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Shamsur Rahman Faruqi
Article 54
Short story 4
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फ़िक्शन निगार की हैसियत से मेरा अपना तजुर्बा भी यही है कि मैं अपने किरदार या वक़ूऐ को जैसा बनाना चाहता हूँ, हमेशा वैसा बनता नहीं है। मेरे सामने सामे'अ भी नहीं है जिसके दबाओ के तहत मैं किरदार और वाक़ेए' को आज़ाद ना होने दूँ। इस तरह मुतज़ाद सी सूरत-ए-हाल बनती है कि मैं अपने फ़िक्शन का ख़ालिक़ हूँ भी और नहीं भी हूँ...
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