अफ़ज़ाल अहमद सय्यद के शेर
कमान-ए-शाख़ से गुल किस हदफ़ को जाते हैं
नशेब-ए-ख़ाक में जा कर मुझे ख़याल आया
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मैं दिल को उस की तग़ाफ़ुल-सरा से ले आया
और अपने ख़ाना-ए-वहशत में ज़ेर-ए-दाम रखा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
इस दिल को किसी दस्त-ए-अदा-संज में रखना
मुमकिन है ये मीज़ान-ए-कम-ओ-बेश जला दे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
यही बहुत थे मुझे नान ओ आब ओ शम्अ ओ गुल
सफ़र-नज़ाद था अस्बाब मुख़्तसर रक्खा
-
टैग : असबाब
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
उसे अजब था ग़ुरूर-ए-शगुफ़्त-ए-रुख़्सारी
बहार-ए-गुल को बहुत बे-हुनर कहा उस ने
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
किताब-ए-उम्र से सब हर्फ़ उड़ गए मेरे
कि मुझ असीर को होना है हम-कलाम उस का
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मैं चाहता हूँ मुझे मशअलों के साथ जला
कुशादा-तर है अगर ख़ेमा-ए-हवा तुझ पे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
किताब-ए-ख़ाक पढ़ी ज़लज़ले की रात उस ने
शगुफ़्त-ए-गुल के ज़माने में वो यक़ीं लाया
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
अता उसी की है ये शहद ओ शोर की तौफ़ीक़
वही गलीम में ये नान-ए-बे-जवीं लाया
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
कमान-ए-ख़ाना-ए-अफ़्लाक के मुक़ाबिल भी
मैं उस से और वो फिर कज-कुलाह मुझ से हुआ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड