माँ का दिल
कहानी एक फ़िल्म के एक सीन की शूटिंग के गिर्द घूमती है, जिसमें हीरो को एक बच्चे को गोद में लेकर डायलॉग बोलना होता है। स्टूडियों में जितने भी बच्चे लाए जाते हैं हीरो किसी न किसी वजह से उनके साथ काम करने से मना कर देता है। फिर बाहर झाड़ू लगा रही स्टूडियों की भंगन को उसका बच्चा लाने के लिए कहा जाता है, जो कई दिन से बुख़ार में तप रहा होता है। पैसे न होने के कारण वह उसे अच्छी डॉक्टर को भी नहीं दिखा पाती। हीरो बच्चे के साथ सीन शूट करा देता है। मगर जब भंगन स्टूडियों से पैसे लेकर उसे डॉक्टर के पास लेकर जाती है तब तक बच्चा मर चुका होता है।
ख़्वाजा अहमद अब्बास
बस स्टैंड
मर्द के दोहरे रवैय्ये और औरत की मासूमियत को इस कहानी में बयान किया गया है। सलमा एक अविवाहित लड़की है और शाहिदा उसकी शादी-शुदा सहेली। एक दिन सलमा शाहिदा के घर जाती है तो शाहिदा अपने शौहर की शराफ़त और अमीरी की प्रशंसा बढ़ा-चढ़ा कर करती है। जब सलमा अपने घर वापस जाती है तो रास्ते में उसे एक आदमी ज़बरदस्ती अपनी कार में बिठाता है और अपनी जिन्सी भूख मिटाता है। संयोग से सलमा उस आदमी का बटुवा खोल कर देखती है तो पता चलता है कि वो शाहिदा का शौहर है।
सआदत हसन मंटो
ओल्ड एज होम
आराम-ओ-सुकून का तालिब एक ऐसे बूढ़े शख़्स की कहानी जो सोचता था कि रिटायरमेंट के बाद इत्मीनान से अपने घर में रहेगा, मज़े से अपनी पसंद की किताबें पढ़ेगा। लेकिन साथ रह रहे घर के दूसरे लोगों के अलावा अपने पोते-पोतियों के शोर-शराबे से उसे ऊब होने लगी और वह घर छोड़कर ओल्ड एज होम में रहने चला जाता है। वहाँ अपने से पहले रह रहे एक शख़्स का एक ख़त उसे मिलता है जिसमें वह अपने बच्चों को याद करके रोता है। उस ख़त को पढ़कर उसे अपने बच्चों की याद आती है और वह वापस घर लौट जाता है।
मिर्ज़ा अदीब
ख़ालिद मियां
यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो अपने बेटे की मौत के वहम में मानसिक तनाव का शिकार हो जाता है। ख़ालिद मियाँ एक बहुत तंदुरुस्त और ख़ूबसूरत बच्चा था। कुछ ही दिनों में वह एक साल का होने वाला था, पर उसकी सालगिरह से दो दिन पहले ही उसके बाप मुम्ताज़ को यह संदेह होने लगा था कि ख़ालिद एक साल का होने से पहले ही मर जाएगा। हालाँकि बच्चा बिल्कुल स्वस्थ था और हँस-खेल रहा था। मगर जैसे-जैसे वक़्त बीतता जाता था, मुमताज़ का संदेह और भी गहरा होता जाता था।
सआदत हसन मंटो
ताई इसरी
ग्रैंड मेडिकल कॉलेज कलकत्ता से लौटने पर पहली बार उसकी मुलाक़ात ताई इसरी से हुई थी। ताई इसरी ने अपनी पूरी ज़िंदगी अकेली ही गुज़ार दी। वह शादी-शुदा हो कर भी एक तरह से कुँवारी थी। उनका शौहर जालंधर में रहता था और ताई इसरी लाहौर में। मगर अकेली होने के बाद भी उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। और ज़िंदगी को पूरे भरपूर अंदाज़ में जिया।
