शोख़ी पर ग़ज़लें

शोख़ी माशूक़ के हुस्न

में मज़ीद इज़ाफ़ा करती है। माशूक़ अगर शोख़ न हो तो उस के हुस्न में एक ज़रा कमी रह जाती है। हमारे इन्तिख़ाब किए हुए इन अशआर में आप देखेंगे कि माशूक़ की शोख़ियाँ कितनी दिल-चस्प और मज़ेदार हैं इनका इज़हार अक्सर जगहों पर आशिक़ के साथ मुकालमें में हुआ है।

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