aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
लिखते रहे जुनूँ की हिकायात-ए-ख़ूँ-चकाँ
हर-चंद इस में हाथ हमारे क़लम हुए
उस नक़्श-ए-पा के सज्दे ने क्या क्या किया ज़लील
मैं कूचा-ए-रक़ीब में भी सर के बल गया
bowing to her footsteps brought me shame I dread
I went to my rival's street standing on my head
दिल से रुख़्सत हुई कोई ख़्वाहिश
गिर्या कुछ बे-सबब नहीं आता
ये डूबती हुई क्या शय है तेरी आँखों में
तिरे लबों पे जो रौशन है उस का नाम है क्या
ऐ दिल तमाम नफ़अ है सौदा-ए-इश्क़ में
इक जान का ज़ियाँ है सो ऐसा ज़ियाँ नहीं
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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