नक़्ब
रोचक तथ्य
’नाज़िम आबाद के एक रिहाइशी को शक हो जाता है कि कोई उस के घर में नक़ब लगा के उस की जान लेना चाहता है।।हथौड़ा ग्रुप के पस-ए-मंज़र में लिखी गई
हुआ यूं कि ख़लील भाई को कुछ दिनों से यूं लगा जैसे कोई उनके घर में नक़ब लगाने की कोशिश कर रहा है। इन का ख़्याल था कि हो ना हो कोई उनकी जान के दरपे है। ये बात उन्होंने मुझे मेरे घर इंतिहाई राज़दारी से बताई और उनका ये भी ख़्याल था कि हो सकता है ये हथौड़ा ग्रुप हो
मैंने उनकी पूरी बात सुनी और सर नफ़ी में हिला दिया
’’नहीं नहीं ख़लील भाई, मेरा नहीं ख़्याल कि आपका ये इस्तिदलाल दरुस्त है। हथौड़ा ग्रुप तो मुद्दत बीत चुकी अपने अंजाम को पहुंच चुका। मेरा मतलब है कहीं पस-ए-मंज़र में जा चुका और वैसे भी ये मार्शल ला दौर की बातें थीं। आजकल तो जमहूरीयत है''
मैंने उनके कंधों पर हाथ रखकर अपनी बात जारी रखी
’’ख़ुद देख लें बी-बी मुहतरमा की हुकूमत कितनी मज़बूत है, पहली बार की तरह हिचकूलों में नहीं। इन दिनों हालात भी दूसरे थे। मुहाजिरों और पशतून भाईयों में तनाव भी बहुत था, काफ़ी मुग़ालते थे जिसका जराइमपेशा और मुल्क दुश्मन अनासिर ने फ़ायदा उठाया और लोगों को।।नहीं नहीं ख़लील भाई।। मेरा नहीं ख़्याल कि ऐसी कोई बात है'
’’आफ़ाक़ भाई मार्शल ला को तो आप छोड़ ही दें। दो हफ़्ते पहले तो फ़ौजी बग़ावत की कोशिश-ए-नाकाम हो चुकी है और बग़ावत वाले साहिब अभी फ़ौजी कटहरे ही में हैं और फ़सादाद, उस का तो आप नाम ही ना लें। अभी मई और जून में क्या हुआ आप ये भी भूल गए
बुरा ना मनाएं आप बहुत ही ख़ुशगुमान किस्म के आदमी हैं आफ़ाक़ भाई।। आप तो''
अपने बारे में उनका इस क़दर दरुस्त तजज़िया सुनकर में थोड़ा झेंप गया
मुझे झेंपते देखकर वो भी ख़िसयाने से हो गए लेकिन उन्होंने फोरा पैंतरा बदला
’’आफ़ाक़ भाई मुझे माफ़ करें मेरा मक़सद आप पर तन्क़ीद करना हरगिज़ नहीं था। हाँ तो में क्या कह रहा था आफ़ाक़ भाई, मेरी बात में सदाक़त है औरमैं बतौर सबूत आपको अपने घर की वो दीवार दिखा सकता हूँ जहां ईंटों से सीमेंट उतरा हुआ है। रज़ीया से भी पूछ लें हमने ख़ुद अपने इन गुनाहगार कानों से ज़ोर ज़ोर से खट खट की आवाज़ें सुनी हैं।।ऐसे जैसे कोई कुछ खोद रहा हो। आपको तो पता ही है रज़ीया ख़्वाब-आवर दवा खाती है, इस के बावजूद इस ने रात के वक़्त किसी को ये भी कहते सुना
’’तो कब तक।।'
ख़लील ने वज़ाहती अंदाज़ अपनाया
’’तो कब तक? क्या मतलब?'
मैंने ख़ुद-कलामी के अंदाज़ में एक तरह का सवाल पूछ लिया
’’अब में इस में कह ही किया सकता हूँ, ये एक किस्म का खुला और ना-मुकम्मल जुमला है शायद मुराद हो तो कब तक बचा रहेगा, या कब तक तेरी साँसें।। इस तरह।।लेकिन आफ़ाक़ भाई उस की जो भी ताबीर की जाये, नतीजा मेरे हक़ में ठीक नहीं निकलता, ग़लत कह रहा हूँ में?'
