पीर साहब की करामत
इससे क़ब्ल हमने सिर्फ़ एक पीर साहब की करामत देखी थी, उनके मुरीद ने बताया कि पीर साहब बे-जान को जानदार बना देते हैं। हमने अपनी आँखों से देखा कि पीर साहब के सामने जो मिठाई का ढेर था, वो एक मिनट में गोश्त-पोस्त का ढेर बन गया। बस एक लड्डू गोश्त में बदलने से रह गया। ये वो लड्डू था जो पीपैर साहब ने ख़ुद खाने की बजाय हमें पकड़वा दिया था। मुरीद ने कहा, “पीर साहब के हाँ शेर और बकरी साथ साथ बैठे होते हैं। ये भी हमने आँखों से देखा कि शेर और बकरी इतने साथ साथ थे कि शेर और बकरी अलैहदा अलैहदा करने के लिए शेर का पेट चाक करने की ज़रूरत थी। दूसरी करामत हमने पीर इक़तदार शाह मरदान शाह पीर साहब आफ़ पगाड़ा शरीफ़ की देखी कि उन्होंने बेजान पी एन ए को फिर ज़िंदा करके नवाब ज़ादा नसरुल्लाह ख़ां की गोद में डाल दिया। इससे पहले मरहूम पी एन ए के सदर मुफ़्ती मुहम्मद अल्लाह और नायब सदर नवाब ज़ादा नसरुल्लाह ख़ां लोगों को प्यारे हो चुके थे।
पीर इक़तदार देखने में सियासतदान नहीं लगते और बोलने में पीर नहीं लगते। ये वो पीर नहीं जो वालिदैन को औलाद देते हैं। उस ख़ानदान के चश्म-ओ-चराग़ जिसकी चश्म भी चराग़ है। मिज़ाज शुरू से ऐसा कि बचपन में जिला-वतन हुए तो यूँ जैसे पाकिस्तान को जिला-वतन कर रहे हैं। पाकिस्तान से इस क़दर मोहब्बत कि अब तक बर्तानिया में होते तो बर्तानिया अब तक पाकिस्तान में होता। सियासी पेशेनगोइयों में पेश पेश रहते हैं। विंस्टन चर्चिल ने कहा है कि सियासी क़ाबिलीयत दरअसल इस बात की अहलियत है कि आप बता सकें कि, अगले हफ़्ते, अगले महीने और अगले साल क्या होगा, यही नहीं आप ये भी बता सकें कि ये क्यों नहीं हुआ। पीर साहब देर के बाद बोलते हैं मगर यूँ कि देर तक बोलने की ज़रूरत नहीं रहती। सियासतदान हो कर मुख़्तसर बात करते हैं। एक बार एक सियासतदान से किसी ने पूछा, “आप इतनी लम्बी तक़रीरें क्यों करते हैं?” तो उसने कहा, “मेरे पास मुख़्तसर तक़रीर करने का वक़्त नहीं है।”
पीर साहब को कोई फ़िक्र नहीं होती अलबत्ता उनकी बातों में फ़िक्र होती है। मुनीर नियाज़ी परफ़्यूम लगा कर मुशायरों में जाते हैं ताकि आराम से शायरों में बैठ सकें। पीर साहब भी हर वक़्त दुरूद और तौबा इस्तिग़फ़ार करते रहते हैं कि ताकि सियासतदानों के मिलने-जुलने से कोई फ़र्क़ न पड़े। शरीयत बिल के ज़िक्र से उनकी वही हालत हो जाती है जो हम जैसों की बिजली के बिल से होती है। लोग उनका इस क़दर एहतिराम करते हैं कि वो न भी बोल रहे हों तब भी सुनकर वाह वाह कह रहे होते हैं। मौलाना शिबली नामानी ने मुहम्मद हुसैन आज़ाद के बारे में कहा था कि वो गप भी हाँकता है तो वही मालूम होती है। पीर साहब भी सच यूँ बयान करते हैं जैसे लतीफ़ा सुना रहे हों और लतीफ़ा यूँ सुनाते हैं जैसे सच। अगर कोई शख़्स कह रहा हो कि मछलियाँ दरख़्तों पर चढ़ जाएँगी, चूहा बिल्ली पर भारी होगा वग़ैरा वग़ैरा, उसका यक़ीन कर लें, कि उसकी ज़ेहनी हालत ख़राब नहीं वो पीर साहब के बयान सुना रहा है।
अपनी ख़ुशी से ज़्यादा दोस्तों की ख़ुशी का ख़्याल रखते हैं। इसलिए दोबार अपने हलक़े से परेज़ अली शाह को जितवाया। कराची पसंद है, मेरे एक जानने वाले को भी कराची पसंद है मगर कहता है कि अगर कराची पीर जो गोठ शरीफ़ में होता तो मज़ा आ जाता। वो कहता है, “पीर साहब ने अख़बार में मुझे एक फ़रिश्ता कहा था।” मैं हैरान हुआ तो उसने बताया पीर साहब ने अख़बार में बयान दिया था कि फ़रिश्तों ने मेरे ख़िलाफ़ वोट डाले हैं और मैंने पीर साहब के ख़िलाफ़ वोट डाला था। पीर साहब के पास अल्लाह और मुरीदों का दिया सब कुछ है लेकिन अगर आप उन्हें अमीर कहें तो फ़रमाएँगे अमीर तो जमात-ए-इस्लामी के होते हैं। एक बार भुट्टो साहब ने पीर पगाड़ो को धमकी दी, “मैं तुमसे निपट लूँगा।” तो पीर साहब ने कहा, “कोई बात नहीं, मैं पीर पगाड़ो हफ़तम हूँ। मेरे बाद आठवां भी होगा, तुम बताओ तुम्हारे बाद कौन आएगा?”
