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पहला दिन

कृष्ण चंदर

पहला दिन

कृष्ण चंदर

MORE BYकृष्ण चंदर

    स्टोरीलाइन

    हर साल की तरह उस साल भी परिवार गर्मियों की छुट्टियों में मसूरी गया तो उनके साथ बूढ़ी और कुँवारी ख़ादिमा मैगी भी थी। परिवार का वहाँ अच्छा वक़्त बीत रहा था कि तभी बच्चों के लिए एक 70 साला मास्टर नियुक्त कर लिया गया। मास्टर से मिलकर मैगी की तो मानो सोई हुई ख़्वाहिशें जाग उठीं। मगर एक रोज़ जब मैगी की सहेली पाम भी वहाँ पहुँच गई और फिर सब कुछ बदल गया।

    आज नई हीरोइन की शूटिंग का पहला दिन था।

    मेक-अप रुम में नई हीरोइन सुर्ख़ मख़मल के गद्दे वाले ख़ूबसूरत स्टूल पर बैठी थी और हेड मेक-अप मैन उसके चेहरे का मेक-अप कर रहा था। एक असिस्टेंट उसके दाएँ बाज़ू का मेक-अप कर रहा था, दूसरा असिस्टेंट उसके बाएँ बाज़ू का। तीसरा असिस्टेंट नई हीरोइन के पाँव की आराइश में मसरूफ़ था, एक हेयर ड्रेसर औरत नई हीरोइन के बालों को हौले-हौले खोलने में मसरूफ़ थी। सामने सिंगार मेज़ पर पैरिस, लंदन और हॉलीवुड का सामान-ए-आराइश बिखरा हुआ था।

    एक वक़्त वो था जब इस हीरोइन को एक मामूली जापानी लिपस्टिक के लिए हफ़्तों अपने शौहर से लड़ना पड़ता था उस वक़्त उस का शौहर मदन इसी मेक-अप रुम के एक कोने में बैठा हुआ ख़ामोशी से यही सोच-सोच कर मुस्कुरा रहा था कैसी मुश्किल ज़िंदगी थी उन दिनों की...

    आज से तीन साल पहले मदन दिल्ली में क्लर्क था। थर्ड डिवीज़न क्लर्क और एक सौ साठ रुपय तनख़्वाह पाता था। नादारी और ग़ुर्बत की ज़िंदगी थी। कोट का कालर फटा है, तो कभी क़मीज़ की आसतीन, तो कभी ब्लाउज़ की पुश्त। आगे-पीछे जिधर से वो दिल्ली की ज़िंदगी को देखता था, उसे वो ज़िंदगी कटी-फटी बोसीदा और तार-तार नज़र आती है। ऐसी ज़िंदगी जिसमें कोई आसमान नहीं होता, कोई फूल नहीं होता, कोई मुस्कुराहट नहीं होती, एक नीम फ़ाक़ा-ज़दा झल्लाई, खिसियाई हुई ज़िंदगी जो एक पुरानी, बदबूदार तिरपाल की तरह दिनों, महीनों और सालों के खूँटों से बंधी हुई हर वक़्त एहसास पर छाई रहती है। मदन इस ज़िंदगी के हर खूंटे को तोड़ देना चाहता था और किसी मौके़ की तलाश में था।

    ये मौक़ा उसे मलिक गिरधारी लाल ने दे दिया। मलिक गिरधारी लाल उसके दफ़्तर का सुपरिंटेंडेन्ट था उन्हीं दिनों में दफ़्तर में एक असिस्टेंट की नई आसामी मंज़ूर हुई थी, जिसके लिए मदन ने भी दरख़ास्त दी थी। और मदन सीनियर था और लायक़ भी था और मलिक गिरधारी लाल का चहेता भी था। मलिक गिरधारी लाल ने जब उस की अर्ज़ी पढ़ी तो उसे अपने पास बुलाया और कहा। “मदन तुम्हारी अर्ज़ी में कई नुक़्स हैं।”

    “तो आप ही कोई गुर बताईए।”

