ताबिश कानपुरी
ग़ज़ल 1
अशआर 3
हुस्न और इश्क़ दोनों में तफ़रीक़ है पर इन्हीं दोनों पे मेरा ईमान है
गर ख़ुदा रूठ जाए तो सज्दे करूँ और सनम रूठ जाए तो मैं क्या करूँ
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तेरी सूरत निगाहों में फिरती रहे इश्क़ तेरा सताए तो मैं क्या करूँ
कोई इतना तो आ कर बता दे मुझे जब तिरी याद आए तो मैं क्या करूँ
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