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अमानत लखनवी

1815 - 1858 | लखनऊ, भारत

अपने नाटक 'इन्द्र सभा' के लिए प्रसिद्ध, अवध के आख़िरी नवाब वाजिद अली शाह के समकालीन

अपने नाटक 'इन्द्र सभा' के लिए प्रसिद्ध, अवध के आख़िरी नवाब वाजिद अली शाह के समकालीन

अमानत लखनवी

ग़ज़ल 13

अशआर 15

किस तरह 'अमानत' रहूँ ग़म से मैं दिल-गीर

आँखों में फिरा करती है उस्ताद की सूरत

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बोसा आँखों का जो माँगा तो वो हँस कर बोले

देख लो दूर से खाने के ये बादाम नहीं

जी चाहता है साने-ए-क़ुदरत पे हूँ निसार

बुत को बिठा के सामने याद-ए-ख़ुदा करूँ

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किस क़दर दिल से फ़रामोश किया आशिक़ को

कभी आप को भूले से भी मैं याद आया

महशर का किया वा'दा याँ शक्ल दिखलाई

इक़रार इसे कहते हैं इंकार इसे कहते हैं

पुस्तकें 21

ऑडियो 10

आग़ोश में जो जल्वागर इक नाज़नीं हुआ

उलझा दिल-ए-सितम-ज़दा ज़ुल्फ़-ए-बुताँ से आज

ख़ाना-ए-ज़ंजीर का पाबंद रहता हूँ सदा

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