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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Ghalib Ayaz's Photo'

ग़ालिब अयाज़

1981 | दिल्ली, भारत

ग़ालिब अयाज़ के शेर

भले ही छाँव दे आसरा तो देता है

ये आरज़ू का शजर है ख़िज़ाँ-रसीदा सही

तमाम उम्र उसे चाहना था मुमकिन

कभी कभी तो वो इस दिल पे बार बन के रहा

हवा के होंट खुलें साअत-ए-कलाम तो आए

ये रेत जैसा बदन आँधियों के काम तो आए

तुम्हारे दर से उठाए गए मलाल नहीं

वहाँ तो छोड़ के आए हैं हम ग़ुबार अपना

हम उस के जब्र का क़िस्सा तमाम चाहते हैं

और उस की तेग़ हमारा ज़वाल चाहती है

फिर यही रुत हो ऐन मुमकिन है

पर तिरा इंतिज़ार हो कि हो

ज़िंदगानी में सभी रंग थे महरूमी के

तुझ को देखा तो मैं एहसास-ए-ज़ियाँ से निकला

हुआ करेगा हर इक लफ़्ज़ मुश्क-बार अपना

अभी सुकूँ से किए जाओ इंतिज़ार अपना

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