    मलिक गिरधारी लाल ने क़दरे तवक़्क़ुफ़ के बाद मदन की अर्ज़ी उसे वापिस करते हुए कहा, “आज रात को मैं तुम्हारे घर आऊँगा और तुम्हें बताऊँगा।”

    मदन बेहद ख़ुश हुआ। घर जा कर उसने अपनी बीवी प्रेम लता से खासतौर पर अच्छा खाना तैयार करने की फ़र्माइश की। प्रेम लता ने बड़ी मेहनत से रोग़न जोश, पनीर मटर, आलू घोभी और गुच्छियों वाला पुलाओ तैयार किया।

    सर-ए-शाम ही मलिक गिरधारी लाल मदन के घर गया और साथ ही व्हिस्की की एक बोतल भी लेता आया। प्रेम लता ने जल्दी से पापड़ तले, बेसन और प्याज़ के पकौड़े तैयार किए और प्लेटों में सजा कर बीच-बीच में ख़ुद आकर उन्हें पेश करती रही।

    चौथे पैग पर वो पालक के साग वाली फुलकियाँ प्लेट में सजा कर लाई तो मलिक गिरधारी लाल ने बे-इख़्तियार हो कर उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, “प्रेम लता तू भी बैठ जा और आज हमारे साथ व्हिस्की की चुस्की लगा ले। तेरा पति मेरा असिस्टेंट होने जा रहा है।”

    प्रेम लता सर से पाँव तक काँपने लगी उस की आँखों में आँसू उमड़ आए, क्योंकि आज तक उसके ख़ाविंद के सिवा किसी ने उसे इस तरह हाथ ना लगाया था। फुल्कियों की प्लेट उसके हाथ से गिर कर टूट गई, और मदन ने गरज कर कहा, “मलिक गिरधारी लाल... मेरी बीवी को हाथ लगाने की हिम्मत तुझे कैसे हुई?”

    मदन का चाँस मारा गया। उसके बजाय सरदार अवतार सिंह असिस्टेंट बन गया। फिर चंद दिनों के बाद किसी मामूली ग़लती की बिना पर वो अपनी नौकरी से अलग कर दिया गया। और मदन ने कई माह दिल्ली के दफ़्तरों में टक्करें मारने के बाद बम्बई आने की ठानी। क्योंकि उसकी बीवी बड़ी ख़ूबसूरत थी। मदन के दोस्तों का ख़्याल था कि प्रेम लता उतनी ही हसीन है जितनी नसीम पुकार में थी, वहीदा रहमान प्यासा में थी, मधु बाला मुग़ल-ए-आज़म में थी। इसलिए मदन को चाहीए कि प्रेम लता को बम्बई ले जाये। दिल्ली में ख़ूबसूरत बीवी वाले मर्द की तरक़्क़ी के लिए कितनी गुंजाइश है। मदन अगर असिस्टेंट बन भी जाता तो ज़्यादा से ज़्यादा ढाई सौ रुपय पाने लगता। एक सौ साठ के बजाय ढाई सौ रुपय... यानी नव्वे रुपय के लिए अपनी इज़्ज़त गंवा देता, ये तो सरासर हिमाक़त है इसलिए मदन को सीधे बम्बई जाना चाहीए।

    मगर जब मदन ने प्रेम लता से इसका ज़िक्र किया तो वो किसी तरह राज़ी ना हुई। वो एक घरेलू लड़की थी, उसे खाना पकाना, सीना पिरोना, कपड़े धोना, झाड़ू देना और अपने शौहर के लिए स्वेटर बुनना बहुत पसंद था। वो चौदह रुपय की साड़ी और दो रुपय के ब्लाउज़ में बेहद हसीन, ख़ुश और मगन थी। नहीं, वो कभी बम्बई नहीं जाएगी, वो किसी स्कूल में काम करेगी मगर बम्बई नहीं जाएगी।

    पहले दो तीन दिन तो मदन उसे समझाता रहा जब वो किसी तरह ना मानी तो वो उसे पीटने लगा। दो दिन चार चोट की मार खा कर प्रेम लता सीधी हो गई और बम्बई जाने के लिए तैयार हो गई।

