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संपूर्ण
परिचय
ई-पुस्तक39
लेख14
उद्धरण19
रेखाचित्र2
शेर20
ग़ज़ल34
नज़्म20
ऑडियो 20
वीडियो1
अन्य
रुबाई30
बाक़र मेहदी
लेख 14
उद्धरण 19
अब ग़ालिब उर्दू में एक सनअ'त Industry की हैसियत इख़्तियार कर चुके हैं। ये इतनी बड़ी और फैली हुई नहीं जितनी कि यूरोप और अमरीका में शेक्सपियर इंडस्ट्री। हाँ आहिस्ता-आहिस्ता ग़ालिब भी High Cultured Project में ढल रही है। ये कोई शिकायत की बात नहीं है। हर ज़बान-ओ-अदब में एक न एक शाइ'र या अदीब को ये ए'ज़ाज़ मिलता रहा है कि उसके ज़रिए' से सैकड़ों लोग बा-रोज़गार हो जाते हैं।
रेखाचित्र 2
अशआर 20
सैलाब-ए-ज़िंदगी के सहारे बढ़े चलो
साहिल पे रहने वालों का नाम-ओ-निशाँ नहीं
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फ़ासले ऐसे कि इक उम्र में तय हो न सकें
क़ुर्बतें ऐसी कि ख़ुद मुझ में जनम है उस का
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जाने क्यूँ उन से मिलते रहते हैं
ख़ुश वो क्या होंगे जब ख़फ़ा ही नहीं
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आज़मा लो कि दिल को चैन आए
ये न कहना कहीं वफ़ा ही नहीं
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ग़ज़ल 34
नज़्म 20
रुबाई 30
पुस्तकें 39
ऑडियो 20
अब ख़ानुमाँ-ख़राब की मंज़िल यहाँ नहीं
इश्क़ की सारी बातें ऐ दिल पागल-पन की बातें हैं
इस दर्जा हुआ ख़ुश कि डरा दिल से बहुत मैं
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