’’नहीं नहीं ख़लील भाई, ऐसा नहीं हो सकता, ये ना-मुम्किन है'
मैंने उनकी बात काटी और उनको दिलासा दिया। उन्होंने अपनी दुबैज़ शीशों वाली ऐनक की कमानी का ज़ावीया दरुस्त करना चाहा जो फिसल कर गिर पड़ी
’’मैं आपसे मदद और मश्वरा तलब करने आया हूँ, आफ़ाक़ भाई। ये मुम्किन है या ना-मुम्किन ये तो वक़्त ही बताएगा लेकिन इस वक़्त क्या ये मुम्किन है कि आप अपनी दूसरी मंज़िल के कमरे से मेरे घर की दीवार को देखें और मेरी सदाक़त।।'
’’ख़लील भाई यक़ीन मानें मुझे आपकी बात में कोई शक नहीं लेकिन मसला किया है कि आजकल मेरी दौर की नज़र थोड़ी ख़राब है। लगता है ऐनक का नंबर तबदील होने वाला है।।मुझे धुँदला नज़र आता है।।मेरा ख़्याल है हमें वो जगह ख़ुद जा कर देखनी पड़ेगी, गली में जा कर, क़रीब से।।वो भी आज।। ज़रा अंधेरा होजाने दें ताकि किसी को शक ना हो।'
मैं और ख़लील भाई रिटायरमैंट के बाद नॉर्थ नाज़िम आबाद में एक ही गली के बिलकुल आख़िर में रहते थे। मुल्की हालात से मैं इतना बे-ख़बर तो नहीं था लेकिन ख़लील भाई की बात क़दरे दरुस्त है कि मेरी तबईत पर रजाईयत पसंदी ग़ालिब है और किसी भी मसले का मुसबत पहलू देखना मेरी अव्वलीन कोशिश होती है।इस दिन मुझे ख़लील भाई के बयान से ये तास्सुर मिला जैसे उनको वहम सा हो गया कि कोई उनके घर में नक़ब लगा रहा है और दीवार में सुराख़ करके इस से घर में ज़हरीली गैस या कोई और मवाद फैला कर उन्हें जान से मारने के दरपे है।अगरचे मुझे उनके इस मफ़रुज़े से इत्तिफ़ाक़ नहीं था लेकिन उनके इसरार पर बहर-ए-हाल में उनके घर चला आया
जब में और मेरी बेगम उनके हाँ दाख़िल हो गए तो हमने देखा कि घर की हालत अबतर थी
रज़ीया भाभी भी ख़ासी घबराई हुईं थीं सो मेरी बेगम ने गले लगा कर उन्हें दिलासा दिया। वो तो जैसे यकदम पिघल गईं, उनकी आँखों में आँसू आगए और रोने लगीं
मुझे उनके ख़ौफ़ का अंदाज़ा था लेकिन मैंने इस पूरे मुआमले को ग़ैर जज़बाती अंदाज़ से देखने का फ़ैसला किया और उसे महिज़ उनका वहम तसव्वुर किया।सच्च पूछें तो मेरा ज़हन हथौड़ा ग्रुप वाली बात को मानने पर तैयार ही नहीं था। वो ऐसे कि ख़लील भाई एक पढ़े लिखे, तबईतन सुलह जो और इंतिहाई ग़ैर मुतअस्सिब किस्म के आदमी थे और रिटायरमैंट से क़बल मुक़ामी कॉलेज में अंग्रेज़ी पढ़ाते थे। दूसरी बात ये कि वो किसी भी सयासी जमात से वाबस्ता नहीं थे।। सबसे बना के रखते थे। मुझे कोई वजह नज़र नहीं आई कि कोई क्यों उनकी जान के दर पै होगा
हमने चाय पी और फिर इरादा किया कि उनकी कोठी की दीवार का मुशाहिदा करें
’’मेरा ख़्याल है इशा के बाद का वक़्त अच्छा रहेगा क्योंकि लोग तीन बिट्टा तीन देखने में मसरूफ़ होंगे और हम आसानी से इस जगह का मुआइना कर सकेंगे, किसी की नज़र में आए बग़ैर, क्या ख़्याल है ?'
