दानिश नक़वी
ग़ज़ल 12
अशआर 5
देखो मुझे अब मेरी जगह से न हिलाना
फिर तुम मुझे तरतीब से रख कर नहीं जाते
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ऐसी तस्वीर बना रोते हुए ख़ुश भी लगूँ
ग़म की तर्सील तो हो ग़म का तमाशा न बने
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तू देख लेना हमारे बच्चों के बाल जल्दी सफ़ेद होंगे
हमारी छोड़ी हुई उदासी से सात नस्लें उदास होंगी
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जाते हुए कमरे की किसी चीज़ को छू दे
मैं याद करूँगा कि तिरे हाथ लगे थे
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ये जिस की बेटी के सर की चादर कई जगह से फटी हुई है
तुम उस के गाँव में जा के देखो तो आधी फ़स्लें कपास होंगी
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