    जब प्रेम लता और मदन बोरी बंदर के स्टेशन पर उतरे तो उनके पास सिर्फ एक बिस्तर था, दो सूटकेस थे, चंद सौ रुपय थे और प्रेम लता के जहेज़ का ज़ेवर था। चंद दिन वो लोग कालबा देवी के एक धरम-शाले में रहे और मकान ढूंडते रहे जब उन्हें मालूम हुआ कि जितने का ज़ेवर प्रेम लता के पास है और जितने रुपय मदन के पास हैं वो कल मिला कर भी इतने नहीं हो सकते कि बम्बई में पगड़ी देकर एक मकान लिया जाये। तो वो लोग धरम शाले से गोरे गाँव की एक झोंपड़ी में मुंतक़िल हो गए जहाँ सबसे पहले मदन की लड़ाई झोंपड़ी में रहने वाले एक गुंडे से हुई जो शराब पी कर प्रेम लता की इज़्ज़त पर हमला करना चाहता था। इस लड़ाई के एक ज़ख़्म का निशान आज भी मदन की कलाई पर मौजूद था। मगर मदन बड़ी बहादुरी और जीदारी से लड़ कर झोंपड़ियों में बा-इज़्ज़त तरीक़े से रहने का हक़ मनवा लिया था क्योंकि झोंपड़ियों में रहने वाले बुनियादी तौर पर ग़रीब आदमी थे और एक दूसरे का हक़ समझते थे।

    झोंपड़ी में रह कर मदन ने प्रेम लता को साथ लेकर एक स्टूडीयो से दूसरे स्टूडीयो के चक्कर लगाते-लगाते फ़ाक़े शुरू हुए। पहले नक़दी ख़त्म हुई, फिर प्रेम लता के ज़ेवर बिके, फिर क़ीमती साड़ियाँ, फिर कम क़ीमती साड़ियाँ, आख़िर में मदन के पास सिर्फ एक क़मीज़ रह गई, जो उसके बदन पर थी। और प्रेम लता के पास सिर्फ एक साड़ी और एक ब्लाउज़, और वो भी पुश्त से फट गया था।

    “आपका ड्रेस आया है।” एक असिस्टेंट डायरेक्टर अंदर गया और बा-आवाज़े-ए-बुलंद बोला। और मदन ख़्वाब-ए-ख़रगोश से जागा और उसने देखा कि असिस्टेंट डायरेक्टर के हमराह एक दर्ज़ी हीरोइन का नया ड्रेस लेकर चला रहा है। जामनी रंग का अतलसी ग़रारा, ज़रदोज़ी के काम का बनारसी कुरता और ब्लू शिफॉन का दुपट्टा, सुनहरे गोटे के लहरियों से झिलमिल झिलमिल करता हुआ, ड्रेस के अंदर आते ही महसूस हुआ गोया मेक-अप रुम में एक फ़ानूस रौशन हो गया है। हीरोइन मेक-अप ख़त्म करके ड्रेसिंग रुम में लिबास बदलने के लिए चली गई। लेडी हेयर ड्रेसर और ख़ादिमाएँ उसके जिलौ में थीं।

    उसे यूं जाते देखकर मदन के होंटों पर फ़त्हयाबी की एक कामरान मुस्कुराहट नमूदार हुई उस दिन के लिए उसने जद्द-ओ-जहद की थी, उस दिन के लिए वो जिया था, उस दिन के लिए उसने फ़ाक़े किए थे, चने खा कर मैली पतलून और मैली क़मीज़ पहन कर तपती दो-पहरियों, या मूसलाधार बरसात से भीगी हुई शामों में वो प्रोडयूसरों के दफ़्तरों के चक्कर लगाता रहा था आज उस की कामयाबी का पहला दिन था, कामयाबी की पहली सीढ़ी उसे चमन भाई ने समझाई थी। चमन भाई फ़िल्म प्रोड्यूसरों को किराए पर ड्रैस सपलाई करता था और अक्सर औक़ात मुख़्तलिफ़ प्रोड्यूसरों के दफ़्तरों या मुख़्तलिफ़ स्टूडीयो में उसे मिल जाता था एक दिन जब मदन फटेहालों में इस तरह घूम रहा था, चमन भाई ने उसे अपने पास बुला लिया और पूछा।

    “कहीं काम बना?”