हमने इशा की नमाज़ जामा मस्जिद में पढ़ी और वहां से सीधे गली में आगए।जहां हम रहते थे वो एक चौड़ी गली थी और इस के दूसरी तरफ़ के नुक्कड़ पर एक पान की दुकान भी थी जहां चहल पहल रहती थी
हमने इंतिज़ार किया कि गली पूरी तरह से सुनसान हो जाएगी तू ही दीवार का मुशाहिदा करें वर्ना पता नहीं लोग क्या समझ बैठेंगे। कोई बात होगी भी नहीं और मुफ़्त में तशहीर हो जाएगीगी। इस रात इक्का दुक्का लोग थे लेकिन यूं था जैसे ये मुस्तक़िल वहां मौजूद थे। वो इस लिए कि अगर कुछ लोग गली छोड़कर चले जाते थे तो कुछ आ भी जाते थे
हमने इंतिज़ार किया लेकिन जब देखा कि गली का मुकम्मल सुनसान होना तक़रीबन मुहाल है तो ख़लील भाई ने मेरी तरफ़ देखा
’’मेरा ख़्याल है ये लोग टलने वाले नहीं आफ़ाक़ भाई'
मैंने इस्बात में सर हिलाया और फिर हमने बिसमिल्लाह पढ़के दीवार का जायज़ा लेने का इरादा किया जो एक तरह से उनकी ख़ाबगाह की जुनूबी दीवार थी
अभी हम इस दीवार के क़रीब पहुंचे ही थे कि मैंने दीवार में आवर कंडीशन की उभरी पुश्त और इस के ऊपर दाहिनी तरफ़ ग़ुस्ल-ख़ाने का छोटा रौशन-दान देखा
मैंने तंज़िया लहजा अपनाया
’’ख़लील भाई रहने दें उन्हें दीवार में पहले से दो बड़े छेद दस्तयाब हैं, उतनी मेहनत की उनको क्या ज़रूरत है।।ऊपर देखें।। वहां'
मैंने देखा कि इस बात से ख़लील भाई थोड़े घबराए और शर्मिंदा भी हुए लेकिन फिर भी उन्होंने तहम्मुल के साथ इंतिहाई आहिस्ता आवाज़ में कहा
’’आफ़ाक़ भाई मैं समझ रहा हूँ आपका इशारा किस तरफ़ है लेकिन बिलफ़र्ज़ वो तीसरा सुराख़ करने पर मिस्र हूँ तो हम क्या कर सकते हैं? ये भी तो मुम्किन है कि उनका ज़हरीले मवाद से भरा पंप वहां तक ना पहुंच सकता हो।।वसूक़ से कुछ कहा नहीं जा सकता।मेरा ख़्याल है आप मुत्तफ़िक़ नहीं हैं।'
उन्होंने शक, तरद्दुद और ख़ौफ़ से आलूदा लहजे में अपना नुक्ता-ए-नज़र बयान किया जो ज़्यादा वज़नी नहीं था। मुझे ऐसा लगा कि वो अब भी हथौड़ा ग्रुप वाले मफ़रुज़े से मक़नातीस की तरह चिपके हुए थे। ख़ैर मैंने टार्च पकड़ी और दीवार का जायज़ा लेना शुरू किया
यकायक कोई मोटर साइकिल गुज़री और इस की तेज़ रोशनी से घबरा कर में झट से पीछे हो गया और क़रीब था कि वहां नाले में गिर जाता लेकिन अपने आप को सँभाला और बे-एधतिनाई से ज़रा दूर खड़ा हो गया जैसे में बस वहां ऐसे ही खड़ा हूँ। बिना किसी मक़सद के
’’आराम से आफ़ाक़ भाई।।ध्यान से।। आपको मोच तो नहीं आई
फिर सरगोशी में कहा
’’मेरा ख़्याल है लोग आते-जाते रहेंगे।हमें उनसे क्या लेना देना, मैंने तो सिर्फ आपको वो जगह दिखानी है और बस'
’’हाँ हाँ आप ठीक कहते हैं'
मैं दुबारा दीवार के क़रीब गया और टार्च जलाई तो मेरी हालत दिगर-गूँ हो गई। वहां दीवार से वाक़ई सीमेंट उखड़ा हुआ था और बाक़ायदा किसी तेज़ धार वाले आले के निशानात थे। जहां-जहां से पलसतर ग़ायब था वहां ईंटें नज़र आरही थीं। मैंने गुमान गया कि शायद किसी हथौड़े नुमा या किसी और औज़ार से मार मार कर दीवार की ये हालत बनाई गई थी। लगता ये था कि कई दिनों की मेहनत हुई थी। चूँकि और देखने को कुछ भी नहीं था चुनांचे हम वापिस घर चले आए
’’अब मुझे आपकी आँखों में तशवीश नज़र आरही है, है ना?'