मुस्लिम लीग उनकी कमज़ोरी है। पहले कालअदम मुस्लिम लीग के सदर बने फिर मुस्लिम लीग के कालअदम सदर बने। कहते हैं अब तो पीपल्ज़ पार्टी, मुस्लिम लीग, पी एन ए मुस्लिम लीग, दादा गीर मुस्लिम लीग और मफ़लूज मुस्लिम लीग बन चुकी हैं। वैसे जिस तेज़ी से मुस्लिम लीगें पैदा हो रही हैं इस लिहाज़ से तो मुस्लिम लीग को मंसूबा बंदी के साथ साथ महकमा मंसूबा बंदी की भी ज़रूरत है ताकि मुस्लिम लीग, मुस्लिम लीग बन सके। असली और नक़ली मुस्लिम लीग में आप असली ब्रांड की मुस्लिम लीग चाहते हैं तो उसमें शनाख़्ती निशान के तौर पर पीर साहब को देखें क्योंकि बक़ौल उनके असली मुस्लिम लीग वही होगी जिसमें हम होंगे। कभी मुस्लिम लीग की सदारत से अलग नहीं हुए, हमेशा मुस्लिम लीग को अपनी सदारत से अलग किया।
इमाम खुमैनी ने गोरबा चोफ़ बल्कि गरबा चोफ़ को मुस्लिम बनने की दावत दी तो पीर साहब ने उसे मुस्लिम लीगी बनने की दावत दे दी। बिलावल की पैदाइश पर फ़रमाया कि इक्कीस साल बाद ये बच्चा मुस्लिम लीगी वोटर होगा। तो इस पर नसीम आहेर ने कहा चलो इक्कीस साल बाद तो पीर साहब को एक वोटर मिल जाएगा। ख़ुद को जी एच क्यू का पीर कहते हैं। दिन में इतनी बार माशा अल्लाह और इंशाअल्लाह नहीं कहते जितनी बार मार्शल ला कहते हैं। चौथे मार्शल ला के बारे में फ़रमाते हैं कि मैं सुबह होते ही खिड़कियाँ खोल कर देखने लगता हूँ कि हमें कोई पकड़ने तो नहीं आया हालाँकि उनकी नज़र ऐसी है खिड़की तो क्या आँखें भी बंद हों तो भी देख सकते हैं।
वो सियासी मुनज्जम हैं। सितारों का इल्म जानते हैं, रीमा शीमा का ज़िक्र करके हर क़िस्म के सितारों के इल्म पर अपना उबूर ज़ाहिर कर देते हैं। पीर साहब सिर्फ़ अहम सवालों के जवाब ही नहीं देते बल्कि जिन सवालों के जवाब देते हैं उन्हें अहम बना देते हैं, सियासी सूरत-ए-हाल चाहे “स्याह सी सूरत-ए-हाल” हो मगर अपनी मंज़र कशी से वो “सय्याह सी सूरत-ए-हाल” ज़ाहिर करते हैं। अपनी तारीफ़ सुनना तो उन्हें इतना अच्छा नहीं लगता, ज़ाहिर है बंदा चौबीस घंटे एक ही बात तो नहीं सुन सकता नाँ।
हम पीर साहब के पहले ही से मोतक़िद थे। जब से उन्होंने पी एन ए तहरीक को ज़िंदा करने की करामत दिखाई है, अब तो लगता है कि लोग बिलखूसूस सियासतदान ख़ुद को ज़िंदा कराने के लिए उनके दर पर हाज़िर होने लगेंगे। कहीं महनाज़ रफ़ी तहरीक की उंगली पकड़ कर उसे पीर साहब के पास ला रही होगी तो कहीं मौलाना ताहिर उल-क़ादरी अपनी नोमौलूद तहरीक गोद में लिए पीर साहब से फूंकें मरवा रहे होंगे। हो सकता है अब लोग नई पैदा होने वाली तहरीकों के कानों में अज़ान दिलवाने भी उनके हाँ ही आने लगें।
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