    “नहीं।”

    “तुम निरे गधे हो।”

    अब मदन ने गाली सुनकर भी ख़ामोश रह जाना सीख लिया था। इसी लिए वो ख़ामोश रहा।

    देर तक चमन भाई बड़े गुस्से में उसकी तरफ़ देखकर घूरता रहा। फिर बोला, “आज शाम को मैं तुम्हारे घर आऊँगा और तुम्हें कुछ गुर की बातें बताऊँगा।

    प्रेम लता ने अपनी साड़ी के फटे हुए आँचल से अपनी जवानी को ढांपने की नाकाम कोशिश की फिर उसने बेज़ार हो कर मुँह फेर लिया। जहाँ जाओ कोई ना कोई मलिक गिरधारी लाल मिल जाता है।

    मगर इस शाम चमन भाई ने उनके झोंपड़े में काजू पीते हुए कोई ग़लत बात नहीं की। अलबत्ता पांचवें पैग के बाद चिल्ला कर बोला।

    “जब तक प्रेम लता तुम्हारी बीवी रहेगी ये कभी हीरोइन नहीं बन सकती।”

    “क्या बकते हो?” मदन गुस्से से चिल्ला कर बोला।

    “ठीक बकता हूँ।” चमन भाई हाथ चला कर ज़ोरदार लहजे में बोला। “साला हलकट किस को तुम्हारी बीवी देखने की चाहत है सब लोग मिल मजूर से लेकर मिल मालिक तक फ़िल्म की हीरोइन को कुँवारी देखना चाहते हैं।”

    “कुँवारी?”

    “एक दम वर्जिन”

    “मगर मेरी बीवी कैसे हो सकती है? वो तो शादीशुदा है।”

    “तो इसको शादी वाली मत बोलो, कुँवारी बोलो, अपनी बीवी मत बोलो, बोलो, ये लड़की मेरी बहन है।”

    “मेरी बहन?” मदन ने हैरत से पूछा।

    “हाँ। हाँ। तुम्हारी बहन। अरे बाबा कौन तुम्हारी इस झोंपड़ी में देखने को आता है कि तुम्हारी बहन है कि बीवी है।”

    चमन भाई तो ये गुर बता के चला गया, मगर प्रेम लता नहीं मानी, मदन के बार-बार समझाने पर भी नहीं मानी।

    “मैं अपने शौहर को अपना सगा भाई बताऊंगी...? हरगिज़ नहीं, हरगिज़ नहीं हो सकता, इससे पहले मैं मर जाऊँगी, तुम ज़बान गुद्दी से बाहर खींचोगे, जब भी में अपने पति को अपना भाई नहीं कहूँगी।”

    आख़िर मदन को फिर उसे पीटना पड़ा, दो दिन प्रेम लता ने चार चोट की मार खाई तो सीधी हो गई और फ़िल्म प्रोड्यूसरों के दफ़्तरों में जा कर अपने शौहर को अपना भाई बताने लगी।

    चमन भाई ने मदन को अपने एक दोस्त प्रोडयूसर छगन भाई से मिलवा दिया। छगन भाई ने प्रेम लता के फ़ोटो एक कॉमर्शियल स्टूडियो से निकलवाये। अपने डायरैक्टर मिर्ज़ा इज़्ज़त बैग को बुलवा कर प्रेम लता से उसका तआर्रुफ़ कराया। मिर्ज़ा इज़्ज़त बेग ने बड़ी गहरी नज़रों से प्रेम लता को देखा, उससे बातचीत की, फिर स्क्रीन टेस्ट के लिए हाँ कर दी।

    स्क्रीन टेस्ट के लिए फ़िल्म का एक सीन प्रेम लता को याद करने के लिए दिया गया और तीन दिन के बाद स्क्रीन टेस्ट रखा गया। तीनों दिन हर-रोज़ शाम के वक़्त चमन भाई झोंपड़े में मदन और प्रेम लता से मिलने के लिए आता रहा और काजू पीता रहा और इन दोनों का हौसला बढ़ाता रहा।

    “आज स्क्रीन टेस्ट है मेरी मानो तो तुम आज प्रेम लता के साथ ना जाओ।”

    “क्यों जाऊँ?”

