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फ़हीम गोरखपुरी

1878 | गोरखपुर, भारत

फ़हीम गोरखपुरी

ग़ज़ल 18

अशआर 4

कह के ये फेर लिया मुँह मिरे अफ़्साने से

फ़ाएदा रोज़ कहीं बात के दोहराने से

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किरदार देखना है तो सूरत देखिए

मिलता नहीं ज़मीं का पता आसमान से

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सब की दुनिया तबाह करते हो

तुम भी क्या हो गए हो अमरीका

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कल जो गले मिलते थे मुझ से कल जो मुझे पहचानते थे

आज मुसाफ़िर जान के कैसे रस्ते वो अंजान हुए

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