कृष्ण चंदर
चिड़िया चिड़े की कहानी
एक चिड़िया और चिड़े की मार्फ़त यह कहानी इंसानी समाज में मर्द और औरत के रिश्तों के बारे में बात करती है। चिड़ा अपने हिस्से की कहानी सुनाता हुआ कहता है कि मर्द कभी भी एक जगह टिक कर नहीं रहता। वह एक के बाद दूसरी औरत के पास भटकता रहता है। वहीं चिड़िया समाज में औरत की हालत को बयान करती है।
सज्जाद हैदर यलदरम
आमिना
यह कहानी दौलत की हवस में रिश्तों की ना-क़द्री और इंसानियत से वंचित कुकर्म कर गुज़रने वाले व्यक्तियों के अंजाम को पेश करती है। दौलत की लालची सौतेली माँ के सताये हुए चंदू और बिंदू को जब क़िस्मत नवाज़ती है तो वो दोनों भी अपने मुश्किल दिन भूल कर रिश्तों की पवित्रता को मजरुह करने पर आमादा हो जाते हैं। चंदू अपने भाई बिंदू के बहकावे में आकर अपनी बीवी और बच्चे को सिर्फ़ दौलत की हवस में छोड़ देता है। जब दौलत ख़त्म हो जाती है और नशा उतरता है तो वह अपनी बीवी के पास वापस जाता है। उसका बेटा उसे उसी दरिया के पास ले जाता है जहाँ चंदू की सौतेली माँ ने डूबने के लिए उन दोनों भाइयों को छोड़ा था और बताता है कि यहाँ पर है मेरी माँ।
सआदत हसन मंटो
बूढ़ी काकी
‘बूढ़ी काकी’ मानवीय भावना से ओत-प्रोत की कहानी है। इसमें उस समस्या को उठाया गया है जिसमें परिवार के बाक़ी लोग घर के बुज़ुर्गों से धन-दौलत लेने के लिए उनकी उपेक्षा करने लगते हैं। इतना ही नहीं उनका तिरस्कार किया जाता है। उनका अपमान किया जाता है और उन्हें खाना भी नहीं दिया जाता है। इसमें भारतीय मध्यवर्गीय परिवारों में होने वाली इस व्यवहार का वीभत्स चित्र उकेरा गया है।
प्रेमचंद
अंधेरा
ऐसे दो लोगों की कहानी जो दिन भर शहर में काम करने के बाद शाम ढ़ले अपने गाँव को लौट रहे होते हैं। रास्ते में चलते हुए जैसे-जैसे अँधेरा बढ़ता जाता है उनमें से एक को डर लगने लगता है। डर से बचने के लिए वह अपने साथी से बातचीत शुरू करता है और उसका साथी उसका हौसला बढ़ाने के लिए एक ऐसी कहानी सुनाता है जो डर से जुड़ी होती है।
मोहम्मद मुजीब
मेरा बच्चा
किसी भी औरत के पहला बच्चा होता है तो वह हर रोज़ नए-नए तरह के एहसासात से गुज़रती है। उसे दुनिया की हर चीज़ नए रंग-रूप में नज़र आने लगती है। उसकी चाहत, मोहब्बत और तवज्जोह सब कुछ उस बच्चे पर केंद्रित हो कर रह जाती है। एक माँ अपने बच्चे के बारे में क्या-क्या सोचती है वही सब इस कहानी में बयान किया गया है।
कृष्ण चंदर
भिकारन
एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो बचपन में भीख माँगकर गुज़ारा किया करती थी। एक बार उसे एक लड़का मिला और उसे अपने घर ले गया। वहाँ उसके लड़के के पिता ने कहा कि यदि वह लड़की शरीफ़ ख़ानदान की होती तो भीख माँगकर गुज़ारा क्यों करती। उनकी यह बात उस लड़की को इतनी लगी कि वह पढ़-लिख कर शहर की सबसे प्रसिद्ध लेडी डॉक्टर बन गई।
