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अनअम शहज़ादी

अनअम शहज़ादी

अशआर 10

मैं समझती हूँ जिसे यौम-ए-विलादत अपना

दर-हक़ीक़त वो मिरी मौत का पहला दिन था

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मिरे दिल में दिसम्बर जम गया है

पिघल कर साल भर बहता रहेगा

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क्या मुसीबत है ज़िंदगी या'नी

मुझ को जीना पड़ेगा मरने तक

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तलाशती हूँ मैं दिल की किताब में अक्सर

वो फूल तू ने जो मुझ को कभी दिया ही नहीं

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कूड़े-दानों में लाश की सूरत

मैं ने देखे हैं प्यार के तोहफ़े

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