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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Aftab Shamsi's Photo'

आफ़ताब शम्सी

1930 - 2012 | रामपुर, भारत

आफ़ताब शम्सी के शेर

देख कर उस को लगा जैसे कहीं हो देखा

याद बिल्कुल नहीं आया मुझे घंटों सोचा

तूफ़ान की ज़द में थे ख़यालों के सफ़ीने

मैं उल्टा समुंदर की तरफ़ भाग रहा था

सभी हैं अपने मगर अजनबी से लगते हैं

ये ज़िंदगी है कि होटल में शब गुज़ारी है

जो साथ लाए थे घर से वो खो गया है कहीं

इरादा वर्ना हमारा भी वापसी का था

राह तकते जिस्म की मज्लिस में सदियाँ हो गईं

झाँक कर अंधे कुएँ में अब तो कोई बोल दे

नाम अपना ही मैं सब से खड़ा पूछ रहा था

कुछ मेरी समझ में नहीं आया कि ये क्या था

जो दिल में है वही बाहर दिखाई देता है

अब आर-पार ये पत्थर दिखाई देता है

मैं जंगलों में दरिंदों के साथ रहता रहा

ये ख़ौफ़ है कि अब इंसाँ के खा ले कोई

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