आज़म करेवी
बाबू गोपीनाथ
वेश्याओं और उनके परिवेश को दर्शाने वाली इस कहानी में मंटो ने उन पात्रों के बाहरी और आन्तरिक स्वरूप को उजागर करने की कोशिश की है जिनकी वजह से ये माहौल पनपता है। लेकिन इस अँधेरे में भी मंटो इंसानियत और त्याग की हल्की सी किरन ढूंढ लेता है। बाबू गोपी नाथ एक रईस आदमी है जो ज़ीनत को 'अपने पैरों पर खड़ा करने' के लिए तरह तरह के जतन करता है और आख़िर में जब उसकी शादी हो जाती है तो वो बहुत ख़ुश होता है और एक अभिभावक की भूमिका अदा करता है।
सआदत हसन मंटो
फ़ोटोग्राफ़र
उत्तर-पूर्व के एक शांत क़स्बे में स्थित एक डाक-बंगले के फ़ोटोग्राफ़र की कहानी। फ़ोटोग्राफ़र ज़्यादा टूरिस्टों के न होने के बाद भी अपने क़स्बे में जमा रहता है। डाक-बंगले में इक्का-दुक्का टूरिस्ट आते हैं जिनसे काम के लिए उसने डाक-बंगले के माली से समझौता कर लिया है। उन्हीं टूरिस्टों में एक शाम एक नौजवान और एक लड़की डाक-बंगले में आते हैं। नौजवान मशहूर संगीतकार है और लड़की मशहूर-तरीन नृत्यांगना। दोनों खुश हैं और अगले दिन बाहर घूमने जाते वक़्त वे फ़ोटोग्राफ़र से फोटो भी खिंचवाते हैं, लेकिन लड़की उसे ले जाना भूल जाती है। पंद्रह साल बाद इत्तेफ़ाक़ से वह फिर उसी डाक-बंगले में आती है और फ़ोटोग्राफ़र को वहीं पाकर हैरान होती है। फ़ोटोग्राफ़र भी उसे पहचान लेता है और उसके साथी के बारे में पूछता है। साथी, जो ज़िंदगी की भीड़ में कहीं खो गया और उसे खोए हुए भी मुद्दत हो गई है...
क़ुर्रतुलऐन हैदर
घास वाली
खेतों की मेड़ पर जब वह मुलिया घास वाली से टकराया तो उसकी ख़ूबसूरती देखकर उसके तो होश ही उड़ गए। उसे लगा कि वह मुलिया के बिना रह नहीं सकता। मगर मुलिया एक पतिव्रता औरत है। इसलिए जब उसने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की तो मुलिया ने उसके सामने समाज की सच्चाई का वह चित्र प्रस्तुत किया जिसे सुनकर वह उसके सामने गिड़गिड़ाने और माफ़ी माँगने लगा।
प्रेमचंद
नफ़सियात शनास
यह कहानी एक ऐसे शख़्स की है जो अपने घरेलू नौकर पर मनोवैज्ञानिक अध्ययन करता है। उसके यहाँ पहले दो सगे भाई नौकर हुआ करते थे। उनमें से एक बहुत चुस्त था तो दूसरा बहुत सुस्त। उसने सुस्त नौकर को हटाकर उसकी जगह एक नया नौकर रख लिया। वह बहुत होशियार और पहले वाले से भी ज़्यादा चुस्त और फुर्तीला था। उसकी चुस्ती और फ़ुर्ती इतनी ज़्यादा थी कि कभी-कभी वह उसके काम करने की तेज़ी को देख कर झुंझला जाता था। उसका एक दोस्त उस नौकर की बड़ी तारीफ़ किया करता था। इससे प्रभावित हो कर एक रोज़ उसने नौकर की गतिविधियों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन करने की ठानी और फिर...