ख़लील भाई ने फ़ातिहाना अंदाज़ में कहा
’’आपकी बात सही है लेकिन थोड़े से उखड़े पलसतर से भला हम ये कैसे अख़ज़ कर सकते हैं कि ये काम हथौड़ा ग्रुप का है। देखिए उनका आख़िरी केस तो।। जहां तक मुझे याद है।।सन छयासी में हुआ था जब उन्होंने बंस रोड पर एक भिकारी को अपनी दानिस्त में मार दिया था लेकिन वो जिनाह हस्पताल में दाख़िल रहा और बच गया था। दूसरी बात ये कि वो एक झते की शक्ल में आते हैं जभी तो उनको हथौड़ा ग्रुप कहते हैं''
मैंने लफ़्ज़ ''ग्रुप' पर-ज़ोर देकर बात जारी रखी
’’आपके घर-वाली ये वारदात तो किसी एक आदमी का काम मालूम होता है, कोई मामूली चोर अचका किस्म का।। अनाड़ी आदमी।। ये साला ठीक से पलसतर भी नहीं उखाड़ सकता पंप और गैस और किसी की जान लेना तो दौर की बात है'
मैंने उन्हें अपनी दानिस्त में तसल्ली दी लेकिन मुझे ख़ुद समझ नहीं आया कि ये किस चीज़ की तसल्ली थी। चलें मान लेते हैं वो कोई झता नहीं था जो उनको नुक़्सान पहुंचाने पर माइल था लेकिन कोई तो था जो उनके घर में नक़ब लगा ने की कोशिश कर रहा था और ज़ाहिर है इस के इरादे नेक नहीं हो सकते
मुझे समझ नहीं आया कि क्या कहूं। मैं फ़क़त इस वाक़े की शिद्दत और ख़लील भाई के ख़ौफ़ को कम करना चाहता था और बस
ख़लील भाई मुझे शश-ओ-पंज में मुबतला देखकर बोले
’’देखें आफ़ाक़ भाई ये सन छयासी से अब तक कितने साल बीत चुके।। ये जराइमपेशा लोग हैं ।।आठ दस साल में उनका तरीक़ा वारदात बदल भी तो सकता है, नहीं?''
अपनी बात का असर देखने के लिए मेरी तरफ़ देखा और बात जारी रखी
’’आफ़ाक़ भाई ये भी तो मुम्किन है आजकल हथौड़ा ग्रुप पहले अपने एक आदमी को भेज कर जायज़ा लेते हूँ या, जैसे आप कहते हैं।।अनाड़ी आदमी।।शायद इस अनाड़ी आदमी को इस काम के लिए भेज दिया हो कि वो साला छेद करे और ये साले आकर रहा सहा काम, यानी मेरा काम तमाम करें। कुछ भी तो नहीं कहा जा सकता मुआमला पेचीदा है, है ना आफ़ाक़ भाई?'
मैंने बार-बार उनके ख़्याल को रद्द करना मुनासिब नहीं समझा
’’हाँ मुआमला पेचीदा है, दरुस्त कहा आपने
मैं बस इतना ही कह सका। दरअसल में इस पूरे मसले को एक तरह से मंतक़ी तनाज़ुर में देखना चाहता था लेकिन मेरे तरीका-ए-कार का ख़लील भाई पर उल्टा असर हो रहा था चुनाचे मैंने ख़लील भाई को मज़ीद तसल्ली देने से अहितराज़ किया और हल का सोचा
’’ख़लील भाई ऐन-मुमकिन है कि जो कोई भी इस के पीछे है, इस का मक़सद आप को नुक़्सान पहुंचाना हो हमें उस के सद्द-ए-बाब का कुछ सोचना चाहीए'
’’मेरा ख़्याल है कि इन लोगों को सबक़ सुखाने के लिए रज़ीया के मामूं ठीक रहेंगे। वो इलाक़ा ग़ैर के जद्दी पुश्ती पठान ज़ादे हैं और ऐसे मुआमलात से निबटना ख़ूब जानते हैं, लातों के भूत।।'
’’नहीं नहीं ख़लील भाई ऐसी ग़लती तो बिलकुल भी ना करें। उधर आपने उनको ताक़त से ललकारा और यहां हंगामे शुरू हो गए। जराइमपेशा लोग बहुत मुनज़्ज़म होते हैं और मुफ़्त में उनसे दुश्मनी मोल लेना।।नहीं नहीं।।ये सलाह में आपको कभी भी नहीं दूँगा
इस के बाद हम कुछ देर ख़ामोश रहे और आख़िर में इस बात पर इत्तिफ़ाक़ हो गया कि सोच कर उस का कोई हल निकाला जाएगा।जाने से पहले मैंने ख़लील भाई को पता नहीं ये क्यों कह दिया कि वो इस जगह को बिलकुल ना छेड़ें, कोई पलसतर वग़ैरा ना करें बल्कि जूं का तूं रहने दें। ये कह कर में घर चला आया