    “इसलिए कि अगर तुम साथ गए तो प्रेम लता फ़्री ऐक्टिंग ना कर सकेगी, तुम्हें देखकर शर्मा जाएगी, और अगर प्रेम लता घबरा गई तो ये स्क्रीन टेस्ट में फ़ेल हो जाएगी।

    “कैसे फ़ेल हो जाएगी?” मदन शराब के नशे में झल्ला कर बोला

    “मेरी बीवी नसीम, सुचित्रा सेन, मधूबाला से भी ख़ूबसूरत है। मेरी बीवी एलिज़ा बेथ टेलर से भी ज़्यादा ख़ूबसूरत है, मेरी बीवी नर्गिस से बेहतर अदाकारा है, मेरी बीवी किसी स्क्रीन टेस्ट में फ़ेल नहीं हो सकती, मेरी बीवी...”

    “अबे साले बीवी नहीं बहन बोल बहन।” चमन भाई हाथ चलाते हुए ज़ोर से बोला।

    “अच्छा बहन ही सही।” मदन शराब का जाम ख़ाली करते हुए बोला। “जैसा तुम बोलोगे चमन भाई ऐसा ही में करूँगा। आज तक कोई बात टाली है जो अब टालूँगा, ले जाओ, मेरे भाई अपनी बहन को तुम ही आज स्क्रीन टेस्ट के लिए ले जाओ, मगर हिफ़ाज़त से ले आना।”

    “ख़ातिर रखो। अपनी गाड़ी में लेकर जा रहा हूँ अपनी गाड़ी में लेकर आऊँगा।”

    बहुत रात गए प्रेम लता स्क्रीन टेस्ट से प्रोड्यूसर की गाड़ी में लौटी। उसने वही साड़ी पहन रखी थी जो स्क्रीन टैस्ट के लिए इस्तेमाल की गई थी। और उसके मुँह से शराब की बू रही थी। मदन गुस्से से पागल हो गया।

    “तुमने शराब पी?”

    “हाँ सीन में ऐसा ही करना था।”

    “मगर पहले सीन में जो तुम्हें दिया गया था उसमें तो ऐसा नहीं था।”

    “मिर्ज़ा इज़्ज़त बेग ने सीन बदल दिया था।”

    “तो तुमने शराब पी, सिर्फ शराब पी?” मदन ने उससे गहरी नज़रों से देखते हुए पूछा।

    “हाँ सिर्फ़ शराब पी।”

    “और तो कुछ नहीं हुआ?”

    “नहीं।” प्रेम लता बोली। अलबत्ता सीन की रिहर्सल अलग से कराते हुए मिर्ज़ा बेग ने मेरी कमर में हाथ डाल दिया।”

    “कमर में हाथ डाल दिया... क्यों?” मदन ने एक दम भड़क कर कहा।

    “सीन का ऐक्शन समझाने की ख़ातिर।” प्रेम लता बोली।

    “मदन का गुस्सा ठंडा हो गया।” आहिस्ता से बोला, “सिर्फ़ कमर में हाथ डाला इज़्ज़त पर हाथ तो नहीं डाला?”

    “नहीं” प्रेम लता ने नज़रें चुराकर कहा।

    “साफ़ साफ़ बताओ। कुछ और तो नहीं हुआ?”

