Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Azhar Hashmi Sabqat's Photo'

अज़हर हाश्मी सबक़त

1990 | मुंगेर, भारत

अज़हर हाश्मी सबक़त के शेर

442
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

दवाम पाएगा इक रोज़ हक़ ज़माने में

ये इंतिज़ार नहीं इंतिज़ार-ए-वहशत है

कहीं सुराग़ नहीं है किसी भी क़ातिल का

लहूलुहान मगर शहर का नज़ारा है

उसी पे सब्र है मुझ को हर एक दौर यहाँ

बहार आने से पहले ख़िज़ाँ से गुज़रा है

मिलती है ख़ुशी सब को जैसे ही कहीं से भी

भूली हुइ बचपन की तस्वीर निकलती है

सज्दे का सबब जान के शीरीं है परेशाँ

फ़रहाद ने कह डाला के रब ढूँड रहा हूँ

बस रंज की है दास्ताँ उन्वान हज़ारों

जीने के लिए मर गए इंसान हज़ारों

कोई हयात ज़माने को है अज़ीज़ बहुत

कोई हयात है कि रोज़ रोज़ मरती है

मिरे वजूद का मेहवर चमकता रहता है

इसी सनद से मुक़द्दर चमकता रहता है

देखा नहीं जिस ने मिरे तूफ़ाँ को सुकूँ में

वो शख़्स मिरी रूह के अंदर नहीं उतरा

जिस ख़ाक से कहते हो वफ़ा हम नहीं करते

सोए हैं उसी ख़ाक में सुल्तान हज़ारों

ये तमन्ना है ख़ुदा आलम-ए-हस्ती में तिरे

मैं अयाँ देखना चाहूँ तो निहाँ तक देखूँ

इतनी इंतिशार की हिद्दत हो रू-ब-रू

इंसाँ ग़म-ए-हयात में जलता दिखाई दे

ख़ुदा की रज़ा है हासिल किसी को

ख़ुदा के लिए पर लड़ाई बहुत है

गुमान कहता है के मैं यक़ीं का शाइ'र हूँ

यक़ीन कहता है के मैं गुमाँ का शाइ'र हूँ

ये जो बेहाल सा मंज़र ये जो बीमार से हम तुम

सियासत की नवाज़िश है किसी से कुछ नहीं बोलें

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए