मुंबई में मुझे तीन चीज़ें पसंद आई हैं, समुंद्र, नारीयल के दरख़्त और बंबई की ऐक्ट्रस। अस्ल में इन तीन चीज़ों से बंबई ज़िंदा है, अगर इन तीन चीज़ों को बंबई से निकाल दिया जाये तो बंबई, बंबई ना रहे, शायद दिल्ली बन जाये या लाहौर।
लाहौर की बाअ्ज़ गलियाँ इतनी तंग हैं कि अगर एक तरफ़ से औरत आ रही हो और दूसरी तरफ़ से मर्द तो दरमियान में सिर्फ़ निकाह की गुंजाइश बचती है।