    “हाँ हुआ था” प्रेम लता झिजकते-झिजकते बोली।

    “क्या हुआ था?” मदन फिर भड़कने लगा।

    “स्क्रीन टेस्ट के दौरान में जो मेरे सामने हीरो का काम कर रहा था उसने मुझे ज़ोर से अपनी बाँहों में भींच लिया।”

    “ऐसा उस बदमाश ने क्यों किया?” मदन गरज कर बोला।

    “ऐसा ही सीन था।” प्रेम लता बोली।

    “अच्छा, सीन ही ऐसा था।” मदन अपने आपको समझाते हुए बोला।

    “सीन ही ऐसा था तो कोई मज़ाइक़ा ना था।” मगर ठीक-ठीक बताओ सिर्फ़ बाँहों में लेकर भींचा था?”

    “हाँ, सिर्फ़ बाँहों में लेकर भींचा था।” प्रेम लता गुलू-गीर लहजे में बोली। फिर यका-यक बिस्तर पर गिर कर तकिए में सर छुपा कर फूट फूटकर रोने लगी।

    “शॉर्ट तैयार है।”

    ये प्रोडयूसर छगन भाई की आवाज़ है, मदन इस आवाज़ को सुनकर चौंक गया और बे-इख़्तियार कुर्सी से उठ गया, छगन भाई मदन को देखकर मुस्कुराया, हाथ बढ़ा कर उसने मदन से मुसाफ़ा किया, बड़े प्यार से उसके काँधे पर हाथ रखा, और उससे पूछा।

    “सरोज बाला कहाँ है?”

    छगन भाई ने अपनी नई हीरोइन का नाम प्रेम लता से बदल कर सरोज बाला रख दिया था। पेशतर उसके कि मदन कोई जवाब दे, नई हीरोइन ख़ुद ड्रेसिंग रूम से निकल कर ख़िरामाँ-ख़िरामाँ मेक-अप रूम में चली आई, और नए लिबास, नए हेयर स्टाइल और मुकम्मल मेक-अप के साथ हर क़दम पर एक नया फ़ित्ना बेदार करते हुए आई। चंद लम्हों तक तो मदन बिल्कुल मबहूत खड़ा उसे देखता रहा गोया उसे यक़ीन ना हो कि ये औरत उस की बीवी प्रेम लता है। छगन भाई भी एक लम्हे के लिए भौंचक्का रह गया और उस एक लम्हे में उसे मुकम्मल इत्मीनान हो गया कि उसने जो फ़ैसला किया था वो बिलकुल ठीक था। दूसरे लम्हे में छगन भाई ने थियेट्रीकल अंदाज़ में अपने सीने पर हाथ रखा और बुलंद आवाज़ में कहने लगे।

    “शॉर्ट तैयार है सरकार-ए-वाली, सीट पर तशरीफ़ ले चलिए।”

    नई हीरोइन खिलखिला कर हंस पड़ी और मदन को ऐसा लगा जैसे किसी शाही हाल में लटके हुए इस्तंबोली फ़ानूस की बहुत सी बिल्लौरीं क़लमें एक साथ बज उठीं।

    नई हीरोइन गोया मुस्कुराहट के मोती बिखेरती हुई छगन भाई के साथ सीट पर चली, मदन भी पीछे पीछे चला, और छगन भाई को अपनी बीवी के साथ हंस हंसकर बातें करते हुए देखकर मदन को वो दिन याद आया जब छगन भाई ने स्क्रीन टैस्ट के चंद दिन बाद मदन को अपने दफ़्तर बुला भेजा था।

    छगन भाई मदन की कमर में हाथ डाल कर ख़ुद उसे अंदर कमरे में ले गया था जो एयरकंडीशन्ड था। और छगन भाई का अपना ज़ाती प्राईवेट कमरा था जिसमें बिज़नस के तमाम अहम उमूर तय होते थे। जब मदन उस कमरे के अंदर पहुंचा तो उसने देखा कि उससे पहले उस कमरे में मिर्ज़ा इज़्ज़त बैग और चमन भाई बैठे हुए हैं।

