इफ़्तिख़ार जमील शाहीन
ग़ज़ल 1
अशआर 1
नश्तर-ए-ग़म न जिस को रास आया
ज़ीस्त उस को कभी न रास आई
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere