Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Figar Unnavi's Photo'

फ़िगार उन्नावी

उन्नाव, भारत

फ़िगार उन्नावी के शेर

1.9K
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

दिल चोट सहे और उफ़ करे ये ज़ब्त की मंज़िल है लेकिन

साग़र टूटे आवाज़ हो ऐसा तो बहुत कम होता है

दिल है मिरा रंगीनी-ए-आग़ाज़ पे माइल

नज़रों में अभी जाम है अंजाम नहीं है

मेरी जबीन-ए-शौक़ ने सज्दे जहाँ किए

वो आस्ताँ बना जो कभी आस्ताँ था

दिल मिरा शाकी-ए-जफ़ा हुआ

ये वफ़ादार बेवफ़ा हुआ

क्या मिला अर्ज़-ए-मुद्दआ से 'फ़िगार'

बात कहने से और बात गई

फ़ज़ा का तंग होना फ़ितरत-ए-आज़ाद से पूछो

पर-ए-पर्वाज़ ही क्या जो क़फ़स को आशियाँ समझे

एक ख़्वाब-ओ-ख़याल है दुनिया

ए'तिबार-ए-नज़र को क्या कहिए

किसी से शिकवा-ए-महरूमी-ए-नियाज़ कर

ये देख ले कि तिरी आरज़ू तो ख़ाम नहीं

छुप गया दिन क़दम बढ़ा राही

दूर मंज़िल है मुफ़्त रात कर

फूलों को गुलिस्ताँ में कब रास बहार आई

काँटों को मिला जब से एजाज़-ए-मसीहाई

मायूस दिलों को अब छेड़ो भी तो क्या हासिल

टूटे हुए पैमाने फ़रियाद नहीं करते

दीवाने को मजाज़-ओ-हक़ीक़त से क्या ग़रज़

दैर-ओ-हरम मिले मिले तेरा दर मिले

अजीब कश्मकश है कैसे हर्फ़-ए-मुद्दआ कहूँ

वो पूछते हैं हाल-ए-दिल मैं सोचता हूँ क्या कहूँ

साक़ी ने निगाहों से पिला दी है ग़ज़ब की

रिंदान-ए-अज़ल देखिए कब होश में आएँ

दिल की बुनियाद पे ता'मीर कर ऐवान-ए-हयात

क़स्र-ए-शाही तो ज़रा देर में ढह जाते हैं

शिकस्त-ए-दिल की हर आवाज़ हश्र-आसार होती है

मगर सोई हुई दुनिया कहाँ बेदार होती है

काबा भी घर अपना है सनम-ख़ाना भी अपना

हर हुस्न का जल्वा मिरा ईमान-ए-नज़र है

सर-ए-महफ़िल हमारे दिल को लूटा चश्म-ए-साक़ी ने

उधर तक़दीर गर्दिश में इधर गर्दिश में जाम आया

हैं ये जज़्बात मिरे दर्द भरे दिल के फ़िगार

लफ़्ज़ बन बन के जो अशआ'र तक पहुँचे हैं

हसरत-ए-दिल ना-मुकम्मल है किताब-ए-ज़िंदगी

जोड़ दे माज़ी के सब औराक़ मुस्तक़बिल के साथ

ग़म-ओ-अलम से जो ताबीर की ख़ुशी मैं ने

बहुत क़रीब से देखी है ज़िंदगी मैं ने

यक़ीन-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा हमें बावर नहीं आता

ज़बाँ से लाख कहिए आप के तेवर नहीं कहते

इक तेरा आसरा है फ़क़त ख़याल-ए-दोस्त

सब बुझ गए चराग़ शब-ए-इंतिज़ार में

क़दम क़दम पे दोनों जुर्म-ए-इश्क़ में शरीक हैं

नज़र को बे-ख़ता कहूँ कि दिल को बे-ख़ता कहूँ

क़दम अपने हरीम-ए-नाज़ में इस शौक़ से रखना

कि जो देखे मिरे दिल को तुम्हारा आस्ताँ समझे

परतव-ए-हुस्न से ज़र्रे भी बने आईने

कितने जल्वे किए अर्ज़ां तिरी रानाई ने

महफ़िल-ए-कौन-ओ-मकाँ तेरी ही बज़्म-ए-नाज़ है

हम कहाँ जाएँगे इस महफ़िल से उठ जाने के बा'द

आदाब-ए-आशिक़ी से तो हम बे-ख़बर थे

दीवाने थे ज़रूर मगर इस क़दर थे

तिरे ग़म के सामने कुछ ग़म-ए-दो-जहाँ नहीं है

है जहाँ तिरा तसव्वुर वहाँ ईन-ओ-आँ नहीं है

का'बे में हो या बुत-ख़ाने में होने को तो सर ख़म होता है

होता है जहाँ तू जल्वा-नुमा कुछ और ही आलम होता है

किस काम का ऐसा दिल जिस में रंजिश है ग़ुबार है कीना है

हम को है ज़रूरत उस दिल की सब जिस को कहें आईना है

उन पे क़ुर्बान हर ख़ुशी कर दी

ज़िंदगी नज़्र-ए-ज़िंदगी कर दी

ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ मेरे अश्क-ए-ग़म की तर्जुमानी है

कोई कहता है मोती है कोई कहता है पानी है

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए