अब्बास दाना
ग़ज़ल 16
अशआर 10
किसे दोस्त अपना बनाएँ हम किसे दिल का हाल सुनाएँ हम
सभी ग़ैर हैं सभी अजनबी तिरे गाँव में मिरे शहर में
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उस से पूछो अज़ाब रस्तों का
जिस का साथी सफ़र में बिछड़ा है
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तुम्हारा नाम लिया था कभी मोहब्बत से
मिठास उस की अभी तक मिरी ज़बान में है
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तअ'ज्जुब कुछ नहीं 'दाना' जो बाज़ार-ए-सियासत में
क़लम बिक जाएँ तो सच बात लिखना छोड़ देते हैं
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अपने ही ख़ून से इस तरह अदावत मत कर
ज़िंदा रहना है तो साँसों से बग़ावत मत कर
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