अंधेरा पर चित्र/छाया शायरी
रौशनी और प्रकाश के आंशिक
या पूर्ण अभाव को अंधेरा कहा जाता है । अर्थात वो समय या स्थिति जिस में प्रकाश या रौशनी न हो । अंधेरा अपने स्वभाविक अंदाज़ में भी उर्दू शायरी में आया है और जीवन के नकारात्मकता का रूपक बना है । लेकिन ये शायरी में अपने रूपक का विस्तार भी है कि कई जगहों पर यही अंधेरा आधुनिक जीवन की चकाचौंध के सामने सकारात्मक रूप में मौजूद है । अंधेरे को रूपक के तौर पर शायरी ने अपना कर कई नए अर्थ पैदा किए हैं ।
![शहर के अंधेरे को इक चराग़ काफ़ी है शहर के अंधेरे को इक चराग़ काफ़ी है](https://rekhta.pc.cdn.bitgravity.com/Images/ShayariImages/shahr-ke-andhere-ko-ik-charaag-kaafii-hai-couplets-ehtisham-akhtar_medium.png)
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