरवह उनकी ख़बर-गीरी करना चाहती हैं
मुझे जाने में तो कोई एतराज़ नहीं और इस के लिए मैं हस्पताल से छुट्टी भी ले लूं गई लेकिन मेरे मँझले भाई के रिश्ते की बात चल रही है आजकल और चूँकि उनकी पहली शादी नाकाम हो चुकी है इस लिए में नहीं चाहती कि इस मर्तबा भी वही हो।। दूध जला छाछ भी फूंक फूंक के पिए।।मैं तसल्ली से लड़की देखना चाहती हूँ।। एक ही भाई है मेरा
हमीदा भाभी ने चाय का कप मुझे थमाते हुए एक तरह से ख़बरदार किया। मुझे साफ़ नज़र आगया कि उन्होंने ग़फ़्फ़ार भाई को भी आँखों ही आँखों में कुछ इशारा किया
ग़फ़्फ़ार भाई ने तौफ़ीक़ भाई की तरफ़ देखा और मानी-ख़ेज़ अंदाज़ में पूछा
तौफ़ीक़ शहला भी तो जा सकती हैं अम्मी के साथ? उनको तो ऐसा कोई काम नहीं
जा तो सकती हैं लेकिन नौशीन कॉलेज के एक सहि माही टैस्ट की तैयारी कर रही है।। आपको तो पताही है इमतिहानात से पहले उस की तबईत चिड़चड़ी होजाती है ।। जवान लड़की है।। ज़्यादा सरज़निश और टोकना ठीक नहीं।।दूसरा में मुनासिब नहीं समझता कि इस नाज़ुक वक़्त पर इस की माँ घर से ग़ायब हो और बिटिया इमतिहान में फ़ेल हो जाएगी
शाम हो गई और हम सब अपने अपने घरों को चले गए
घर आया तो अम्मी के चेहरे पर पज़मुर्दगी थी और वो अपने ख़ुशक होंटों पर बार-बार ज़बान फेर रही थीं और मुँह ही मुँह में कुछ विर्द कर रही थीं
अगले दिन सब मेरे घर मिले। गुफ़्तगु का ज़्यादा तर ज़ोर बच्चों के तालीम और उनके इमतिहानात में इमतियाज़ी कामयाबी के मुताल्लिक़ रहा और कुछ तालीमी निज़ाम की ख़राबियों पर बात हुई। ईलाज की बात बातों बातों में आई तो पहले तो ज़्यादा झुकाव आग़ा ख़ान की तरफ़ रहा लेकिन फिर शौकत ख़ानम और सरकारी हस्पताल का तक़ाबुल हुआ तो उसे महंगा हस्पताल समझा गया और फिर बेहस मलिक के तालीमी निज़ाम से हट के सेहत के निज़ाम की तरफ़ हुई। शाम को सब अपने घर चले गए
मैंने अम्मी की तरफ़ देखा। वो चारपाई पर बैठी कुछ पढ़ रही थीं। मैं उनके क़रीब गया और उनके सामने बैठ गया और बहुत आहिस्ता से उनका सर दबाने लगा। इन पर ग़नूदगी सी छा गई और मुझे यूं लगा जैसे वो सो गईं हूँ।सर्दी शुरू हो चुकी थी और मैन ने उनको एक पुतले कम्बल से ढक दिया। उनके हाथ की गिरिफ़त से अख़बार का तुड़ा मुड़ा पर्चा अब आज़ाद पोचका था
मैंने उसे उठाया। ये दिसंबर इकहत्तर के जंग का कोई पर्चा था जिसके कोने में , क्रीम बुख़ारी और उनके बेटे के मुक़द्दमे की ख़बर थी। सर-ए-वर्क़ पर कुछ और भी बड़ी बड़ी ख़बरें छपी थीं।।मैंने कुछ देर हाथ में रखा और फिर उनके तकिए की नीचे आराम से उड़िस के रख दिया
इसी शाम वुकला की तहरीक ने एक नया मोड़ लिया और सदर साहिब के सिवा बद यदि हुक्म से मुल्क में एमरजैंसी लग गई । मैंने कुछ सोच कर दिल में कहा कि जब ये एमरजैंसी वग़ैरा का मुआमला दब जाये तो सबसे दुबारा बात करूँगा कि एक आख़िरी मीटिंग और कर लें और ये हतमी फ़ैसला कर ही लें कि अम्मी का करें तो क्या करें। यक़ीन करें मुझसे अम्मी की ये हालत नहीं देखी जाती
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.