राज़ यज़दानी
ग़ज़ल 4
अशआर 4
सज़ा के झेलने वाले ये सोचना है गुनाह
कोई क़ुसूर भी तुझ से कभी हुआ कि नहीं
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ठहर के तलवों से काँटे निकालने वाले
ये होश है तो जुनूँ कामयाब क्या होगा
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अगर गुनाह के क़िस्से भी कह दिए तुझ से
गुनाहगार को यारब सवाब क्या होगा
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वो सामने सर-ए-मंज़िल चराग़ जलते हैं
जवाब पाँव न देते तो मैं कहाँ होता
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