घर आकर मैं सोफ़े में धँस के बैठ गया। मेरी बीवी कुछ ख़ामोश खड़ी रही
’’मैं जानती हूँ ये नगोड़े कौन हैं जो उनके घर में नक़ब लगा रहे हैं'
’’शहला बेगम तुम ये कैसे कह सकती हो ?, लगता है तुम्हें तो जैसे सब ख़बर है।कितने हैं, कहाँ से आए हैं, बड़ी तेज़ जासूसी सर्विस है तुम्हारी, मान गए हम तो'
’’आप करते रहें तंज़, लेकिन एक बात मेरी भी लिख रखें।। ये ख़लील भाई के ख़ानदान वाले हैं जो ये सारा ड्रामा कर रहे हैं।। रज़ीया की जेठानी'
’’ख़लील भाई के ख़ानदान वाले ? रज़ीया की जेठानी? वो भला ये काम क्यों करने लगे ?, शहला तुम भी ना'
’’आपको तो मेरी किसी भी बात का यक़ीन नहीं लेकिन ये बात मुझे रज़ीया ने ख़ुद बताई।।इस के ख़ानदान वाले ख़ुसूसन उस की जेठानी इन दोनों की शादी से ख़ुश नहीं।। ये सब मिलकर इस पूरे ड्रामे से रज़ीया को अज़ीयत देना चाहते हैं।। नफ़सियाती मरीज़ा बनाना चाहते हैं'
’’अच्छा मान लिया रज़ीया नफ़सियाती मरीज़ा बन गई, फिर?'
’’फिर का मुझे नहीं पता लेकिन हो सकता है इस को किसी पागलखाने में दाख़िल करवा के वो लोग ख़लील भाई की दूसरी शादी करवाना चाहते हूँ, ऐसी बातों का पता थोड़ी चलता है'
मेरी बेगम ज़च हो कर किचन के अंदर चली गई और पीछे पीछे में हो लिया
’’उनकी शादी का क़ज़ीया और इस उम्र में शहला बेगम तुम होश में तो हो?'
’’आपकी भाभी ने किया-किया था मेरे साथ वो सब भूल गए आप ? शादी इस उम्र में, हिना'
शहला की आँखों में नफ़रत और ग़ुस्सा आया तो मैंने बात बदली
’’शादी से याद आया नुज़हत की शादी पर किया पहनना है तुमने ? तारिक़ रोड पर साड़ियों की वो दुकान याद है तुम्हें?वो हल्की नीली साड़ी, मैं कहता हूँ वो बहुत जचेगी तुम पर, किया ख़्याल है ?'
’’हाँ वो ठीक है लेकिन मैचिंग जूते नहीं हैं मेरे पास और वो महंगी भी तो बहुत है। आप कहते हैं तो ख़रीद लेती हूँ वैसे शलवार क़मीस भी उतना बुरा आईडीया नहीं।। मैं मोटी हो गई हूँ नाँ?'
अगले रोज़ में दुबारा ख़लील भाई से मिला
’’मेरा ख़्याल ये है कि इस से पहले कि हम पुलिस वग़ैरा को इस मुआमले की ख़बर दें क्या ऐसा मुम्किन है हम ख़ुद इस मुआमले की जांच करें, अपनी आँखों से देखें कि इस के पीछे कौन है'
मैंने ख़लील भाई को ये मश्वरा इस लिए दिया क्योंकि में नहीं चाहता था कि पुलिस इस मुआमले में कूद पड़े। ज़ाहिर है निगरानी के तनाज़ुर में मेरा घर ख़लील भाई के बिलकुल बाज़ू में था और उनकी दीवार पर नज़र रखने के लिए निहायत मौज़ूं मुक़ाम था। मैं ये नहीं चाहता था कि पुलिस मेरे घर से उनके घर की निगरानी करे।मैं ख़्वामख़्वाह की क़ानूनी झंझट से दूर रहना चाहता था
’’हम भला कैसे जांच कर सकते हैं? कैसे अपनी आँखों से देख सकते हैं? मैं आपका मतलब नहीं समझा'
ख़लील भाई ने ठोढ़ी खुजाई और मुझे ऐसे लगा वो मेरी इस तजवीज़ से मतिमान नहीं थे
’’वो इस तरह कि जैसा कि आपने पहले कहा कि मेरे घर के बाज़ू वाले कमरे से आपकी दीवार बिलकुल साफ़ दिखाई देती है। मेरी तजवीज़ ये है कि क्यों ना हम वहां पहरा लगा कर बैठ जाएं।। हम दोनों।। इस कमरे में एक सोफा है जहां पर बैठ कर, बत्ती गुल रखकर और पर्दे सरका कर हम आराम से दीवार पर नज़र रख सकते हैं।। सारी रात।। क्या ख़्याल है ?'
