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रद करें डाउनलोड शेर

उस्ताद पर शेर

उस्ताद को मौज़ू बनाने

वाले ये अशआर उस्ताद की अहमियत और शागिर्द-ओ-उस्ताद के दर्मियान के रिश्तों की नौइयत को वाज़ेह करते हैं ये इस बात पर भी रौशनी डालते हैं कि न सिर्फ कुछ शागिर्दों की तर्बीयत बल्कि मुआशरती और क़ौमी तामीर में उस्ताद का क्या रोल होता है। इस शायरी के और भी कई पहलू हैं। हमारा ये इंतिख़ाब पढ़िए। ख़फ़ा-ख़फ़ा होना और एक दूसरे से नाराज़ होना ज़िंदगी में एक आम सा अमल है लेकिन शायरी में ख़फ़्गी की जितनी सूरतों हैं वो आशिक़ और माशूक़ के दर्मियान की हैं। शायरी में ख़फ़ा होने, नाराज़ होने और फिर राज़ी हो जाने का जो एक दिल-चस्प खेल है इस की चंद तस्वीरें हम इस इंतिख़ाब में आपके सामने पेश कर रहे हैं।

माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत

है रोक-टोक उन की हक़ में तुम्हारे ने'मत

अल्ताफ़ हुसैन हाली

सच ये है हम ही मोहब्बत का सबक़ पढ़ सके

वर्ना अन-पढ़ तो थे हम को पढ़ाने वाले

अनवर जमाल अनवर

मुझ से जो चाहिए वो दर्स-ए-बसीरत लीजे

मैं ख़ुद आवाज़ हूँ मेरी कोई आवाज़ नहीं

असग़र गोंडवी

असातिज़ा ने मिरा हाथ थाम रक्खा है

इसी लिए तो मैं पहुँचा हूँ अपनी मंज़िल पर

इसहाक़ विरदग

पढ़ने वाला भी तो करता है किसी से मंसूब

सभी किरदार कहानी के नहीं होते हैं

नाज़िर वहीद

उस्ताद के एहसान का कर शुक्र 'मुनीर' आज

की अहल-ए-सुख़न ने तिरी तारीफ़ बड़ी बात

मुनीर शिकोहाबादी

अदब ता'लीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का

वही शागिर्द हैं जो ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं

चकबस्त ब्रिज नारायण

जिन के किरदार से आती हो सदाक़त की महक

उन की तदरीस से पत्थर भी पिघल सकते हैं

अज्ञात

रहबर भी ये हमदम भी ये ग़म-ख़्वार हमारे

उस्ताद ये क़ौमों के हैं मे'मार हमारे

अज्ञात

अब मुझे मानें मानें 'हफ़ीज़'

मानते हैं सब मिरे उस्ताद को

हफ़ीज़ जौनपुरी

किस तरह 'अमानत' रहूँ ग़म से मैं दिल-गीर

आँखों में फिरा करती है उस्ताद की सूरत

अमानत लखनवी

देखा कोहकन कोई फ़रहाद के बग़ैर

आता नहीं है फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर

अज्ञात

वही शागिर्द फिर हो जाते हैं उस्ताद 'जौहर'

जो अपने जान-ओ-दिल से ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं

लाला माधव राम जौहर

मदरसा मेरा मेरी ज़ात में है

ख़ुद मोअल्लिम हूँ ख़ुद किताब हूँ मैं

साक़ी अमरोहवी

महरूम हूँ मैं ख़िदमत-ए-उस्ताद से 'मुनीर'

कलकत्ता मुझ को गोर से भी तंग हो गया

मुनीर शिकोहाबादी

शागिर्द तर्ज़-ए-ख़ंदा-ज़नी में है गुल तिरा

उस्ताद-ए-अंदलीब हैं सोज़-ओ-फ़ुग़ाँ में हम

हैदर अली आतिश

फ़लसफ़े सारे किताबों में उलझ कर रह गए

दर्स-गाहों में निसाबों की थकन बाक़ी रही

नसीर अहमद नासिर

शागिर्द हैं हम 'मीर' से उस्ताद के 'रासिख़'

उस्तादों का उस्ताद है उस्ताद हमारा

रासिख़ अज़ीमाबादी

अहल-ए-बीनश को है तूफ़ान-ए-हवादिस मकतब

लुत्मा-ए-मौज कम अज़ सैली-ए-उस्ताद नहीं

मिर्ज़ा ग़ालिब

है और इल्म अदब मकतब-ए-मोहब्बत में

कि है वहाँ का मोअल्लिम जुदा अदीब जुदा

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

ये फ़न्न-ए-इश्क़ है आवे उसे तीनत में जिस की हो

तू ज़ाहिद पीर-ए-नाबालिग़ है बे-तह तुझ को क्या आवे

मीर तक़ी मीर

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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