    “आज बोर्ड आफ़ डायरेक्टर्ज़ की मीटिंग है।” चमन भाई ने हंसकर कहा।

    “आज हम लोग एक सोने की कान ख़रीदने जा रहे हैं।”

    “सोने की कान?” मदन ने ताज्जुब से पूछा।

    “हाँ और तुम्हारा भी इस में हिस्सा है, एक चौथाई का और बाक़ी तीन तुम्हारे पार्टनर तुम्हारे सामने इस कमरे में बैठे हैं, मैं, छगन भाई, ये मेरा दोस्त चमन भाई, ये मेरा डायरेक्टर मिर्ज़ा इज़्ज़त बैग, हम चारों आज से इस सोने की कान के पार्टनर होंगे

    “और ये सोने की कान है कहाँ?”

    जवाब में छगन भाई ने मेज़ से एक तस्वीर उठाई, और मदन को दिखाते हुए बोले।

    “ये रही।”

    मदन ने हैरत से कहा, “मगर ये तो मेरी, बी... मेरा मतलब है मेरी बहन की तस्वीर है।”

    “यही सोने की नई कान है, तुम्हारी बहन को अपनी नई पिक्चर में हीरोइन ले रहा हूँ, और फ़िल्म इंडस्ट्री के टॉप हीरो के संग, देवराज के संग, जिसकी कोई तस्वीर सिल्वर जुबली से इधर उतरती ही नहीं, बोलो? फिर एक पिक्चर के बाद उस हीरोइन की क़ीमत ढाई लाख होगी कि नहीं? इसको मैं सोने की कान बोलता हूँ तो क्या ग़लत बोलता हूँ? जवाब दो।”

    “मगर मैं पूछता हूँ कि मेरी सोने की कान आपकी कैसे हो गई?” मदन ने हैरान हो कर पूछा।

    “क्यों कि मैं उसे हीरोइन ले रहा हूँ” छगन बुलंद आवाज़ में बोला। नहीं तो ये लड़की क्या है, गोरे गाँव के एक झोंपड़े में रहने वाली पंद्रह रुपय की छोकरी, फिर मैं इसकी पब्लिसिटी पर पछत्तर हज़ार रुपया ख़र्च करूँगा कि नहीं? फिर मैं इसको टॉप के हीरो देवराज के संग डाल रहा हूँ उसके बाद अगर में इस कान में फिफ्टी प्रसेंट का शेयर मांगता हूँ तो क्या ज़्यादा मांगता हूँ? और सिर्फ पाँच साल के लिए।”

    “और तुम?” मदन ने चमन भाई से पूछा।

    “अगर मैं तुम्हें छगन भाई से ना मिलाता तो तुम्हें ये कॉन्ट्रैक्ट आज कहाँ से मिलता। इसलिए हिसाब से साढे़ बारह फ़ीसदी का कमीशन मेरा है।”

    “और तुम?” मदन ने इज़्ज़त बैग की तरफ़ मुड़कर बोला।

    “अपुन तो डायरेक्टर है।” मिर्ज़ा इज़्ज़त बैग बोला। “अपुन चाहे तो इस पिक्चर में नई हीरोइन को फ़रस्ट क्लास बना दे, चाहे तो थर्ड क्लास बना दे। इसलिए अपुन को भी साढे़ बारह फ़ीसदी चाहीए।”

    “मगर ये तो ब्लैक मेल है।” यकायक मदन भड़क कर बोला।

    “इज़्ज़त की बात करो, इज़्ज़त की।” इज़्ज़त बैग ख़फ़ा हो कर बोला। “अपुन अपनी इज़्ज़त हमेशा बैग में रखया है इसलिए अपुन का नाम इज़्ज़त बैग है, अपुन इज़्ज़त चाहता है, और अपना शेयर, सिर्फ साढे़ बारह फ़ीसदी।”

    यकायक मदन को ऐसा महसूस हुआ जैसे प्रेम लता कोई औरत नहीं है वो एक कारोबारी तिजारती इदारा है जिसके शेयर बम्बई के स्टाक ऐक्सचेंज पर ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त के लिए गए, जैसे ग्लोब कम्बाइन अलकायन और टाटा डीफ़र्ड, ऐसे ही प्रेम लता प्राईवेट लिमिटेड।

