अंकित गौतम
ग़ज़ल 19
अशआर 1
रिश्तों को जब धूप दिखाई जाती है
सिगरेट से सिगरेट सुलगाई जाती है
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चित्र शायरी 1
रिश्तों को जब धूप दिखाई जाती है सिगरेट से सिगरेट सुलगाई जाती है जिस्म हमारा इक ऐसी मिल है जिस में अँधियारों से धूप बनाई जाती है ना से उस की शक्ल मिलाने लगता हूँ जब उस की आवाज़ सुनाई जाती है क्या वो पन्ने सच-मुच कोरे होते हैं जिन पर कोई ज़र्ब लगाई जाती है बुल्ले-बाबा दीवानों को समझाओ अपनी हस्ती काम में लाई जाती है अपनी मिट्टी अपना पानी वापस ले सुनते हैं ये शय लौटाई जाती है पत्थर ले कर आते हैं सब सीने में भाग जगे तो ठोकर खाई जाती है ख़ामोशी से यकजा करते हैं ख़ुद को शोर मचा कर आग बुझाई जाती है होते होते रौशन होता है चेहरा जाते जाते दिल से काई जाती है दोनों भवों की शिकनें हाथ बटाती हैं अपनी तीसरी आँख बनाई जाती है