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रद करें डाउनलोड शेर

उस्ताद पर उद्धरण

उस्ताद को मौज़ू बनाने

वाले ये अशआर उस्ताद की अहमियत और शागिर्द-ओ-उस्ताद के दर्मियान के रिश्तों की नौइयत को वाज़ेह करते हैं ये इस बात पर भी रौशनी डालते हैं कि न सिर्फ कुछ शागिर्दों की तर्बीयत बल्कि मुआशरती और क़ौमी तामीर में उस्ताद का क्या रोल होता है। इस शायरी के और भी कई पहलू हैं। हमारा ये इंतिख़ाब पढ़िए। ख़फ़ा-ख़फ़ा होना और एक दूसरे से नाराज़ होना ज़िंदगी में एक आम सा अमल है लेकिन शायरी में ख़फ़्गी की जितनी सूरतों हैं वो आशिक़ और माशूक़ के दर्मियान की हैं। शायरी में ख़फ़ा होने, नाराज़ होने और फिर राज़ी हो जाने का जो एक दिल-चस्प खेल है इस की चंद तस्वीरें हम इस इंतिख़ाब में आपके सामने पेश कर रहे हैं।

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अच्छे उस्ताद के अंदर एक बच्चा बैठा होता है जो हाथ उठा-उठा कर और सर हिला-हिला कर बताता जाता कि बात समझ में आई कि नहीं।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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दानिशगाहों में मुश्किल से चार फ़ीसद या तीन फ़ीसद असातिज़ा ऐसे होंगे, जो मुताला फ़रमाते हैं, बाक़ी सब तरक़्क़ी के हिज्जे करते रहते हैं। ऐसे क़हत के आलम में जब ये मालूम होता है कि फ़ुलाँ शख़्स ने किताब पढ़ी है तो किस क़दर मुसर्रत होती है। इस को सही तौर पर बयान करना मुश्किल है।

नैयर मसूद
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