मुझे अब ऐसा लगा जैसे ख़लील भाई को ये बात भा गई
’’मैं रज़ीया से पूछता हूँ वो क्या कहती है। असल में मसला ये है कि अगर रज़ीया अकेले सोए तो घबरा जाती है, परेशान होजाती है, उसे एंगज़ाइटी का आरिज़ा है। मैं ज़रा इस से पूछ लूं, क्या ख़्याल है ?'
’’ज़रूर ज़रूर''मेरे सामने एक लम्हे के लिए शहला की नफ़सियाती अज़ीयत वाला मफ़रूज़ा सामने आगया
मैं रह ना सका और इंतिहाई मुहतात अंदाज़ में पूछा
’’ख़लील भाई आपका ख़ानदान, मेरा मतलब है भाई और बहन।। वो अब भी गुलशन इक़बाल में रहते हैं या कहीं और चले गए हैं?'
’’मेरी बहन तो इंग्लिस्तान में है, लंदन में नेसडन नाम की कोई जगह है वहां रहती है अपने मियां के साथ। असल में उनके मियां मुक़ामी सियासत में ख़ासे फ़आल थे तो नज़रों में आ गए यूं सयासी पनाह के चक्कर में वहां चले गए। बड़ा भाई हबीब बैंक में काम करता है , डबल एक्सटेंशन पर है और अब तो बस रिटायर होने के क़रीब है, लेकिन आप ये क्यों पूछ रहे हैं ?'
मैंने उस के बाद मुआमले को ज़्यादा कुरेदना मुनासिब नहीं समझा और ख़लील भाई को ताकीदन कहा कि वो मुझे शाम तक ज़रूर बता दे ताकि मैं मुलाज़िम से कह कर सोफा खिड़की के सामने रखवा दूं
शाम को ख़लील भाई का फ़ोन आया कि वो मेरे घर से पहरे के लिए तैयार हैं। ये सुना तो मैंने सारे इंतिज़ामात मुकम्मल किए और इशा पढ़ते ही हम दोनों कमरे में आकर बैठ गए। नौकर ने सोफा जैसे बताया था वैसे लगा रखा था। सामने मेज़ पर नाशते का सामान और चाय का थर्मस भरा रखा हुआ था और साथ ही मेरी ब्लड प्रैशर की गोलीयों की शीशी मेज़ पर धरी थी
मैंने अपनी वास्कट उतार कर सोफ़े के साथ फ़र्श पर और ख़लील भाई ने टार्च मेज़ पर रखी
पहले हमने वी सी आर पर कोई फ़िल्म देखनी शुरू की लेकिन फिर दरमयान में ही इरादा तबदील किया और बत्ती गुल कर के, पर्दे सरका के नीचे गली का जायज़ा लेने लगे
ख़लील भाई कुछ मग़्मूम,कुछ जज़बाती से नज़र आए
’’अजीब ज़िंदगी है आफ़ाक़ भाई, अजीब ज़िंदगी है। मुझे तो बा लकल समझ नहीं आरहा'
’’ख़लील भाई परेशान ना हूँ, ये वाक़िया।।बस क्या कहूं।। एक परेशानकुन बात है लेकिन बहर-ए-हाल आज दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगीगा। रंगे हाथों पकड़ा जाएगा वो साला।। हम इस को श्रम दिला दें तो शायद वो इन बेहूदा हरकतों से बाज़ आजाए'
’’मेरा मतलब कुछ और था आफ़ाक़ भाई। जब मैं यूनीवर्सिटी में था तो मुझे एक लड़की से इशक़ हो गया। पता नहीं वो आज क्यों याद आरही है'
मैं इस बात से चौंका और मैंने ख़्याल ही ख़्याल में शहला के नफ़सियाती अज़ीयत और दूसरी शादी वाले ख़ाके में रंग भरना शुरू किया
