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Daood Mohsin's Photo'

दाऊद मोहसिन

1962 | दावणगेरे, भारत

समकालीन कहानीकारों में शामिल

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दाऊद मोहसिन के शेर

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हर एक शाम सँवर जाएगी मिरी 'मोहसिन'

हर एक बात तुम्हारी है शाइ'री की तरह

नहीं है पास किसी का किसी को 'मोहसिन'

कि आज़मा कि उन्हें बार बार देखा है

ज़िंदगी टूट के बिखरी है सर-ए-राह अभी

हादिसा कहिए इसे या कि तमाशा कहिए

इतने फ़रेब खाए हैं क़ुर्बत में यार की

'मोहसिन' फ़रेब और भी खाया जाएगा

कौन अपना है यहाँ कौन पराया कहिए

कौन देता है भला दुख में सहारा कहिए

मैं चाहता हूँ तुम्हें अपनी ज़िंदगी की तरह

मिरे वजूद पे छा जाओ चाँदनी की तरह

अफ़्साना दर्द-ओ-ग़म का सुनाया जाएगा

अब ज़ख़्म-ए-दिल किसी को दिखाया जाएगा

बात तेरे नाम की होने लगी

दिल में मेरे सनसनी होने लगी

सारे-जहाँ में क़िस्से ये मशहूर हो गए

भाई हमारे मुंकिर-ए-दस्तूर हो गए

मसनदें तख़्त-ओ-ताज दस्तारें

कौन किस के लिए लुटाते हैं

हर तरफ़ दर्द का आहों का समाँ होता है

पानी जलता है समुंदर में धुआँ होता है

ज़ब्त की थी शर्त दिल से जाने क्यूँ

लम्हा लम्हा बेकली होने लगी

रफ़ाक़तों का जहाँ तार-तार देखा है

वजूद-ए-ज़ीस्त का उड़ता ग़ुबार देखा है

लम्हा लम्हा पुकारे जाते हैं

कौन दिल के क़रीब आते हैं

ज़ख़्म-ए-दिल दाग़-ए-जिगर दाग़-ए-तमन्ना की क़सम

चाँद से फूल से डर हम को यहाँ होता है

कितना अजीब-तर है अक़ीदा जनाब का

पत्थर की मूरतों से वफ़ा माँग रहे हो

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