    “मुझे कहाँ दस्तख़त करने होंगे” मदन ने तक़रीबन रुहाँसे हो कर पूछा।

    फ़ाक़ों के माह साल माज़ी का हिस्सा बन चुके थे, जिस दिन मदन ने कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तख़त किए, छगन ने उसे दो हज़ार का चैक दिया, मलबार हिल पर उनके रहने के लिए एक उम्दा फ़्लैट ठीक कर दिया, एक नई फ़ियेट ग्लोब मोटर्ज़ की दूकान से निकलवा के उसे दी, उसी रात मदन और प्रेम लता अपने नए फ़्लैट में चले गए, और मदन ने प्रेम लता को गले से लगा कर उस की कामयाबी के लिए दुआ की और मदन के पैरों को छूकर प्रेम लता ने प्रतिज्ञा के कि वो हमेशा-हमेशा के लिए सिर्फ़ उसकी बीवी हो कर रहेगी आख़िर-ए-कार मदन की मेहनत और जद्दोजहद रंग लाई, आख़िर-ए-कार कामयाबी ने मदन के पाँव चूमे, आज उस की बीवी हीरोइन थी, प्रेम लता, सरोज बालाथी, आज उस की शूटिंग का पहला दिन था।

    और अब वो दिन भी ख़त्म हो रहा था, स्टेज नंबरों के बाहर मदन अपनी फ़ियेट में बैठा हुआ बार-बार घड़ी देख रहा था, कब पाँच बजेंगे, कब पैक-अप होगा, और कब वो अपने दिल की रानी को अपनी फ़ियेट में बिठा कर दूर कहीं समुंद्र के किनारे ड्राईव के लिए ले जाएगा।

    पैक-अप की घंटी बजी, और मदन का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।

    थोड़ी देर के बाद नई हीरोइन बाहर निकली, उसका हाथ देवराज के हाथ में था, और वो दोनों बड़ी बे-तकल्लुफ़ी से बातें करते, हंसते बोलते, हाथ झुलाते साथ-साथ चले रहे थे, साथ-साथ फ़ियेट से आगे चले गए, जहाँ हीरो की शानदार इमपाला गाड़ी खड़ी थी।

    मदन ने फ़ियेट का पुट खोल कर आवाज़ दी।

    “सरोज।”

    “हाँ भइया।” हीरोइन पलट कर चिल्लाई, और फिर दौड़ती हुई मदन के पास आई और आहिस्ता से बोली। “तुम घर जाओ, मैं देवराज की गाड़ी में आती हूँ।”

    “मगर तुम मेरी गाड़ी में क्यों नहीं जा सकतीं?” मदन ने गुस्से से पूछा।

    “बावले हुए हो।” प्रेम लता ने तैश खा कर जवाब दिया। “मैं अब एक हीरोइन हूँ, और अब मैं कैसे तुम्हारे साथ इस छोटी सी फ़ियेट में बैठ कर स्टूडीयो से बाहर निकल सकती हूँ, लोग क्या कहेंगे।

    “सरोज” उधर से हीरो ज़ोर से चलाया।

    “आई” सरोज ज़ोर से चिल्लाई और पलट कर हीरो की गाड़ी की तरफ़ दौड़ती हुई चली गई। देवराज सामने की सीट पर ड्राईव करने के लिए बैठ गया और सरोज उसके साथ लग कर बैठ गई। फिर इमपाला के पट बंद हो गए और वो ख़ूबसूरत फ़ीरोज़ी गाड़ी एक ख़ुश आइंद हॉर्न की मौसीक़ी पैदा करती हुई गेट से बाहर चली गई और मदन की फ़ियेट का पुट खुले का खुला रह गया।

    स्रोत:

    कबूतर के ख़त

    • लेखक: कृष्ण चंदर
      • प्रकाशक: स्टार पब्लिकेशन्स, दिल्ली

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