मैंने उनकी बात सुनकर इस्बात में सर हिलाया जैसे में पूरी तवज्जा से उनकी बात सन रहा हूँ
’’इस का नाम निगहत था और वो लाहौर की थी। बड़े घराने की लड़की थी लेकिन थी जज़बाती सो मेरे जाल में आगई और मैंने भी इस का पूरा फ़ायदा उठाया।। शादी अलबत्ता नहीं की।।मेरे ख़्याल में मुझे ऐसा नहीं करना चाहीए था और मुझे लगता है ये उस की बददुआ है।।'
’’नहीं नहीं ख़लील भाई मेरा नहीं ख़्याल ऐसी कोई बात है,आप ख़्वामख़्वाह हस्सास होर है हैं, इन मुहतरमा की तो कब की शादी भी हो चुकी होगी और अब तो उस के बच्चों के बच्चे।।'
ख़लील भाई ने यकदम जैसे कुछ सोच कर कहा
’’नहीं मेरा नहीं ख़्याल ये काम उस के बच्चों का है।।आफ़ाक़ भाई एक बात बताएं।।आपका ये मुलाज़िम, ये भी तो बहुत कुछ जानता है मेरे घर के बारे में, नहीं?'
मुझे ख़लील भाई की ये बात बहुत अजीब लगी लेकिन उनकी तसल्ली के लिए मैंने उन्हें बताया
’’ये हमारे हाँ पिछले बीस बरस से मुलाज़िम है, नेक और खरा आदमी है। सौम सल््ो पाबंद है मुझे इस से हरगिज़ कोई शिकायत नहीं मगर आपको ये ख़्याल क्यों आया?'
’’मैं मुख़्तलिफ़ मफ़रुज़े आज़मा रहा हूँ प्लीज़ उस को पर्सनल ना लें'
इस के बाद उन्होंने मुतअद्दिद लोगों के नाम लिए जिसमें उस के पुराने हमकार, फ़ालूदे वाला, फार्मेसी का चौकीदार, नुक्कड़ का पनवाड़ी भी था। मैंने कान खुले रखे लेकिन उन्होंने अपने भाई या भाबी का नाम बिलकुल नहीं लिया
हम देर तक उन्हें मौज़ूआत पर जुगाली करते रहे लेकिन किसी नतीजे पर ना पहुंच सके
फिर मुझे यूं लगा कि जैसे टेक लगाए लगाए उन्हें ऊँघ आगई है। मुझ पर भी ग़नूदगी ऐसी छाई कि मेरी भी आँख लग गई
सुबह इतवार था और हम देर से उठे। ख़जालत में डूबे हम नीचे चले आए। गली में किन-अँखियों से देखा तो वहां दीवार में दूसरी जगह से भी पलसतर उखड़ा हुआ था और एक और ईंट उर्यां नज़र आरही थी। वहीं कुछ लौंडे क्रिकेट खेल रहे थे
ख़लील भाई का रंग उड़ गया। इस से पहले कि वो कुछ कहते मैंने उन लौंडों की तरफ़ इशारा किया
’’ख़लील भाई, आज का काम इन लौंडों का है, आप देख रहे हैं ये साले हार्ड बाल से खेल रहे हैं'
घर वापिस आया तो शहला दरवाज़े के सामने खड़ी थी
’’ अभी जब आप बाहर थे रज़ीया का फ़ोन आया, उसने कल रात फिर किसी को नक़ब लगाते सुना है और वो बेचारी सारी रात सकते की कैफ़ीयत में रही''
शहला बोलते बोलते रुक गई।इस के लहजे में तंज़ और एक तरह की छबन ऊद कर आई
’’आप दोनों कमाल करते हैं वैसे। निगरानी के नाम प्रसारी रात आराम से सोते रहे और इस बेचारी को जहन्नुम।।'
’’एक मिनट !क्या ये कल रात की बात है ?'
