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हफ़ीज़ जौनपुरी

1865 - 1918 | जौनपुर, भारत

अपने शेर 'बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है' के लिए मशहूर।

अपने शेर 'बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है' के लिए मशहूर।

हफ़ीज़ जौनपुरी

ग़ज़ल 69

अशआर 43

बोसा-ए-रुख़्सार पर तकरार रहने दीजिए

लीजिए या दीजिए इंकार रहने दीजिए

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बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है

हाए क्या चीज़ ग़रीब-उल-वतनी होती है

तंदुरुस्ती से तो बेहतर थी मिरी बीमारी

वो कभी पूछ तो लेते थे कि हाल अच्छा है

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हसीनों से फ़क़त साहिब-सलामत दूर की अच्छी

उन की दोस्ती अच्छी उन की दुश्मनी अच्छी

आदमी का आदमी हर हाल में हमदर्द हो

इक तवज्जोह चाहिए इंसाँ को इंसाँ की तरफ़

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पुस्तकें 7

 

ऑडियो 10

इधर होते होते उधर होते होते

कहा ये किस ने कि वा'दे का ए'तिबार न था

जुनूँ के जोश में फिरते हैं मारे मारे अब

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