अम्बर बहराईची के शेर
हर इक नदी से कड़ी प्यास ले के वो गुज़रा
ये और बात कि वो ख़ुद भी एक दरिया था
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ये सच है रंग बदलता था वो हर इक लम्हा
मगर वही तो बहुत कामयाब चेहरा था
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मेरा कर्ब मिरी तन्हाई की ज़ीनत
मैं चेहरों के जंगल का सन्नाटा हूँ
बाहर सारे मैदाँ जीत चुका था वो
घर लौटा तो पल भर में ही टूटा था
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जाने क्या सोच के फिर इन को रिहाई दे दी
हम ने अब के भी परिंदों को तह-ए-दाम किया
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जाने क्या बरसा था रात चराग़ों से
भोर समय सूरज भी पानी पानी है
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चेहरों पे ज़र-पोश अंधेरे फैले हैं
अब जीने के ढंग बड़े ही महँगे हैं
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इक शफ़्फ़ाफ़ तबीअत वाला सहराई
शहर में रह कर किस दर्जा चालाक हुआ
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जान देने का हुनर हर शख़्स को आता नहीं
सोहनी के हाथ में कच्चा घड़ा था देखते
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हर फूल पे उस शख़्स को पत्थर थे चलाने
अश्कों से हर इक बर्ग को भरना था हमें भी
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एक सन्नाटा बिछा है इस जहाँ में हर तरफ़
आसमाँ-दर-आसमाँ-दर-आसमाँ क्यूँ रत-जगे हैं
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आम के पेड़ों के सारे फल सुनहरे हो गए
इस बरस भी रास्ता क्यूँ रो रहा था देखते
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हम पी भी गए और सलामत भी हैं 'अम्बर'
पानी की हर इक बूँद में हीरे की कनी थी
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रोज़ हम जलती हुई रेत पे चलते ही न थे
हम ने साए में खजूरों के भी आराम किया
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एक साहिर कभी गुज़रा था इधर से 'अम्बर'
जा-ए-हैरत कि सभी उस के असर में हैं अभी
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सूप के दाने कबूतर चुग रहा था और वो
सेहन को महका रही थी सुन्नतें पढ़ते हुए
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उस ने हर ज़र्रे को तिलिस्म-आबाद किया
हाथ हमारे लगी फ़क़त हैरानी है
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गए थे हम भी बहर की तहों में झूमते हुए
हर एक सीप के लबों में सिर्फ़ रेगज़ार था
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