’’हाँ तो कब की? कल ही रात की तो बात है। मेरा ख़्याल है अब पुलिस को ख़बर कर ही दें, पुलिस स्टेशन दूर ही कितना है। आप दोनों इस बेचारी को अपने अनंत नए तजुर्बात से सदमे दे देकर मार ही डालेंगे
अगली रात ख़लील भाई ने मेरे घर पहरे से माज़रत कर ली।वो एक कैमरा खरीदकर लाए थे जो वो मेरे कमरे की खिड़की में लगा के इस से गली की वीडीयो बनाना चाहते, सारी रात, ताकि इस ख़बीस का पता चल सके। इस में मुसीबत ये थी कि वो ज़्यादा से ज़्यादा तीन घंटे तक रिकार्डिंग कर सकते थे अगरचे उनका ये भी कहना था कराची टीवी सैंटर में उनका कोई जानने वाला है जो उनको कुछ रूपों के इव्ज़ बारह घंटे वाले कैसेट वहां से फ़राहम करवा दे गा लेकिन मुझे इस बात में शुबा था। मेरे ख़्याल में वैसे तीन घंटे भी बहुत थे अगर इस में वो ख़बीस नज़र आजाता
मैं इस रात बिस्तर में शहला के साथ दुबका लेटा था कि उसे जैसे कोई बात याद आगई
’’देख लेना जब वीडीयो रिकार्डिंग से ये पता चलेगा कि ये सब उस के ख़ानदान का काम है। तो ये कैसे उनका दिफ़ा करेंगे, कुँजड़िन कभी अपने बीर को खट्टा नहीं बताती।।आपके ये ख़लील भाई इतने नेक नहीं वैसे।। तमाम मर्द ऐसे ही होते हैं।। जहां दूसरी शादी का सुना।।बाछें इधर।। और राल।।''
शहला की ये बातें सुनकर मुझे अंदाज़ा हो गया कि मौज़ू-ए-सुख़न अब मेरे ख़ानदान की तरफ़ मुड़ने वाला है और मेरा इस तरह का कोई भी तबसरा सुनने का कोई इरादा नहीं था सो मैंने झूट-मूट की आँखें बंद करलीं और फिर मैं वाक़ई सो गया
आधी रात को यकायक मेरी आँख खुली
मेरे सर में शदीद दर्द था। मुझे याद आया कि मैंने ब्लड प्रैशर की दवा तो खाई ही नहीं। दवा की शीशी अभी भी ऊपर के कमरे में थी। मैं आहिस्ता से उठा और ऊपर वाले कमरे तक दबे पावं गया। मैंने बत्ती नहीं जलाई क्योंकि में नहीं चाहता था कि तेज़ रोशनी से मेरी नींद काफ़ूर हो जाएगी। टटोलते टटोलते मैंने पर्दे सरकाए और चांदनी में दवा की शीशी मेज़ के नीचे धरी देखी
उसे उठा कर में पर्दे बंद ही करने वाला था कि मुझे ख़लील भाई की दीवार के साथ कोई अकड़ूं बैठा नज़र आया। कुछ तो मेरी नज़र ख़राब थी और रही सही कसर कम रोशनी ने निकाल दी। वो मुझे बस एक धब्बा सा दिखाई दिया।। जैसे हयूला। मैं घबरा गया लेकिन फिर हिम्मत करके वास्कट पहनी और मेज़ पर पड़ी ख़लील भाई की टार्च हाथ में पकड़ी और इस से दो बद्दू होने का इरादा किया
नीचे आकर मैंने एहतियातन पहले नौकर का कमरा देखा। मेरा नौकर घोड़े बीच के सौ रहा था
मैं सुरअत से घर से बाहर निकल आया और दबे पावं उस शख़्स की तरफ़ बढ़ा जो शब ख़ाबी के ढीले लिबास में मलबूस किसी औज़ार से ख़लील भाई की दीवार का पलसतर खुरच रहा था और साथ ही साथ कुछ गुनगुना भी रहा था
मैं डरते डरते उस के क़रीब गया और कुछ हिम्मत मुजतमा की और ज़ोर से गला खनकार के खांसा
उसने यकायक मुड़ कर देखा
ऐन उसी वक़्त मैंने टार्च जलाई।। वो रोशनी में नहा गया
इस ग़ैर मुतवक़्क़े सूरत-ए-हाल से दो-चार उस शख़्स ने हथौड़ा और छीनी नीचे रखकर अपनी आँखों को दाहने हाथ से ढाँपा। ये करते हुए उस की दुबैज़ शीशों वाली ऐनक फिसल के नीचे गिर गई । मुझे उन्हें पहचानने में एक लम्हा भी नहीं लगा
मुझे साफ़ नज़र आगया कि वो साहिब कौन थे۔
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